स्मृति ईरानी का लेख: प्रधानमंत्री के लिए महिलाएँ केवल वोट बैंक नहीं

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 26, 2018 15:58 IST2018-08-26T15:58:01+5:302018-08-26T15:58:01+5:30

स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से भाषण देते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही स्कूली छात्रओं की प्राथमिक जरूरत और अधिकार को प्रमुखता से शामिल किया। 

smriti irani opinion on narendra government work for women | स्मृति ईरानी का लेख: प्रधानमंत्री के लिए महिलाएँ केवल वोट बैंक नहीं

स्मृति ईरानी का लेख: प्रधानमंत्री के लिए महिलाएँ केवल वोट बैंक नहीं

स्मृति ईरानी

भारतीय महिलाओं में पूरी दुनिया को जीतने लायक ऊर्जा और शक्ति  है। एशियाई खेल स्पर्धा में जीत के बाद विनेश फोगट ने जब आत्मविश्वास के साथ हवा में अपना हाथ लहराया तो पूरी दुनिया ने हरियाणा की एक भारतीय युवती की लगन और मेहनत को देखा था।

भारतीय संस्कृति के लिए महिलाओं की यशोगाथा कोई नई संकल्पना नहीं है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने चार वर्षो में सरकारी उपक्रमों में इस तरफ विशेष ध्यान देते हुए महिलाओं को प्रमुखता दी। स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से भाषण देते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही स्कूली छात्रओं की प्राथमिक जरूरत और अधिकार को प्रमुखता से शामिल किया। 

उन्होंने सरकारी स्कूलों में छात्रओं के लिए अलग प्रसाधन गृह बनाए जाने की घोषणा की। अनेक लोगों ने इस घोषणा की तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। चमक-दमक भरी राजनीतिक घोषणाओं के प्रति राष्ट्रीय राजधानी में खूब आकर्षण रहता है। इस पृष्ठभूमि पर, प्रधानमंत्री द्वारा की गई यह योजना चमक-दमक भरी नहीं है। 

फिर भी छात्राओं की स्वास्थ्य विषयक स्वच्छता के प्रति चिंता को ध्यान में रखते हुए तैयार इस योजना पर अमल किए जाने के बाद, स्कूली शिक्षा में छात्रओं की संख्या में निरंतर कमी पर अंकुश लगने की वास्तविकता से कैसे इंकार किया जा सकता है? 

स्कूल जाने वाली कोई भी छात्र मतदाता नहीं होती। जाहिर है कि प्रधानमंत्री की यह घोषणा कोई वोटबैंक तैयार करने के लिए नहीं है। भारतीय लोकतंत्र में युवतियों और महिलाओं के अधिकारों व जरूरतों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा, यह इस घोषणा का निहितार्थ था। 

देश भर के सभी सरकारी स्कूलों में इस घोषणा के अनुरूप सिर्फ एक साल में चार लाख शौचालयों का निर्माण होना प्रधानमंत्री द्वारा अपनाई गई सहकारी संघवाद की विराट शक्ति है, इसकी अनुभूति पूरे देश ने इसके जरिये की है। भारतीय राजनीति के लिए यह अतिरिक्त लाभ ही साबित हुआ है।

भारत देता रहा है महिला शक्ति को सम्मान

महिला शक्ति को भारतीय संस्कृति में हमेशा सम्मान दिया गया है। भारत में देवी-देवताओं के अनेक रूप हैं। सरस्वती बुद्धि और शिक्षा की तथा लक्ष्मी संपत्ति की देवी हैं। श्रद्धा के साथ उनका पूजन करके देश महिला शक्ति को प्रणाम करता है। लेकिन देश के करोड़ों घरों में वर्षो से अनगिनत महिलाओं को चूल्हा फूंकते हुए धुएं की तकलीफ का सामना करना पड़ रहा था। 

केंद्र में अनेक सरकारें आईं और गईं, लेकिन शहर हो या गांव, एक साथ चूल्हा-चौका और बच्चों को संभालने वाली महिलाओं की व्यथा कायम थी। मोदी सरकार ने करोड़ों महिलाओं की यह वेदना दूर करने का निश्चय किया। 

स्वच्छ ईंधन का आसान विकल्प गृहलक्ष्मी के हाथों में देने के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना शुरू की गई। संसद के अधिवेशन में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्र महाजन की उपस्थिति में इसकी घोषणा के बाद, देश की पांच करोड़ गृहणियां उज्ज्वला गैस योजना की लाभार्थी बन चुकी हैं और आठ करोड़ महिलाओं को इस योजना में शामिल करने का लक्ष्य मोदी सरकार ने तय किया है। 

परंपरागत राजनीति में,  किसी योजना की घोषणा होने के बाद, उसके कछुआ चाल से आगे बढ़ने का अनुभव जनता के लिए नया नहीं है। लेकिन अपने पहले ही कार्यकाल में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई किसी योजना को समयपूर्व साकार होते इसके पूर्व क्या भारत ने कभी देखा है?

