Jammu & Kashmir: लोकसभा चुनाव न सिर्फ दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का राजनीतिक, भविष्य तय करेगा बल्कि विधानसभा चुनावों के लिए पार्टियों की राह भी
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: June 3, 2024 16:08 IST2024-06-03T16:08:36+5:302024-06-03T16:08:36+5:30
दरअसल, इन चुनावों के नतीजों से दो पूर्व मुख्यमंत्रियों - उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के सीधे तौर पर राजनीतिक भविष्य की राह तय होनी है तो एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद के दमखम का भी लेखा सामने आना है जो इस बार चुनाव मैदान में इसलिए नहीं उतरे थे क्योंकि उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ना है।

Jammu & Kashmir: लोकसभा चुनाव न सिर्फ दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का राजनीतिक, भविष्य तय करेगा बल्कि विधानसभा चुनावों के लिए पार्टियों की राह भी
जम्मू: लोकसभा चुनावों का परिणाम आने में बस कुछ घंटों का समय शेष है और प्रदेश में राजनीतिक दलों की सांस इसलिए अटकी हुई है क्योंकि वे जानते हैं कि इन चुनावों का परिणाम ही विधानसभा चुनावों के लिए उनके राजनीतिक दलों का भविष्य तय करेगा। यह बात अलग है कि इन चुनावों से प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का राजनीतिक भविष्य भी तय होना है।
भारतीय चुनाव आयोग द्वारा जम्मू कश्मीर में पांच सालों के अंतराल के बाद किसी भी समय और 30 सितम्बर से पहले विधानसभा चुनाव करवाए जाने की घोषणा के बाद यह सुगबुगाहट भी तेज हुई है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के उपरांत राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील किए गए जम्मू कश्मीर में होने वाले पहले विधानसभा चुनावों में कौन सी पार्टी जीत के झंडे गाड़ेगी।
अगर एग्जिट पोल पर विश्वास करें तो प्रदेश में चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी सही तरीके से कर पाना थोड़ी टेढ़ी खीर इसलिए मानी जा सकती है क्योंकि कश्मीरी ऐसे एग्जिट पोल की धज्जियां उड़ाने में माहिर माने जाते हैं और यही कारण है नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, अपनी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों की सांसें अटकी हुई हैं।
दरअसल इन चुनावों के नतीजों से दो पूर्व मुख्यमंत्रियों - उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के सीधे तौर पर राजनीतिक भविष्य की राह तय होनी है तो एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद के दमखम का भी लेखा सामने आना है जो इस बार चुनाव मैदान में इसलिए नहीं उतरे थे क्योंकि उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ना है। यह बात अलग है कि उनकी पार्टी को अक्सर भाजपा की बी टीम का खिताब दिया जाता था जो अब ’अपनी पार्टी’ छीनने को बेताब है।
इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के लिए इस बार के लोकसभा चुनाव करो या मरो की स्थिति जैसा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनों नेता जानते हैं कि उनकी हार जीत पर भी प्रदेश में उनके राजनीतिक दलों का भविष्य टिका हुआ है। दूसरे शब्दों में कहें तो विधानसभा चुनावों में उसी पार्टी का भविष्य दिखेगा जिसका वर्चस्व बचा रहेगा और इसके लिए दोनों ही दलों को जीत का सहारा चाहिए जो फिलहाल दिख नहीं रहा है।
राजनीतिक पंडितों का कहना था कि दोनों ही दलों पर अपना अपना राजनीतिक भविष्य बचाने का दबाव है और अगर दोनों ही दल अपनी इज्जत बचा पाने में अर्थात कम से कम एक एक सीट पर कामयाबी पाने में सफल होते हैं तो वे आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा और उसकी ए, बी व सी टीमों को राजनीतिक चुनौती दे पाएंगे।