संतोष देसाई का ब्लॉग: कानून के शासन पर लोगों का टूटना नहीं चाहिए विश्वास

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 15, 2020 09:04 AM2020-03-15T09:04:45+5:302020-03-15T09:04:45+5:30

यह सच है कि सांप्रदायिक दंगों के दौरान पुलिस का काम सबसे चुनौतीपूर्ण होता है. उन्हें लोगों के रोष का सामना करना पड़ता है. अत्यंत कठिन परिस्थितियों में उन्हें काम करना पड़ता है जिसमें वे घायल होते हैं और कई बार तो उन्हें अपने प्राण भी गंवाने पड़ते हैं. ऐसे समय में निश्चित रूप से उनके पास बल प्रयोग का अधिकार रहता है, फिर भी उन्हें नियंत्रित तरीके से काम करना होता है.

Santosh Desai blog: People should not lose faith in the rule of law | संतोष देसाई का ब्लॉग: कानून के शासन पर लोगों का टूटना नहीं चाहिए विश्वास

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखना पुलिस का काम होता है तथा इसके लिए उसका निर्णायक ढंग से और बिना किसी पक्षपात के काम करना जरूरी है. यह ऐसा स्वाभाविक कार्य है जिसे अलग से रेखांकित किए जाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए. लेकिन वर्तमान में परिस्थितियां कुछ ऐसी बन गई हैं कि इसे रेखांकित करना जरूरी हो गया है. पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई मामले सामने आए जिनमें पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे हैं. ऐसे अनेक वीडियो सोशल मीडिया पर देखे जा रहे हैं. पुलिस कहीं विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में घुसकर छात्रों को पीटती नजर आ रही है तो कहीं सीसीटीवी कैमरे तोड़ते हुए दिखाई दे रही है.

एक देश के रूप में, हम अपने सार्वजनिक संस्थानों की अक्षमता के आदी हैं. हम जानते हैं कि सरकारी दफ्तरों का कामकाज कैसे चलता है और पुलिस की निष्क्रियता को भी हमने सहन करने की आदत डाल ली है. लेकिन पुलिस की हाल के दिनों की सक्रियता कुछ अलग तरह की दिखी. पुलिस के कार्रवाई नहीं करने की अनेक शिकायतें सामने आईं,  जिनमें आरोप लगाया गया है कि पुलिस को जल्दी बुलाए जाने पर भी वह तत्काल नहीं पहुंची. दूसरी ओर, ऐसे अनेक वीडियो हैं जिनमें हमलों के दौरान पुलिस मूकदर्शक की भूमिका में दिखाई दे रही है.

यह सच है कि सांप्रदायिक दंगों के दौरान पुलिस का काम सबसे चुनौतीपूर्ण होता है. उन्हें लोगों के रोष का सामना करना पड़ता है. अत्यंत कठिन परिस्थितियों में उन्हें काम करना पड़ता है जिसमें वे घायल होते हैं और कई बार तो उन्हें अपने प्राण भी गंवाने पड़ते हैं. ऐसे समय में निश्चित रूप से उनके पास बल प्रयोग का अधिकार रहता है, फिर भी उन्हें नियंत्रित तरीके से काम करना होता है. कानून की मर्यादा का पालन उनके लिए जरूरी है. कानून तोड़ने वाला कोई भी हो, उससे निपटने में जाति, धर्म या आरोपी की पृष्ठभूमि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता.

पुलिस द्वारा सीसीटीवी कैमरे तोड़े जाने की घटना भले ही बहुत बड़ी न लगे, लेकिन इसमें पूर्वनियोजित उद्देश्य दिखाई देता है. सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करने वालों से उसका मुआवजा वसूलने की बात कही जाती है, फिर पुलिस की तोड़फोड़ की कार्रवाई को कैसे जायज ठहराया जा सकता है? यह भी माना जा सकता है कि मारपीट का सबूत मिटाने के लिए सीसीटीवी कैमरों की तोड़फोड़ की गई हो!

कानून के मूल तत्वों के पालन पर ही राज्य का अस्तित्व निर्भर है. सरकारें आती हैं और जाती हैं लेकिन नागरिकों का अगर कानून के शासन पर से एक बार विश्वास उठ जाए तो इसे दुबारा प्रस्थापित कर पाना कठिन हो जाता है. 

Web Title: Santosh Desai blog: People should not lose faith in the rule of law

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