प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: महिलाओं को अभी भी है समानता की दरकार

By प्रमोद भार्गव | Published: August 26, 2020 05:27 AM2020-08-26T05:27:21+5:302020-08-26T05:27:21+5:30

वैश्विक आर्थिकी के चलते महिलाओं के आर्थिक रूप से मजबूत व स्वावलंबी होने का प्रतिशत बहुत मामूली है. लेकिन इस आर्थिकी के चलते जिस तेजी से असमानता की खाई चौड़ी हुई और बढ़ती महंगाई के कारण आहारजन्य वस्तुएं आमजन की क्र य-शक्ति से जिस तरह से बाहर हुईं, उसका सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब महिलाओं को भुगतना पड़ा है.

Pramod Bhargava blog over Women's Equality Day: Women still need equality | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: महिलाओं को अभी भी है समानता की दरकार

प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: महिलाओं को अभी भी है समानता की दरकार

 प्रति वर्ष 26 अगस्त को महिला समानता दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है. इस दिवस की शुरुआत 1893 में न्यूजीलैंड से हुई. अमेरिका में 26 अगस्त 1920 को उन्नीसवां संविधान संशोधन करके पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया गया. इसके पहले वहां महिलाओं को द्वितीय श्रेणी का नागरिक माना जाता था. कई गैरलोकतांत्रिक देशों में आज भी महिलाओं की स्थिति सम्मानजनक नहीं है.

भारत में स्वतंत्नता के बाद से ही महिला को मतदान सहित सभी तरह के चुनाव लड़ने व प्रशासनिक पद प्राप्त करने के पुरुष के बराबर अधिकार मिले हुए हैं. प्रधानमंत्नी राजीव गांधी के कार्यकाल में संविधान में 73वां संशोधन कर पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में महिलाओं को 33 प्रतिशत पद आरक्षित किए गए. त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली में कई राज्यों ने यही आरक्षण 50 प्रतिशत तक कर दिया है.

इससे ग्रामीण महिलाओं की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक हैसियत बढ़ी, वहीं वे घूंघट की ओट से बाहर आकर अपने अधिकारों के प्रति आवाज भी बुलंद करने लगीं. बावजूद जो ग्रामीण व शहरी मजदूर महिलाएं मुख्यधारा में नहीं आ पाईं, वे आज भी तमाम तरह की बदहाली ङोलने को मजबूर हैं. इस कारण भारत ही नहीं दुनिया भर की निम्न आय वर्ग से जुड़ी महिलाओं को भूख से लेकर अनेक तरह की त्नासदियां ङोलनी पड़ रही हैं.  

आर्थिक विकास के दौर में सुरसा के मुख की तरह फैलती भूख की सबसे ज्यादा त्नासदी दुनिया की आधी आबादी अर्थात महिलाओं को ङोलनी पड़ी है. दुनिया की साठ फीसदी महिलाएं भूख, कुपोषण और रक्ताल्पता की शिकार हैं. नव-उदारवाद के चलते लगातार बढ़ रही आर्थिक विसंगति व असमानता के चलते गरीब महिलाओं द्वारा बच्चे बेचने की खबरें भी आती रहती हैं. ऐसी घटनाएं जहां एक ओर महिला सशक्तिकरण के दावों की पोल खोलती हैं, वहीं यह हकीकत भी सामने आती है कि लाचार लोगों के लिए देश और प्रदेश सरकारों द्वारा चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं की महत्ता व उपादेयता वाकई कितनी है.

प्रकृतिजन्य स्वभाव के कारण औरतों को ज्यादा भूख सहनी पड़ती है. दुनियाभर में भूख की शिकार हो रही आबादी में से 60 प्रतिशत महिलाएं ही होती हैं, क्योंकि उन्हें स्वयं की क्षुधा-पूर्ति से ज्यादा अपनी संतान की भूख मिटाने की चिंता होती है. कुछ ऐसी ही वजहों के चलते भूख, कुपोषण व अल्प-पोषण से उपजी बीमारियों के कारण हर रोज 12 हजार औरतें मौत की गोद में समा जाती हैं. अर्थात महज सात सेकंड में एक औरत मौत की गिरफ्त में आ जाती है. आधी दुनिया की हकीकत यह है कि परिवार को भरपेट भोजन कराने वाली मां को एक समय भी भोजन आधा-अधूरा ही नसीब हो पाता है. परिजनों की सेहत के लिए तमाम नुस्खे अपनाने वाली ‘स्त्नी’ खुद अपना जीवन बचाने के लिए जीवनदायी नुस्खे का प्रयोग नहीं करती. अपनी शारीरिक रचना की इसी विलक्षण सहनशीलता के कारण भूखी महिलाओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.

विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है, जिन्हें अल्प पोषण पाकर ही संतोष करना पड़ता है. ऐसे सर्वाधिक 90 करोड़ लोग विकासशील देशों में रहते हैं. विश्व के करीब 18 करोड़ बच्चे और 38 करोड़ कुपोषित महिलाओं में 70 फीसदी सिर्फ 10 देशों में रहते हैं और उनमें से भी आधे से अधिक केवल दक्षिण एशिया में. बढ़ती आर्थिक विकास दर पर गर्व करने वाले भारत में भी कुपोषित महिलाओं व बच्चों की संख्या करोड़ों में है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों में कुपोषण के हालात कमोबेश अफ्रीका के इथोपिया, सोमालिया और चाड जैसे ही हैं.

वैश्विक आर्थिकी के चलते महिलाओं के आर्थिक रूप से मजबूत व स्वावलंबी होने का प्रतिशत बहुत मामूली है. लेकिन इस आर्थिकी के चलते जिस तेजी से असमानता की खाई चौड़ी हुई और बढ़ती महंगाई के कारण आहारजन्य वस्तुएं आमजन की क्र य-शक्ति से जिस तरह से बाहर हुईं, उसका सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब महिलाओं को भुगतना पड़ा है. अपने बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी के चलते भूख और कुपोषण की शिकार भी वही हुईं. गरीब महिला को यदि भूख और कुपोषण से उबारना है तो जरूरी है कि और ग्रामीण आबादी को प्रकृति और प्राकृतिक संपदा से जोड़े जाने के उपक्र म बहाल हों. तभी नारी के समग्र उत्थान व सबलीकरण के सही अर्थ तलाशे जा सकते हैं और तभी भारत में समानता की बुनियाद मजबूत होगी.      
 

Web Title: Pramod Bhargava blog over Women's Equality Day: Women still need equality

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे