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Maharashtra polls 2024: गलतफहमी में रहना या खुशफहमी में जीना!

By Amitabh Shrivastava | Updated: October 5, 2024 05:35 IST

Maharashtra polls 2024: 288 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा करने वाली कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टीवार 150 सीटों पर सर्वे के आधार पर 85 सीटों पर जीत को पक्की मान रहे हैं, जो पिछले चुनाव की तुलना में दोगुने के करीब है.

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ठळक मुद्देविधानसभा चुनाव की व्यापकता का अनुमान और मतदाता का मन जाने बिना दिवास्वप्न देखने में व्यस्त है.उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस बार-बार दोहराते हैं कि लोकसभा की 12 सीटें ऐसी थीं, जिन पर भाजपा तीन से लेकर छह हजार मतों से पराजित हुई. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(अजित पवार गुट) के मत महागठबंधन उम्मीदवारों को नहीं मिले.

Maharashtra polls 2024: चुनावों के समीप आते ही कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना राजनीतिक दलों के हर बड़े नेता की जिम्मेदारी हो जाती है. इस उद्देश्य से यदि शिवसेना(ठाकरे गुट) के प्रमुख उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में 185 सीटों पर महाविकास आघाड़ी की जीत का दावा कर रहे हैं तो इसे उसी प्रकार उचित ठहराया जा सकता है, जिस प्रकार केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह वर्ष 2029 में राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने का विश्वास व्यक्त कर रहे हैं. वहीं, 288 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा करने वाली कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टीवार 150 सीटों पर सर्वे के आधार पर 85 सीटों पर जीत को पक्की मान रहे हैं, जो पिछले चुनाव की तुलना में दोगुने के करीब है.

दरअसल लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी की जीत और महागठबंधन की हार राजनीतिक दलों के लिए बिना किसी तार्किक विश्लेषण के चुनाव जीतने के ख्याली पुलावों को सजाने का बहाना बन चुकी है. इसीलिए हर कोई विधानसभा चुनाव की व्यापकता का अनुमान और मतदाता का मन जाने बिना दिवास्वप्न देखने में व्यस्त है.

विशेष रूप से राज्य का मुख्य विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी पिछली चुनावी जीत के बाद आत्मविश्वास से इतना लबरेज है कि वह मामूली जीत से कहीं दूर बंपर विजय का मन बनाकर बैठ चुका है. लोकसभा चुनाव परिणाम का उत्साह राज्य के विपक्ष को विधानसभा चुनावों की राह आसान दिखा रहा है. मुख्य विपक्ष महाविकास आघाड़ी के नेता हर मंच से न भूलते हुए अपनी सत्ता आने का दावा कर रहे हैं.

उनकी सीटों का बंटवारा भले ही तय नहीं है, लेकिन जीतने वाली सीटों की संख्या अवश्य ही तय है. इसे बड़बोलापन माना जाए या फिर किसी ठोस आधार पर बयानी, किंतु आने वाला समय आम चुनावों जैसा आसान नहीं होगा. यदि राज्य की 48 लोकसभा सीटों को विधानसभा की 288 सीटों से विभाजित कर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रवार विश्लेषण किया जाए तो परिणामों की व्याख्या अलग-अलग हो सकती है.

राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस बार-बार दोहराते हैं कि लोकसभा की 12 सीटें ऐसी थीं, जिन पर भाजपा तीन से लेकर छह हजार मतों से पराजित हुई. अगर कुल वोटों का अंतर देखा जाए तो महाविकास आघाड़ी से महागठबंधन को सिर्फ दो लाख मत कम मिले. इसी के साथ जोड़कर वह अब यह भी कहने लगे हैं कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(अजित पवार गुट) के मत महागठबंधन उम्मीदवारों को नहीं मिले.

संभव है कि लोकसभा चुनाव क्षेत्र वृहत्‌ होने के कारण मत परिवर्तन और मतदान का रुख जल्द बदलने में समस्या आती हो, लेकिन विधानसभा चुनाव में स्थितियां बदलने में देर नहीं लग सकती है. इसलिए आगे भी हार-जीत का कम अंतर अनेक सीटों पर दर्ज हो सकता है. बीते आम चुनावों में कुल 48 सीटों में से 17 महागठबंधन को मिलीं.

