सारंग थत्ते का ब्लॉगः पूर्वोत्तर में बहुत काम करना बाकी
By सारंग थत्ते | Updated: December 28, 2018 18:30 IST2018-12-28T18:30:33+5:302018-12-28T18:30:33+5:30
सरकार ने उत्तर-पूर्वी इलाकों के प्रदेशों के लिए एक अलग विभाग और मंत्री को नामजद कर अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई है, जो तारीफ के काबिल है. लेकिन जमीन पर सड़कों और पुलों का निर्माण युद्ध स्तर पर होना जरूरी है

सारंग थत्ते का ब्लॉगः पूर्वोत्तर में बहुत काम करना बाकी
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पूर्व के ‘सेवन सिस्टर्स’ नाम से जाने जानेवाले प्रदेश - अरुणाचल, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा अपना दुखड़ा रो रहे हैं. कुछ हद तक पिछली सरकार ने इस इलाके की उपेक्षा ही की है, अब कम से कम एक अलग विभाग और मंत्री हैं जिसके जिम्मे ये प्रदेश हैं.
यदि आंकड़ों को देखें तो इस पूरे इलाके का क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल का सिर्फ 7.7 प्रतिशत है एवं राष्ट्रीय आबादी का 0.11 प्रतिशत यहां बसता है. यही इस क्षेत्र की विडंबना है. कुछ हद तक इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति भी इस क्षेत्र के विकास में बाधक है.
जहां मैदानी इलाकों में नदियों का कहर है, वहीं पहाड़ी और जंगली इलाकों में रहने के साधन बनाना मुश्किल ही नहीं कहीं कहीं नामुमकिन भी है. आज भी 3488 किमी की सीमा पर गश्त कर रहे आईटीबीपी के जवानों को अपनी पोस्ट पर पहुंचने के लिए कहीं-कहीं सात दिन और कहीं 21 दिन का समय लगता है. जिंदगी इतनी आसान नहीं है इस क्षेत्र में, नाममात्र के कारखाने और उद्योग हैं और बिजली की आपूर्ति सब जगह नहीं है. क्योंकि पहाड़ों को काट कर बड़े टॉवर लगाए गए हैं जिन्हें ठीक करने में मशक्कत करनी पड़ती है. सभी इलाकों में आज भी मोबाइल सेवा का लाभ न मिलने से लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने में हम सफल नहीं हुए हैं.
विशाल ब्रrापुत्र नदी का उद्गम तिब्बत में है. बोगीबील पुल के निर्माण के साथ ब्रह्मपुत्र नदी पर अब तक कुल 6 पुल बन चुके हैं. इक्कीसवीं सदी में सेना को अपने जवानों को सीमा तक रसद पूर्ति के लिए सड़कें नितांत आवश्यक हैं. हमारी पूर्वोत्तर की कई चौकियों पर आज भी अंडर मेंटेनेंस का तमगा लगा हुआ है. पिछले कुछ वर्षो में सड़क निर्माण में तेजी आई है, लेकिन यह रफ्तार फिलहाल काफी नहीं है.
अग्रिम हवाई पट्टियों का निर्माण अपने आप में एक अलग चुनौती है. उत्तर-पूर्व में होने वाले किसी भी संघर्ष का वजूद एक लंबे दौर का नहीं होगा, इस तथ्य में कोई दो राय नहीं है. इसलिए हमें भारत के पश्चिमी इलाके से भारवाहक जहाजों से पूर्वोत्तर राज्यों में सैनिकों और रसद की पूर्ति करनी पड़ेगी. पूर्वोत्तर इलाके में नई उड़ान पट्टियां बनाई जा रही हैं जिसे एडवांस लैंडिंग ग्राउंड कहा जाता है. हमारे सी 130 जे हक्यरुलिस भार वाहक उतर सकेंगे. लेकिन इन हवाई केंद्रों से आगे के मोर्चो तक सड़क निर्माण की जरूरत अहम है.
सरकार ने उत्तर-पूर्वी इलाकों के प्रदेशों के लिए एक अलग विभाग और मंत्री को नामजद कर अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई है, जो तारीफ के काबिल है. लेकिन जमीन पर सड़कों और पुलों का निर्माण युद्ध स्तर पर होना जरूरी है