ब्लॉग: आम लोगों की बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 16, 2022 02:44 PM2022-07-16T14:44:20+5:302022-07-16T14:44:20+5:30

न्यायमूर्ति प्रसन्न वराले की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गुरुवार को कहा कि गांवों में हेलीपैड बनाने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन महाराष्ट्र सरकार को अच्छी सड़कों का भी निर्माण कराना चाहिए ताकि बच्चे स्कूल जा सकें।

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ब्लॉग: आम लोगों की बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता

बंबई उच्च न्यायालय का यह कहना कि उसे हेलिपैड पर आपत्ति नहीं है लेकिन सड़कें भी बननी चाहिए- समाज की एक बड़ी विसंगति की ओर इशारा करता है। चुनिंदा लोगों को विशेष सुविधाएं बेशक उपलब्ध करवाई जाएं लेकिन उसके पहले आम लोगों को बुनियादी सुविधाएं तो मिलें! सातारा जिले के जिस खिरखिंडी गांव की छात्राओं की समस्या का स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणी की, उस गांव के विद्यार्थियों को स्कूल पहुंचने के लिए पहले नाव से कोयना नदी पार करनी पड़ती है और उसके बाद जंगल में पैदल चलना पड़ता है। 

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सातारा जिले के ही रहने वाले हैं और वहां पर दो हेलीपैड हैं। न्यायमूर्ति प्रसन्न वराले की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गुरुवार को कहा कि गांवों में हेलीपैड बनाने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन महाराष्ट्र सरकार को अच्छी सड़कों का भी निर्माण कराना चाहिए ताकि बच्चे स्कूल जा सकें। यह विडंबना ही है कि एक तरफ तो आज हम चांद के आगे मंगल तक इंसान को पहुंचाने की तैयारियों में लगे हुए हैं और दूसरी ओर सुदूर गांव-देहातों में विद्यार्थियों को नदी और जंगल पार करके स्कूल पहुंचना पड़ रहा है! शिक्षा हासिल करना हर बच्चे का अधिकार है और सभी सरकारों का यह दायित्व है कि वह इसे उपलब्ध कराएं। न्यायालय द्वारा ऐसा करने का आदेश दिए जाने की तो नौबत ही नहीं आनी चाहिए। 

खिरखिंडी गांव का मामला सामने आने के बाद न्यायालय के हस्तक्षेप से वहां के विद्यार्थियों की तो राह आसान होने की उम्मीद जग गई है लेकिन कौन दावे के साथ कह सकता है कि देश में ऐसे और भी गांव नहीं हैं जहां के बच्चे बुनियादी सुविधाओं से महरूम रहते हुए शिक्षा हासिल करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं! बेशक आज हवाई यात्राएं भी लग्जरी नहीं रह गई हैं, समाज के एक वर्ग की वे जरूरत बन चुकी हैं, उसकी सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए लेकिन आम आदमी की बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी को तो किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। 

अगर बजट कम हो तो निश्चित रूप से आम आदमी के हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। लेकिन प्राय: हर जगह ही यह देखने में आता है कि महत्वपूर्ण और अति महत्वपूर्ण लोगों को सुख-सुविधा उपलब्ध कराने में तो शासन-प्रशासन द्वारा कोई कसर नहीं छोड़ी जाती, जबकि आम जनता प्राथमिक जरूरतों की पूर्ति के लिए भी तरसती रहती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बंबई उच्च न्यायालय की टिप्पणी एक नजीर बनेगी और सरकारें जनहितकारी कामों को प्राथमिकता देने की ओर उन्मुख होंगी।

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