आलोक मेहता का ब्लॉगः न्याय व्यवस्था में नव क्रांति लाने की जरूरत

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 14, 2019 08:52 AM2019-12-14T08:52:51+5:302019-12-14T08:52:51+5:30

केंद्रीय कानून मंत्नी रविशंकर प्रसाद ने इस सप्ताह सभी राज्यों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों को पत्न लिखकर आग्रह किया है कि बलात्कार के प्रकरणों पर  दो महीनों में निर्णय और फिर अपील पर छह महीनों में फैसला सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.

Need to bring new revolution in justice system, Article 370, Ayodhya dispute, Citizenship Amendment Act | आलोक मेहता का ब्लॉगः न्याय व्यवस्था में नव क्रांति लाने की जरूरत

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आलोक मेहता 

यह आजादी के बाद लोकतंत्न के लिए ऐतिहासिक वर्ष माना जाएगा. तीन तलाक की समाप्ति, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, अयोध्या में मंदिर पर अंतिम निर्णय और नागरिकता संशोधन कानून को स्वीकृति. इन सभी मामलों में सरकार, संसद और न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण है. नागरिकता संशोधन कानून अब फिर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर पहुंच रहा है. इस दृष्टि से भारत की संपूर्ण न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से सशक्त, साधन संपन्न एवं सफल बनाने के लिए नव क्रांति जैसी पहल सरकार और संसद को करनी चाहिए. 

यों सार्वजनिक कार्यक्रमों में न्याय व्यवस्था के सर्वोच्च सम्मान, विश्वास की बात कही जाती है और जल्द न्याय मिलने का आग्रह बार-बार किया जाता है, लेकिन समय पर न्याय दिलवाने के लिए आवश्यक और निर्णायक कदम नहीं उठाए गए हैं. हैदराबाद के बलात्कार कांड और निर्भया बलात्कार-हत्या मामले में फांसी के मुद्दे को पिछले दिनों जोर-शोर से उठाया गया. लेकिन समय पर न्याय के लिए न्यायाधीश भी तो पर्याप्त संख्या में होने चाहिए.

केंद्रीय कानून मंत्नी रविशंकर प्रसाद ने इस सप्ताह सभी राज्यों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों को पत्न लिखकर आग्रह किया है कि बलात्कार के प्रकरणों पर  दो महीनों में निर्णय और फिर अपील पर छह महीनों में फैसला सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. उन्होंने सर्वोच्च न्यायाधीश को भी अलग से लिखा है कि उच्च न्यायालयों को जल्द न्याय देने के लिए विशेष व्यवस्था करने में भी समुचित सहायता दी जाए. 

मंत्नी का यह निवेदन औपचारिक और अच्छा है, लेकिन वह अपने कार्यक्षेत्न से बनी हुई रुकावटों पर तो ध्यान देने का कष्ट करें. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह ही केंद्र सरकार द्वारा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्तियों में देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के कॉलेजियम ने कई नियुक्तियों की सिफारिशें भेजी हुई हैं, लेकिन सरकार उन्हें विभिन्न कारण बताकर लटकाए हुए है. कभी किसी नाम पर गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट या आरोपों का हवाला दिया जाता है तो कभी दुबारा नाम मांगे जाते हैं. केंद्र ही नहीं राज्य सरकारें भी निचली अदालतों में नियुक्तियों को लेकर महीनों तक फाइलें घुमाती रहती हैं. 

कभी सरकार पसंदीदा व्यक्तियों को रखना चाहती है तो कभी नियोक्ता न्यायाधीश अपने प्रिय पात्नों को न्यायालय में देखना चाहते हैं. देश में न्यायाधीशों की कमी के कारण सुनवाई और फैसलों में वर्षो के इंतजार का सिलसिला जारी है. अधिकृत रिकॉर्ड के अनुसार देश की अदालतों में तीन करोड़ से अधिक मुकदमे विचाराधीन हैं. इनमें  76000 से अधिक मामले तीस साल से भी पुराने हैं. इस तरह लाखों परिवार और कम से कम दस-पंद्रह करोड़ लोग अदालतों के फैसलों की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इसी तरह हजारों लोग जेल में हैं और कई मामलों में पंद्रह साल बाद निदरेष साबित होकर बाहर आते हैं. उनकी जिंदगी ही बर्बाद हो जाती है. विभिन्न प्रदेशों की जेलों में सैकड़ों कैदी हत्या, बलात्कार के मामलों में फांसी की सजा के बाद भी पड़े हुए हैं.

प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी सार्वजनिक कार्यक्रमों में न्यायिक व्यवस्था में व्यापक बदलाव की आवश्यकता बता चुके हैं. उनका मानना है कि कानून और न्याय में कभी समझौता नहीं किया जा सकता है. केंद्र सरकार ने अदालतों के कामकाज में सुविधाओं के लिए राज्यों को अधिक धनराशि भी दी है. लेकिन इसमें शक नहीं कि अदालतों में सुविधाओं का अभाव है. सरकारी अस्पतालों की तरह निचली अदालतों में सामान्य व्यक्ति न्याय के लिए परेशानी में भटकता रहता है. अब देश में प्रगति के साथ अपराध और उसके तरीके भी बढ़ रहे हैं. न्याय सुलभ और न्यूनतम खर्च में मिलना मुश्किल होता जा रहा है. 

हम यूरोप, अमेरिका से प्रतियोगिता करने लगे हैं, लेकिन उन देशों में तो 70 प्रतिशत सिविल मामले ट्रायल के स्तर पर निपट जाते हैं. ब्रिटेन में हत्या, बलात्कार के मामलों में कुछ सप्ताह और तीन महीनों में फैसला हो जाता है. इस स्थिति में बदलाव के लिए हर स्तर पर क्रांतिकारी कदमों की जरूरत है. योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति के साथ उनके अच्छे प्रशिक्षण, अधिक वेतन सुविधा का इंतजाम हो. अदालत में सुनवाई और निर्णय की समय सीमा निर्धारित हो. वकील और न्यायाधीश भी निर्धारित आचार संहिता का पालन करें. 

अदालत परिसर में भ्रष्टाचार के आरोप लगने से संपूर्ण न्याय व्यवस्था कलंकित होती है. सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व प्रधान न्यायाधीश स्वयं यह मुद्दा उठाकर चिंता व्यक्त कर चुके हैं. न्याय के गलियारों को स्वस्थ और स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी भी न्याय देने वालों की है.  मजेदार तथ्य यह है कि अदालतों में सरकारी विभागों और राज्य सरकारों के आपसी विवादों की संख्या भी सर्वाधिक है. वे अपने मामले निपटाने के लिए आपसी वार्ता या अलग से कोई प्राधिकरण क्यों नहीं बना सकते हैं? न्याय के मंदिर में सामान्य नागरिक की तकलीफ और भावनाओं को सर्वोच्च महत्व दिलाने की जिम्मेदारी सरकार, संसद और न्यायपालिका की ही है.

Web Title: Need to bring new revolution in justice system, Article 370, Ayodhya dispute, Citizenship Amendment Act

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