एन. के. सिंह का ब्लॉग: भ्रष्ट नौकरशाही ने तोड़ा जनता का भरोसा
By एनके सिंह | Published: February 23, 2020 05:31 AM2020-02-23T05:31:53+5:302020-02-23T05:31:53+5:30
देश की जनता ने तो एक बार ही नहीं दो बार (2014 और 2019 के आम-चुनावों में) अपना पूरा प्रेम और विश्वास उंड़ेल कर वर्तमान सत्तापक्ष-भाजपा को निर्द्वद्व बना दिया. एक सम्यक और समग्र विकास के लिए और क्या चाहिए? न तो विपक्ष खासकर वर्तमान कांग्रेस में टकराने वाली सामथ्र्य या ‘राजनीतिक जिजीविषा’ है, न ही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के जमाने वाला ‘24 पार्टियों के गठबंधन’ का दबाव.
सं विधान-सभा में अनुच्छेद 311 पर चर्चा के दौरान कुछ सदस्यों ने आपत्ति की थी कि अफसरशाही को संवैधानिक सुरक्षा का कवच नहीं दिया जाना चाहिए. इस पर इस अनुच्छेद के समर्थन में बोलते हुए सरदार पटेल ने कहा था ‘‘यह कवच इसलिए दिया जा रहा है कि अफसर मंत्नी के सामने तन कर अपनी बात कह सके’’. आज वही अफसर राजनीतिक आकाओं को खुश करने में इतना व्यस्त है कि उसे वह शपथ भी याद नहीं जो नौकरी ज्वाइन करने के पहले उसने ली थी.
जहां एक ओर देश में नौकरशाही के राजनीतिकरण का खेल चल रहा है तो दूसरी ओर राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के संकट पर देश के प्रजातंत्न के सबसे बड़े मंदिर-संसद-ने पिछले सात दशकों में भी संज्ञान नहीं लिया तो सुप्रीम कोर्ट को यह नागवार गुजरा. हालांकि भाजपा के नए अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा इस स्थिति से उबरने की कुछ हल्की कवायद कर रहे हैं पर क्या अन्य शीर्ष नेताओं की राय के आगे वह खड़े हो पाएंगे? पिछले सप्ताह नड्डा ने बिहार से आने वाले एक केंद्रीय मंत्नी गिरिराज सिंह को कड़ी फटकार लगाई और उन्हें सांप्रदायिक कटुता पैदा करने वाले बयानों से बचने को कहा. मंत्नी महोदय हर पखवाड़े देश के अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान भेजने की सलाह देते रहे हैं. पार्टी अध्यक्ष के अलावा पूर्व अध्यक्ष और गृह मंत्नी अमित शाह ने भी माना है कि सांप्रदायिक बयानों से पार्टी को दिल्ली चुनाव में नुकसान हुआ. लेकिन ताजा जानकारी के अनुसार आगामी बिहार चुनाव में इससे सीख लेने के बजाय पार्टी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को ही प्रमुख मुद्दा रखेगी.
देश की जनता ने तो एक बार ही नहीं दो बार (2014 और 2019 के आम-चुनावों में) अपना पूरा प्रेम और विश्वास उंड़ेल कर वर्तमान सत्तापक्ष-भाजपा को निर्द्वद्व बना दिया. एक सम्यक और समग्र विकास के लिए और क्या चाहिए? न तो विपक्ष खासकर वर्तमान कांग्रेस में टकराने वाली सामथ्र्य या ‘राजनीतिक जिजीविषा’ है, न ही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के जमाने वाला ‘24 पार्टियों के गठबंधन’ का दबाव. फिर पूरे देश में सांप्रदायिक भय का वातावरण कौन, क्यों और कैसे बना रहा है? आर्थिक संकट, बेरोजगारी, भुखमरी और भ्रष्टाचार के सूचकांक पर हम दुनिया में और पीछे होते जा रहे हैं. फिर प्राथमिकताएं इस किस्म के ‘दुरुत्साह’ पैदा करने की क्यों? यह ठीक है कि जिसने ‘ये ले अपनी आजादी’ कह कर गोली चला एक आंदोलनकारी युवक को घायल किया वह ‘दुरुत्साह’ के उन्माद में रोजगार नहीं मांगेगा और वैसे ही करोड़ों युवा शायद इसी उत्साह के नशे में बेरोजगारी का दंश भूल जाएं पर क्या इससे देश में विकास का वातावरण अगले कई दशकों में भी तैयार हो सकेगा? और फिर क्या प्रतिक्रिया में ऐसा ही ‘दुरुत्साह’ दूसरे पक्ष में नहीं
पैदा होगा?
