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Russia-Ukraine war: दोस्ती का मतलब आंख मूंद कर समर्थन देना नहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध पर बोले यशवंत सिन्हा

By शरद गुप्ता | Updated: March 9, 2022 21:19 IST

Russia-Ukraine war: संयुक्त राष्ट्र में तीन बार की तटस्थता यह दर्शाती है कि भारत कोई पक्ष नहीं लेना चाहता. यूक्रेन में रूस की सेना का प्रवेश स्पष्ट रूप से आक्रामकता का कार्य था.

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ठळक मुद्देदोस्ती का मतलब है दोस्त को सही सलाह देना. संघर्ष पर अपना रुख स्पष्ट रखना चाहिए था.कोई शक नहीं कि रूस हमारा सबसे भरोसेमंद ऑल वेदर फ्रेंड है.

Russia-Ukraine war: आईएएस अधिकारी के रूप में देश की सेवा करने के बाद यशवंत सिन्हा देश के वित्त मंत्नी और विदेश मंत्नी, दोनों रह चुके हैं. वे चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे प्रधानमंत्रियों के भरोसेमंद रहे और उन्होंने अर्थव्यवस्था व कूटनीति की जटिलताओं को सुलझाया. सिन्हा से रूस-यूक्रेन युद्ध के भारत और विश्व पर प्रभाव को लेकर लोकमत ग्रुप के सीनियर एडिटर शरद गुप्ता ने बात की. पढ़िए साक्षात्कार के प्रमुख अंश -

क्या भारत ने रूसयूक्रेन युद्ध के प्रति सही रुख अपनाया है

संयुक्त राष्ट्र में तीन बार की तटस्थता यह दर्शाती है कि भारत कोई पक्ष नहीं लेना चाहता. यूक्रेन में रूस की सेना का प्रवेश स्पष्ट रूप से आक्रामकता का कार्य था. दोस्ती की क्या कीमत रह जाती है अगर वह एक दोस्त को दूसरे को यह न बताने दे कि वह कितना गलत है?

दोस्ती का मतलब आंख मूंद कर साथ देना नहीं है. दोस्ती का मतलब है दोस्त को सही सलाह देना. इसलिए जब तक भारत सरकार इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती है - जिसे उसने अपने लोगों के साथ साझा नहीं किया है कि यूक्रेन में रूसी आक्रमण उचित है, उसे इस संघर्ष पर अपना रुख स्पष्ट रखना चाहिए था.

क्या अमेरिका और चीन के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध नहीं होने के कारण ही हम कोई पक्ष लेने से हिचक रहे हैं?

इसमें कोई शक नहीं कि रूस हमारा सबसे भरोसेमंद ऑल वेदर फ्रेंड है. हम अपनी रक्षा आपूर्ति का बड़ा हिस्सा रूस से मंगवाते हैं. लेकिन इसका फायदा दोनों पक्षों को होता है. हमें हथियार मिलते हैं और उन्हें मूल्य मिलता है. यह उनके उद्योग को चालू रखता है और रूस को मूल्यवान विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराता है.

लेकिन पश्चिम ने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया?

उनका लोकतंत्न कमजोर हो गया है. उनके पास रूस के खिलाफ कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति नहीं है और इसी की पुतिन परीक्षा ले रहे हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि पैक्स अमेरिकाना (विश्व शांति के तथाकथित अमेरिकी प्रयास) खत्म हो गया है. क्या हम अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के ऐसे चरण में प्रवेश कर रहे हैं जहां शक्तिशाली कमजोरों को वश में कर लेंगे? यदि यह परिपाटी बन जाती है तो राष्ट्रों के बीच संप्रभु समानता की अवधारणा अतीत की बात हो जाएगी.

क्या नाटो ने रूस के साथ पूर्व की ओर रूसी सीमाओं की ओर विस्तार न करने के समझौते का उल्लंघन नहीं किया है?

हां, यह तो है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि नाटो में यूक्रेन के शामिल होने से पश्चिमी सेनाएं रूसी सीमाओं तक पहुंच जातीं. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मुद्दों को सैन्य कार्रवाई से नहीं, बातचीत से सुलझाया जाना चाहिए.

क्या रूस ने यूक्रेन के बारे में गलत अनुमान लगाया है?

रूस ने नाटो की प्रभावशून्यता का सही अनुमान लगाया लेकिन यूक्रेन के लोगों की इच्छा का गलत आकलन किया. इसलिए यूक्रेनियन पिछले 13 दिनों से लड़ रहे हैं.

लेकिन क्या यूक्रेन के लिए तटस्थ रहने के बजाय नाटो में शामिल होने के लिए रूस की उपेक्षा करना आत्मघाती था?

हां, तटस्थ रहने का विकल्प उनके लिए उपलब्ध था. वे अपने देश को आर्थिक रूप से पश्चिमी यूरोप के साथ एकीकृत कर सकते थे लेकिन उन्हें उनके सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं होना चाहिए था.ल्ल आपको क्या लगता है कि इस युद्ध का भारत की अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ेगा?

हमारे कच्चे तेल का अस्सी प्रतिशत आयात किया जाता है और यदि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, जैसा कि वे पहले ही ऊपर जा रही हैं, तो इसका सभी आर्थिक गतिविधियों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. वैश्विक व्यापार में गिरावट का खामियाजा भारत को भुगतना पड़ेगा. तीसरा, यह मुद्रास्फीति को प्रभावित करेगा. आधुनिक अर्थव्यवस्था ज्यादातर भावनाओं पर चलती है. इस प्रकार, अर्थव्यवस्था की गतिविधियां धीमी होने जा रही हैं.

यदि आप भारत के प्रधानमंत्नी होते तो आप क्या कदम उठाते और किस स्तर पर?

पहली चीज जो मैंने की होती, वह यह है कि वित्त मंत्नी को शांतिदूत के रूप में रूस भेजा जाता और यह सुनिश्चित किया जाता कि संघर्ष का समाधान बातचीत के माध्यम से किया जाए, न कि सशस्त्न कार्रवाइयों के माध्यम से. हम शांतिदूत भेजने के लिए फ्रांस जैसे कुछ समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग कर सकते थे. यह संदेश जाता कि सशस्त्न संघर्ष से बचने के प्रयासों में भारत अग्रणी भूमिका में है.

क्या ऐसे में गुटनिरपेक्ष आंदोलन को याद नहीं किया जा रहा है?

हां बिल्कुल. यह हमेशा तीसरे ध्रुव के रूप में कार्य करता था. यह आंदोलन अभी भी प्रासंगिक है और भारत को वैश्विक शांति स्थापित करने के लिए रूस और अमेरिका के अलावा एक तीसरी ताकत सुनिश्चित करने के लिए इसे पुनर्जीवित करना चाहिए.

और रूस की अर्थव्यवस्था के बारे में क्या?

कच्चे तेल में रूसी निर्यात का हिस्सा 60 फीसदी है और यह वैश्विक तेल व्यापार का एक प्रमुख हिस्सा है. इस पर प्रतिबंध लगाने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें तत्काल बढ़ जाएंगी. इससे पूरी दुनिया में दहशत की स्थिति पैदा हो जाएगी. रूस के तेल और गैस के बिना, यूरोप का आधा हिस्सा जम सकता है. उर्वरक की कीमतें बढ़ेंगी और अनाज की कीमतें भी बढ़ेंगी.

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