 जबकि 30 सीटें महाविकास आघाड़ी और एक उसी के समर्थक बने उम्मीदवार को मिली. कुल संख्या के हिसाब से उसे लगभग 65 प्रतिशत सीटें प्राप्त हुईं. यदि इस विजय की विधानसभा सीटों की तुलना के लिए सामान्य गणित लगाया जाए तो लगभग 188 सीटों पर आघाड़ी का दावा बन जाता है. यही बात शिवसेना का ठाकरे गुट कहने लगा है.

किंतु सच यह भी है कि लोकसभा सीटों के अंतर्गत आने वाली अनेक विधानसभा सीटों पर आघाड़ी की पराजय भी हुई है. जिस प्रकार महागठबंधन के कई सीटों पर जीतने पर उसने भी अपने विधानसभा क्षेत्रों में पराजय का मुंह देखा है. इसके अतिरिक्त यदि उम्मीदवारों को मिले मतों के सापेक्ष देखा जाए तो आघाड़ी ने 30 सीटें जीतकर 42.3 प्रतिशत और महागठबंधन ने 17 सीटों पर विजय पाकर 43.9 फीसदी मत प्राप्त किए थे. ये आंकड़े विपक्ष के दावों पर प्रश्न चिह्न खड़ा करते हैं. हालांकि हमेशा जीत-हार के ‘स्ट्राइक रेट’ पर बात करने वाली भाजपा 28 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ नौ सीटें जीत पाई थी.

इसमें सबसे अच्छी स्थिति राकांपा(शरद पवार गुट) की रही थी, जिसने दस सीटों पर चुनाव लड़ा और आठ पर जीत पाई. कुल जमा लोकसभा चुनाव के परिणाम मात्र से विपक्ष का अपनी स्थिति मजबूत मान लेना कार्यकर्ताओं के सम्मेलन तक ठीक है, किंतु वास्तविकता के धरातल पर सच का सामना करना जरूरी है.

राज्य के विपक्षी खेमे में समाजवादी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), कम्युनिस्ट पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, शेतकरी कामगार पक्ष और रिपब्लिकन संगठन जैसे कई दल हैं. इन सभी दलों को अपने वोट बैंक पर पूरा विश्वास है. यदि इन्हें महत्व नहीं मिलता है तो ये अनेक स्थानों पर खेल बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह वंचित बहुजन आघाड़ी सत्ताधारियों और विपक्ष दोनों को अनेक स्थानों पर परेशान करती आई है. राज्य में तीसरी बार विधानसभा चुनाव में कूदने जा रही एआईएमआईएम मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अपनी भूमिका तय कर चुकी है.

उसने पहले वर्ष 2014 में औरंगाबाद मध्य और मुंबई में भायखला विधानसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद औरंगाबाद लोकसभा सीट जीतकर अपनी मजबूती दिखाई. उसने वर्ष 2019 में धुलिया और मालेगांव से विधानसभा चुनाव जीतकर तथा 9.24 प्रतिशत मतों के आधार पर राज्य में अपना वजूद साबित किया.

वहीं, दलित समाज से जुड़े दल पहले से ही अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूती से डटे हैं. अनेक चुनावों में उनके वोट बैंकों ने अपनी क्षमता को दिखाया है. इस परिस्थिति में वास्तविकता से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता है. मगर महाविकास आघाड़ी के नेता अपने उत्साह को किसी भी सूरत में कम नहीं होने देना चाह रहे हैं. उनके बारे में यह समझना मुश्किल है कि वे गलतफहमी में जी रहे हैं या खुशफहमी में रह रहे हैं.

शाब्दिक दृष्टि से गलतफहमी और खुशफहमी एक-दूसरे के विलोम हैं कि नहीं, कहा नहीं जा सकता. गलतफहमी जान-बूझकर भी बनाई जा सकती है या फिर सहज-स्वाभाविक भी हो सकती है. वहीं खुशफहमी का भाव औरों से श्रेष्ठतर है या दूसरे को खुद से कमतर मानने का कहा जाता है. महाराष्ट्र की राजनीति में विपक्ष की स्थितियां फिलहाल इसी दौर में हैं. चुनाव के मुहाने पर इससे बाहर निकलना आसान नहीं है, लेकिन सच्चाई से मुंह छिपाना भी तो अच्छा नहीं है.

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