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पीयूष पांडे का ब्लॉग: बुरा न मानो मिलावट है

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 7, 2020 15:48 IST

निश्चित रूप से ये मिलावट का स्वर्णकाल है. लोग आधुनिकता और विकास का नारा लगाते हुए मिलावट के स्वर्णकाल को एंजॉय कर रहे हैं. मिलावट ही सत्य है. कभी सौभाग्य से शुद्ध माल के दर्शन हो जाएं तो लोग उलझन में पड़ जाते हैं कि फैशन के इस युग में 100 फीसदी टंच माल कहां से आ गया? हाल यह है कि दिल्ली के ज्यादातर लोगों को अगर पूरी तरह शुद्ध हवा मिल जाए तो उनकी तबीयत खराब हो सकती है. देश के करोड़ों लोग शुद्ध दूध पी लें तो उनका हाजमा बिगड़ सकता है. आदत ही नहीं है.

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एक जमाना था, जब राजनेता जमीन से जुड़े होते थे. अब राजनेता स्विस बैंक से जुड़े होते हैं. घोटालों से जुड़े होते हैं. जेल से, बवाल से, बयान से, हंगामे से, दंगे से जुड़े होते हैं. फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब से जुड़े होते हैं. जमीन के अलावा जुड़ने लायक जितनी चीजें हैं, राजनेता उनसे जुड़े रहना पसंद करते हैं. एक पार्टी में रहते हुए कई बार उनके तार दूसरी पार्टी के नेताओं से जुड़े रहते हैं. इस कनेक्शन से अपनी पार्टी में टिकट रूपी बल्ब फ्यूज होने पर दूसरी पार्टी से करंट मिलने में परेशानी नहीं होती.

लेकिन कभी-कभी अचानक ऐसी खबरें आती हैं कि लगता है राजनेता न केवल जमीन से जुड़ा है, बल्कि आम आदमी के साथ समानता के मामले में दौड़ लगा रहा है. मसलन केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले के मंत्नी के आवास से लिया गया पीने के पानी का नमूना भी आईएसओ मानकों पर विफल पाया गया है. कुछ दिन पहले इन्हीं मंत्नीजी के यहां 420 रुपए किलो के भाव से खरीदे गए मोम लगे मिलावटी सेब पहुंच गए थे.

निश्चित रूप से ये मिलावट का स्वर्णकाल है. लोग आधुनिकता और विकास का नारा लगाते हुए मिलावट के स्वर्णकाल को एंजॉय कर रहे हैं. मिलावट ही सत्य है. कभी सौभाग्य से शुद्ध माल के दर्शन हो जाएं तो लोग उलझन में पड़ जाते हैं कि फैशन के इस युग में 100 फीसदी टंच माल कहां से आ गया? हाल यह है कि दिल्ली के ज्यादातर लोगों को अगर पूरी तरह शुद्ध हवा मिल जाए तो उनकी तबीयत खराब हो सकती है. देश के करोड़ों लोग शुद्ध दूध पी लें तो उनका हाजमा बिगड़ सकता है. आदत ही नहीं है.

लाखों-करोड़ों लोग दूषित पानी पीकर और मिलावटी खाना खाकर भी उतने ही फिट हैं, जितना हजारों रुपए खर्च कर जिम में फिटनेस खोजने वाले हैं. फिर भी, जब कभी किसी सेलेब्रिटी के आम आदमी की तरह मिलावटी माल का शिकार होने की खबर आती है तो गरीब आदमी का लोकतंत्न में विश्वास मजबूत हो जाता है. संविधान में निहित समानता के अधिकार पर भरोसा पुख्ता हो जाता है. क्योंकि सेलेब्रिटी के बारे में हमारा भ्रम है कि वो किसी दूसरी दुनिया के प्राणी हैं, जिन पर न देश की समस्याएं लागू होती हैं, न कोई नियम-कानून.

ऐसे में होली पर आपको कोई मिलावटी माल बेच दे तो नाराज मत होइएगा. आखिर, बुरा न मानो होली है. बुरा न मानो मिलावट है.

टॅग्स :इंडियाराजनीतिक किस्सेहोली
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