विजय दर्डा का ब्लॉग: कर्ज माफ कीजिए, बेरोजगारों को जीने का सहारा दीजिए

By विजय दर्डा | Updated: September 20, 2020 14:16 IST2020-09-20T14:16:09+5:302020-09-20T14:16:09+5:30

कोरोना ने करोड़ों लोगों के रोजगार छीन लिए हैं, नौकरियां छूट गई हैं. छोटे कारोबारियों के सामने भुखमरी के हालात हैं. छोटे और मझोले उद्योग बंद हो गए हैं. वक्त की जरूरत है कि इन्हें कर्जमुक्त कर दीजिए और कम दर पर नया कर्ज भी दीजिए. जो बेरोजगार हैं उन्हें काम मिलने तक बेरोजगारी भत्ता भी दीजिए.

Vijay Darda Blog over Unemployment : Forgive debt, support the unemployed to live | विजय दर्डा का ब्लॉग: कर्ज माफ कीजिए, बेरोजगारों को जीने का सहारा दीजिए

फुटपाथ पर कारोबार करने वाले, बेरोजगार युवक, छोटे और मझोले उद्योजक गंभीर संकट की स्थिति में

एक युवा ने कर्ज लिया एक छोटा ढाबा लगाने के लिए. उसमें दस-बारह लाख रुपए लग गए. महामारी शुरू हुई. बंदिशें लगीं और  धंधा शुरू होने से पहले ही बंद हो गया. वो आदमी तो खत्म हो गया न!
एक आदमी ने बाल काटने के लिए एक कुर्सी खरीदी, एक कांच खरीदा और टीन का एक शेड किराए पर लेकर काम शुरू किया. पांच महीने से उसके पास एक भी ग्राहक नहीं आया क्योंकि उस बिजनेस पर बंदिश थी. वह तो स्थायी रूप से लुट गया न! भले ही सरकार की योजनाएं होंगी! ..लेकिन उसे बताता कौन है?

एक व्यक्ति ने छोटी इंडस्ट्री लगाई. सात-आठ मजदूरों को काम दिया. लॉकडाउन लगा और उसकी इंडस्ट्री डूब गई. सुना वो खुदकुशी करने जा रहा था!

कितनी कहानियां सुनाऊं? ऐसा दर्द तो हर जगह बिखरा पड़ा है. लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि इस गहरी विपत्ति से बाहर निकलें तो कैसे निकलें? करीब 12 करोड़ लोगों का रोजगार छिन गया है. फुटपाथ पर बैठकर छोटा-मोटा धंधा करने वालों के पास कितनी पूंजी होती है? यही कोई दो-पांच  हजार ! बंदी में वह भी खत्म हो गया. फिर से कारोबार के लिए कर्ज लेना पड़ा. पता नहीं जिंदगी कब पटरी पर लौटेगी? उनके सामने बड़ा सवाल है कि थोड़ा-बहुत जो कमा रहे हैं उससे कर्ज चुकाएं या परिवार को रोटी खिलाएं? सरकार की योजना है कि ऐसे रेहड़ी वालों को दस हजार रुपए तक का कर्ज दिया जाएगा लेकिन शर्त यह रख दी है कि वे प्रमाणित करें कि कहां धंधा कर रहे थे? अब सोचिए कि रेहड़ी वाला कहां से प्रमाण लाए?

गिने-चुने उद्योगपतियों ने 15 लाख करोड़ का कर्ज डुबाया है सरकार!

उनके ऊपर विश्वास कीजिए सरकार! छोटा आदमी कभी झूठ नहीं बोलता. झूठ और षड्यंत्र का  पुलिंदा तो वो गिने-चुने बड़े लोग हैं जिन्होंने एक कर्जा चुकाया नहीं और दूसरा कर्जा ले लिया. किसी ने 50 हजार करोड़, किसी ने 60 हजार करोड़, किसी ने एक लाख करोड़ तो किसी ने डेढ़ और दो लाख करोड़ का कर्ज डुबा रखा है. इन गिने-चुने उद्योगपतियों ने 15 लाख करोड़ का कर्ज डुबाया है सरकार! ..लेकिन इनकी शानो-शौकत में कोई कमी नहीं है. उनका एयरक्राफ्ट अभी भी उड़ान भर रहा है. यह सब सरकार की नाक के नीचे हो रहा है लेकिन कोई कुछ नहीं कर रहा है सरकार!