जन धन योजना के अंतर्गत 16.42 करोड़ महिलाओं के खाते प्रधानमंत्री ने खुलवाए। पिछले तीन वर्षो में महिलाओं की बचत का प्रतिशत 28 से बढ़कर 40 फीसदी तक पहुंच गया है। मुद्रा बैंक योजना की 70 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं हैं। 

मुद्रा योजना भारतीय महिलाओं की केवल उद्योजकता का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि 9।81 करोड़ महिलाओं को मुद्रा बैंक ने कर्ज दिया है, जो कि भारतीय महिलाओं की आकांक्षा और स्वप्न का एक खास उदाहरण है। 

स्वच्छ भारत अभियान का असर

वर्ष 2016-17 के आर्थिक सव्रेक्षण के अनुसार, देश की 76 प्रतिशत महिलाओं को सुबह नित्यक्रिया के लिए काफी दूर जाना पड़ता था। चार वर्षो के अपने कामकाज में स्वच्छ भारत अभियान के जरिये साढ़े आठ करोड़ शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य पूरा करते हुए, सरकार ने महिलाओं की प्रतिष्ठा को सर्वाधिक प्रधानता दी है। 

देश का प्रधानमंत्री एक पुरुष होते हुए भी, उनके कार्यकाल में स्वतंत्र भारत में महिलाओं के लिए रजोधर्म और राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता प्रबंधन के मार्गदर्शक तत्व देश को समर्पित किए गए हैं। सार्वजनिक तौर पर इसकी चर्चा नहीं होती है, लेकिन निश्चित रूप से यह सरकार के एकीकृत विकास के दृष्टिकोण का प्रमुख उदाहरण है।

महिलाओं के अकेले हज यात्र पर जाने का रास्ता भी सरकार ने खोला। पासपोर्ट पर पिता के नाम की अनिवार्यता का नियम बदला।  देश में गरीबी की वजह से वस्त्रोद्योग व्यवसाय में रेशम धागों पर होने वाली प्रक्रिया अनेक दशक से अस्वच्छता का प्रतीक बनी हुई थी। 

यह अस्वच्छता दूर करने के लिए मोदी सरकार ने 2017 से 2020 की अवधि में एकीकृत रेशम विकास योजना के द्वारा बुनियादी यंत्रों को प्रोत्साहन दिया। सरकार की कल्पना शीलता का यह विशेष उदाहरण है। 
 कार्यस्थलों पर महिलाओं का लैंगिक अथवा मानसिक  शोषण न हो, इस बाबत सरकार विशेष सतर्क है। जो व्यावसायिक संस्थान इस बाबत विशेष जागरूकता दिखा रहे हैं और जिम्मेदारी के साथ कार्यरत हैं, केवल उनके लिए कौशल विकास समर्थ योजना के अंतर्गत 1300 करोड़ की निधि की प्रशासकीय मदद प्रमुखता से उपलब्ध कराना सरकार ने तय किया है।

राखी है बराबरी का त्योहार

 महिलाओं के उचित सम्मान बाबत सरकार के प्रत्येक मंत्रलाय और विभागों ने इस संबंध में सजगता दिखाई है। लोकतंत्र के भविष्य के लिए केवल महिलाओं के विकास तक ही सीमित न रहते हुए महिलाओं के नेतृत्व में विकास पर अवलंबित रहा जाए, यह प्रधानमंत्री का केवल दृष्टिकोण ही नहीं बल्कि उनका दृढ़ विश्वास है।

राखी पूर्णिमा के पवित्र दिन एक बहन केवल अपनी रक्षा के लिए भाई के हाथ पर राखी नहीं बांधती है, बल्कि पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर बराबरी के साथ प्रगति करने की लगन और आकांक्षा उसके मन में है। 

यह सिर्फ उसकी भावनात्मक और मानसिक जरूरत ही नहीं बल्कि उसका अधिकार भी है। वर्ष 2022 में बदलते नए भारत में, पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का अवसर भारतीय महिलाओं को अवश्य मिलेगा, इसका विश्वास है।

(लेखिका केंद्र सरकार में मंत्री हैं।)

Web Title: smriti irani opinion on narendra government work for women

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