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शरद जोशी का ब्लॉग: पाकिस्तान को रेगिस्तान बनने का डर

By शरद जोशी | Updated: June 1, 2019 05:48 IST

सच्चाई यह है कि सतलज से अभी पाकिस्तान अस्सी प्रतिशत और भारत बीस प्रतिशत लाभ लेता है. बजाय इसके कि पाकिस्तान उस अस्सी प्रतिशत का उपयोग नहरों के जरिए करता, वह भारत को रोकना चाहता है.  पाकिस्तान का ध्यान नहरें बनाने की ओर कैसे हो सकता है? उसे तो खंदक खोदना है और हवाई अड्डे तैयार करवाना है. 

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बधाई पाकिस्तान के सूझबूझवाले अक्लमंदों को, राजनीतिज्ञों को, अखबारवालों को कि भारत के खिलाफ भड़कने का नया मौका मिल गया. ‘भाखरा नांगल’ के बनने से अब पाकिस्तान की धरती प्यासी रहेगी, यानी खतरा है. इस वजह से भारत के खिलाफ चीखना स्वाभाविक है. प्रचार है कि वह जमीं जो शहद और दूध में डूबी रहती थी, रातोंरात रेगिस्तान बन रही है. शहद और दूध अमेरिकी या पाकिस्तानी, इसका कोई उल्लेख नहीं.

कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने बहावलपुर के नहरी जल के मामले को लेकर विरोधी  आवाजें जगाई थीं कि भारत ने पानी का उपयोग कर बाकी का पानी दिया है. तब तो केवल गन्ना, टेरिया व चावल की फसल ही बिगड़ी थी मगर अब तो पाकिस्तान का दूध, मक्खन सब नष्ट हो गया. तब तो नुकसान केवल मुलतान, मांटगुमरी व लाहौर को था, पर अब तो सारा पाकिस्तान सहारा रेगिस्तान हो रहा है. पर उस दिन जब पत्रकारों ने मोहम्मद अली से पूछा कि ‘‘जी, हमें आंकड़े बताइए. आंकड़े हम जानना चाहते हैं कि कितना नुकसान हो रहा है?’’ तो सेक्रेटरी आंकड़े लेने दौड़े, मोहम्मद अली भी गए, मगर अफसोस, खाली हाथ आ गए. आंकड़े आए नहीं थे. था तो केवल एक पत्र जो हिंदुस्तान के हाई कमिश्नर ने दिया था व संसार बैंक के पत्र थे जिसमें पाकिस्तान के आरोप निराधार माने गए थे.

सच्चाई यह है कि सतलज से अभी पाकिस्तान अस्सी प्रतिशत और भारत बीस प्रतिशत लाभ लेता है. बजाय इसके कि पाकिस्तान उस अस्सी प्रतिशत का उपयोग नहरों के जरिए करता, वह भारत को रोकना चाहता है.  पाकिस्तान का ध्यान नहरें बनाने की ओर कैसे हो सकता है? उसे तो खंदक खोदना है और हवाई अड्डे तैयार करवाना है. 

इधर लाहौर में फिल्म के प्रदर्शन पर नारेबाजी हो रही है. स्वर्णलता, जेड अहमद वगैरह एक्टर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं कि भारत का खेल कैसे दिखाया जाता है. इस सबके पीछे एक जाल है - अमेरिकी जाल. जब खाने-पीने की धरती अमेरिका को हवाई जहाजों के लिए दी जा रही है और अमेरिका पाकिस्तान को जंग का सामान दे रहा है तो यह निश्चित है कि अमेरिका पीने के लिए पानी की बोतलें भी देगा, दूध भी देगा और शहद भी देगा. सो रोज इस तरह से ‘डान’, ‘कराची टाइम्स’ और ‘मॉर्निग’ का चीखना बेकार है. पाक को यह जानकर अफसोस तो होगा, मगर क्या करें? सच्चाई है कि हमारे यहां और भी कई जगह पानी को बांधा जा रहा है, नहरें, बांध बन रहे हैं. निर्माण का हाथी जा रहा है, आपका बाजार है-मुंह और आदतें हैं-क्या किया जा सकता है. 

(रचनाकाल - 1950 का दशक)

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