रहीस सिंह का ब्लॉग: पॉवर सेंटर बनने की ओर बढ़ रहा है भारत

By रहीस सिंह | Published: June 13, 2022 06:23 PM2022-06-13T18:23:28+5:302022-06-13T18:29:58+5:30

नई विश्वव्यवस्था कैसी होगी, यह अभी तय नहीं हो पाया है। हां, मोटे तौर पर मॉस्को और वाशिंगटन दो धुरियों के रूप में अवश्य दिख रहे हैं। बीजिंग को किस रूप में स्वीकार किया जाएगा, स्पष्ट नहीं है लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने बीजिंग को मॉस्को के निकट ला दिया है और मॉस्को को बीजिंग का कुछ हद तक ऋणी बना दिया है।

Rahees Singh's blog: India is moving towards becoming a power center | रहीस सिंह का ब्लॉग: पॉवर सेंटर बनने की ओर बढ़ रहा है भारत

रहीस सिंह का ब्लॉग: पॉवर सेंटर बनने की ओर बढ़ रहा है भारत

Highlightsनई विश्वव्यवस्था मोटे तौर पर मॉस्को और वाशिंगटन जैसे दो धुरियों के रूप में दिखाई दे रही है लेकिन यह भी सच है कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने बीजिंग को मॉस्को के और निकट ला दिया है

वर्तमान समय में विश्वव्यवस्था संक्रमण की स्थिति से गुजर रहा है। नई विश्वव्यवस्था कैसी होगी, यह अभी तय नहीं हो पाया है। हां, मोटे तौर पर मॉस्को और वाशिंगटन दो धुरियों के रूप में अवश्य दिख रहे हैं। बीजिंग को किस रूप में स्वीकार किया जाएगा, स्पष्ट नहीं है लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने बीजिंग को मॉस्को के निकट ला दिया है और मॉस्को को बीजिंग का कुछ हद तक ऋणी बना दिया है।

पश्चिमी देश वाशिंगटन के साथ तो हैं लेकिन ऊर्जा संकट उन्हें मॉस्को के प्रति नरम रहने का दबाव भी डाल रहा है यानी पश्चिमी देश सही अर्थों में अनिर्णय की स्थिति में हैं।

पिछले कुछ वर्षों में निर्मित हुए मिनीलैटरल्स यानी छोटे-छोटे समूह भी निर्णायक भूमिका में आ रहे हैं। ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि भारत किसके साथ होगा और किसका नेतृत्व करेगा।

वैसे मिनीलैटरल्स का भारत के प्रति झुकाव अधिक है, लेकिन इन देशों की अपेक्षाएं भी ज्यादा हैं जिन्हें चीन तो पूरा कर सकता है परंतु भारत नहीं, इसलिए ये देश कुछ कदम आगे और कुछ कदम पीछे की मुद्रा में ही रहेंगे, लेकिन भारत के अनुकूल रहेंगे, यह उम्मीद की जा सकती है।

दरअसल पिछले आठ वर्षों में भारतीय विदेश नीति ‘स्टैंडबाइ मोड’ से ‘फॉरवर्ड ट्रैक’ पर आई है, इसमें किसी को कोई संशय नहीं होना चाहिए। यह भी सच है कि भारत एक ‘सॉफ्ट स्टेट’ से ‘पॉवर सेंटर’ (शक्ति केंद्र) में परिवर्तित होने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ा है।

इसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि नई विश्वव्यवस्था (न्यू वर्ल्ड ऑर्डर) में भारत की उपेक्षा नहीं की जा सकती तो क्या यह माना जा सकता है कि नई विश्वव्यवस्था में चार पावर सेंटर होंगे- वाशिंगटन, मॉस्को, बीजिंग और नई दिल्ली? इसके लिए दो चीजें आवश्यक होंगी।

पहली यह कि भारत को एक आर्थिक ताकत बनना होगा, कम से कम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था या इससे और अधिक. दूसरी-चीन की अर्थव्यवस्था में बनते हुए बुलबुलों को फूटना होगा। इन सबसे अलग एक बात यह भी है कि छोटे देशों का चीन के प्रति विश्वास घट रहा है।

श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की जो दुर्गति हुई है, उसे लेकर दुनिया के उन देशों की चीन को लेकर अपनी धारणा बदलने लगी है जो चीन की चेकबुक डिप्लोमेसी या ऋण जाल (डेट ट्रैप) में फंसे हुए हैं। यह स्थिति भारत को लाभांश प्रदान करने वाली रहेगी।

वैसे भी भारत जिस विदेश नीति के साथ आगे बढ़ा है उसमें शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, सहकार, सहयोग तथा समृद्धि का भाव अधिक है। इसमें भी वैक्सीन मैत्री (वैक्सीन डिप्लोमेसी) जैसे कदमों ने भारत की विदेश नीति में वैल्यू एडीशन किया है़। यही नहीं पिछले आठ वर्षों में भारत ने वैश्विक संबंधों के वस्तुकरण (रेईफिकेशन) की बजाय बुनियादी सहयोग संबंध पर अधिक बल दिया है।

भारत की पड़ोसी प्रथम (नेबरहुड फर्स्ट) की नीति अपने हर पड़ोसी को ‘सहोदरता के साथ सहयोग’ के साथ लेकर चलने में आंशिक अवरोधों के बावजूद बेहद कामयाब रही है, जिसका उदाहरण हम भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव आदि के रूप में देख सकते हैं। श्रीलंका की संकट के समय सहायता भी इसी का एक उदाहरण है।

इसके साथ ही भारत ने सन्निकट पड़ोसियों के साथ रिश्ते मजबूत किए। ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘पीवोट टू वेस्ट’ विदेश नीति के दो ऐसे आयाम हैं जिनके चलते भारत ने पूर्वी व दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ अपने डायनॉमिक रिश्ते (कल्चर, कॉमर्स और कनेक्टिविटी के साथ) स्थापित किए। इसके साथ ही पश्चिम एशिया के साथ भी भारत व्यापार पर आधारित रिश्तों से कहीं आगे निकलकर रणनीति साझेदारी तक पहुंचने में कामयाब रहा।

Web Title: Rahees Singh's blog: India is moving towards becoming a power center

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