एक जाने-माने उद्योगपति ने तो मिलीभगत करके महाराष्ट्र सरकार के पांच-छह एयरपोर्ट हड़प लिए. पंद्रह साल से ज्यादा हो गए, कितने सीएम आए और गए लेकिन किसी ने इन विमानतलों को मुक्त कराने की कोई कोशिश नहीं की.

सरकार! जहां गरीबों और मध्यमवर्ग का सवाल आता है, कानून वहीं स्केल पट्टी लेकर क्यों उतर आता है? आपको भी पता है सरकार कि इन गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों को कर्ज की नहीं, सहायता की जरूरत है. बेरोजगारों को काम मिलने तक कम से कम 5000 रुपए प्रति महीना मिलना ही चाहिए ताकि वे रोटी खा सकें. आपके पास गोदामों में अनाज भरा है. कई बार तो ये अनाज सड़ भी जाता है. क्यों नहीं इन गरीबों और मध्यमवर्ग के लोगों को यह अनाज बांट देते?

छोटे और मझोले उपक्रमों को बचाना बहुत जरूरी है सरकार!

छोटे और मझोले औद्योगिक उपक्रम करीब-करीब बंद हो गए हैं. उनके ऊपर बैंकों का 15 लाख करोड़ रुपए कर्ज चढ़ा हुआ है. वे कर्ज लौटाने की स्थिति में नहीं हैं. उनका कर्ज माफ कर देना चाहिए और 6 प्रतिशत या उससे भी कम दर पर नया कर्जा देना चाहिए. और हां,  एक साल के बाद में ब्याज शुरू करना चाहिए. तब जाकर ये लोग काम करने की स्थिति में होंगे. छोटे और मझोले उद्योग राज्य और केंद्र सरकार को जो सामग्री सप्लाई करते हैं उसके बिल का भुगतान 30 दिन के भीतर हो जाना चाहिए. यदि समय पर भुगतान न हो तो 15 प्रतिशत का ब्याज देना चाहिए. भुगतान में और ज्यादा विलंब हो तो 18 और उससे भी ज्यादा विलंब पर 24 प्रतिशत तक ब्याज मिलना चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों पर जो पुराना बकाया है, उसका भुगतान भी तत्काल होना चाहिए.

छोटे और मझोले उपक्रमों को बचाना बहुत जरूरी है सरकार! यह क्षेत्र 11 करोड़ लोगों को रोजगार और जीडीपी में 30 प्रतिशत का योगदान देता है. इसे उपेक्षित मत कीजिए. इन्हें जिंदा रखिए. यही देश का निर्माण करेंगे. इन्ही में से टाटा और नारायणमूर्ति बनेंगे. लोग सरकार से उम्मीद नहीं करेंगे तो किससे करेंगे? युवाओं में फैले नैराश्य और किसानों की तड़प को समझना बहुत जरूरी है. सरकार आपसे बहुत उम्मीद है क्योंकि आप उनकी सरकार हो.

पिछले साल देश का बजट खर्च करीब 30 लाख करोड़ था

कर्जमाफी और बेरोजगारी भत्ता की मेरी बात अतिशयोक्ति लग सकती है लेकिन यह संभव है. जरूरत दृढ़ निश्चय की है. पिछले साल देश का बजट खर्च करीब 30 लाख करोड़ था. बजट का 10 से 12 प्रतिशत हिस्सा कर्जमाफी और बेरोजगारी भत्ता के लिए निकालना कोई असंभव काम नहीं है. केवल पेट्रोल पर प्रति लीटर 1 से लेकर 3 रु. तक का सरचार्ज लगाया जा सकता है, शराब और सिगरेट के साथ ही लग्जरी आइटम्स पर और सरचार्ज लिया जा सकता है. पांच-छह लाख करोड़ जुटाना सरकार के लिए मुश्किल काम नहीं है.

मैं नहीं मानता कि सरकार कर्जमाफी करना नहीं चाहती. दिक्कत यह है कि सरकार में बैठे अर्थशास्त्री जो समझा देते हैं, सरकार उसे मान लेती है. यदि सरकार कर्जमाफी और बेरोजगारी भत्ता देने की दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ आगे बढ़े तो चमत्कार से इनकार नहीं किया जा सकता. पुरानी कहावत है कि जहां चाह वहां राह! गरीबों और जरूरतमंदों को संकट से उबारने का पुख्ता जज्बा होना चाहिए. महामारी से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए न केवल अमेरिका बल्कि कई और देशों ने भी इस तरह के महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. यदि दूसरे देशों की सरकार यह सब करने में सक्षम है तो हमारी सरकार क्यों नहीं?
 

Web Title: Vijay Darda Blog over Unemployment : Forgive debt, support the unemployed to live

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