ताजा रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार बाहर से लोगों को (सरकार ने उन्हें विशेषज्ञ के तौर पर सीधे उच्च पदों पर लाने की नीति बनाई) ज्वाइंट सेक्रेटरी और ऊपर के पदों पर ला रही है जबकि केंद्र के हर पद के लिए 18 समर्थ अधिकारी राज्यों से आने को तैयार हैं. यह माना जा रहा है कि बाहर से वही लोग लाए जा रहे हैं जो पार्टी और संघ की नीतियों के प्रति आस्था रखते हैं. एक अन्य ताजा घटना में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्नी की बैठक में एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने भरी मीटिंग में नागरिक सुरक्षा जनपदों में प्रखंड बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज करने की वकालत की क्योंकि उनके अनुसार इसका लाभ उस वर्ग को मिलेगा जिसकी आबादी ज्यादा बड़ी है. मीटिंग में बैठे एक अन्य पुलिस अधिकारी ने, जो इस विभाग का प्रभारी था, उस बड़े अधिकारी के गैर-कानूनी और अनुचित तर्क के खिलाफ मुख्यमंत्नी को पत्न लिखा और मीडिया
को बताया.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के चर्चित शाहीनबाग में भीड़ पर गोली चलाकर एक छात्न को घायल करने वाले युवक को पुलिस पहले तो मूक-दर्शक बन देखती रही, फिर बड़े सहज भाव में उससे पिस्तौल ले कर गिरफ्तार कर लिया. वीडियो देख कर लगा जैसे पुलिसवाले किसी दोस्त को ‘गुस्सा थूकने’ की बांझ सलाह दे रहे हों. अगले कुछ घंटों में डीसीपी ने घोषणा की कि वह युवक आम आदमी पार्टी का था. आईपीसी या सीआरपीसी में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि गोली चलाने वाले का राजनीतिक रुझान घोषित किया जाए. यह अलग बात है कि अधिकारी की यह घोषणा नितांत गलत निकली. इसी दौरान चुनाव-मंच से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्नी ने एक वर्ग विशेष के मतदाताओं को रिझाने के लिए बताया कि कैसे उन्होंने अफसरों को आदेश दिया कि ‘शिव-भक्त कांवड़ियों पर हेलिकॉप्टर से फूल बरसाएं’. गाजियाबाद के डीएम और एसपी ने फूल तो बरसाए ही, एक जिले के उत्साही एसपी ने होड़ में पीछे न होने के लिए कांवड़ियों के पैर धोये और इस वीडियो को मीडिया में और मुख्यमंत्नी कार्यालय तक पहुंचाया. जाहिर है जब मुख्यमंत्नी अफसरों के कांवड़ियों के चरण-पखारने पर खुश होगा तो मीटिंग में कोई अफसर ‘अल्पसंख्यकों को लाभ’ न देने के आधार पर कोई योजना खारिज भी करेगा.
प्रजातंत्न की सफलता व जनोपादेयता का आधार सरकार की निष्पक्षता पर टिका होता है. संभव है कि सत्ता में बने रहने के लिए अफसरों का राजनीतिकरण और राजनीति का अपराधीकरण व दोनों के जरिये सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जरूरी हो, पर इससे मानव विकास सूचकांक बेहतर होने की जगह बदतर होता जाएगा.