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Maharashtra CM Devendra Fadnavis: नजरअंदाज हुआ पोस्टरबाजी के खिलाफ पत्र?, ‘वीआईपी कल्चर’ के खिलाफ

By Amitabh Shrivastava | Updated: January 4, 2025 05:34 IST

Maharashtra CM Devendra Fadnavis: चुनाव जीतने से लेकर जनसेवा से परे अपनी सरकारी ताकत और शान-ओ-शौकत के लिए चुनाव लड़ा जाता है तो सत्ता मिलने के बाद उससे मुंह कैसे मोड़ा जा सकता है?

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ठळक मुद्देआदर्शों को लेकर प्रदेश सरकार के अन्य मंत्रियों या नेताओं का चल पाना संभव है! शायद नहीं.होर्डिंग्स, बैनर और पोस्टर हैं, जो कहीं भी लग सकते हैं और कोई भी, किसी के लगा सकता है.सीमा व्यवस्था निर्धारित है, लेकिन अदालती आदेशों के बावजूद कार्रवाई नहीं हो पा रही है.

Maharashtra CM Devendra Fadnavis: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सरकार में ‘वीआईपी कल्चर’ के खिलाफ माना जाता है. जब वह वर्ष 2014 का विधानसभा चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने विमान में सामान्य यात्री बनने से लेकर सरकारी फौजफाटे को कम करने के लिए कदम उठाए थे. इस बार भी सरकार की बागडोर संभालते ही उन्होंने अपने पुराने निर्देशों को लागू करवा दिया है. मगर, क्या उनके आदर्शों को लेकर प्रदेश सरकार के अन्य मंत्रियों या नेताओं का चल पाना संभव है! शायद नहीं.

जब चुनाव जीतने से लेकर जनसेवा से परे अपनी सरकारी ताकत और शान-ओ-शौकत के लिए चुनाव लड़ा जाता है तो सत्ता मिलने के बाद उससे मुंह कैसे मोड़ा जा सकता है? किंतु इसके अलावा भी एक बड़ा युद्ध होर्डिंग्स, बैनर और पोस्टर हैं, जो कहीं भी लग सकते हैं और कोई भी, किसी के लगा सकता है.

स्थानीय निकायों से लेकर प्रशासनिक नियमों तक प्रचार की अपनी सीमा व्यवस्था निर्धारित है, लेकिन अदालती आदेशों के बावजूद कार्रवाई नहीं हो पा रही है. इस बारे में पिछले माह शिवसेना विधायक आदित्य ठाकरे ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है, लेकिन उसका संज्ञान लेने का प्रभाव दिखाई नहीं दिया है. वैसे देश का शायद ही कोई ऐसा भाग हो जहां नेताओं के होर्डिंग-बैनर-पोस्टर नहीं देखे जाते हों.

आम तौर पर वे नेताओं के जन्मदिवस, आगमन और किसी उपलब्धि विशेष से जुड़े होते हैं. इन दिनों पोस्टरों से आरोप-प्रत्यारोप से लेकर राजनीतिक कटाक्ष तक की परंपरा निभाई जा रही है. मुंबई जैसा शहर हो या उत्तर-दक्षिण का कोई कस्बा, हर भाषा और हर स्तर के नेता का होर्डिंग-पोस्टर दिख जाता है.

वह तकनीकी रूप से सहज-सरल और सस्ता होने के कारण किसी के समर्थकों के लिए आर्थिक बोझ भी नहीं बनता, जिससे उनकी संख्या अधिक भी हो जाती है. प्रमुख स्थानों पर बेरोकटोक लगने से उसे देखने वाले भी अनेक मिल जाते हैं. किसी भी अनधिकृत स्थान पर होर्डिंग-बैनर-पोस्टर लगाए जाने के बावजूद प्रशासन की ओर से नजरअंदाज करने पर किसी कार्रवाई का कोई डर नहीं रहता है.

इसलिए नेताओं के कार्यकर्ताओं से लेकर गली के नेताओं तक सभी के हौसले हमेशा बुलंद रहते हैं और उनके चौक-चौराहों पर उत्सव मनते रहते हैं. यहां यह मानने में भी कोई हर्ज नहीं है कि नेताओं को भी उनका संरक्षण प्राप्त होता है. पिछले कई वर्षों से बॉम्बे हाईकोर्ट अवैध होर्डिंग, बैनर और पोस्टर के खिलाफ कार्रवाई करने का आह्वान कर रहा है और सभी राजनीतिक दलों से यह आश्वासन मांगने का भी आदेश दे चुका है कि उनके कार्यकर्ता होर्डिंग नहीं लगाएंगे.

इसके बाद लगभग सभी राजनीतिक दलों- भाजपा, कांग्रेस, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(राकांपा) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना(मनसे) एक वचनबद्धता प्रस्तुत कर चुके हैं. मगर उसका निचले स्तर पर असर नहीं दिखाई देता है. यदा-कदा होने वाली कार्रवाई से होर्डिंग-बैनर हट जाते हैं, लेकिन फिर नए लग जाते हैं.

कुछ इसी बात को देखते हुए पिछले माह उच्च न्यायालय ने अवैध होर्डिंग और बैनर की बढ़ती संख्या को ‘भयावह’ और ‘दु:खद स्थिति’ करार दिया था और सभी राजनीतिक दलों को नोटिस जारी कर उन्हें कारण बताने का निर्देश दिया कि अदालत के आदेशों की अवहेलना करने के लिए उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए.

अदालत का सवाल था कि ऐसे मामलों में आदेश और निर्णय की आवश्यकता क्यों है, जबकि कानून के तहत सरकार और स्थानीय निकायों का यह कर्तव्य है. अदालत ने अनेक बार होर्डिंग-बैनर को बनाने और लगाने वाले का नाम लिखने के साथ अवैध होने की स्थिति में कार्रवाई के निर्देश भी दिए थे. लेकिन यह माना जाता है कि स्थानीय निकाय और प्रशासन राजनीतिक दबाव के चलते कोई कदम उठाने से बचते हैं.

छोटे शहरों में बड़े नेताओं के आगमन पर तो उन्हें नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा जाता है. अब शिवसेना के नेता आदित्य ठाकरे होर्डिंग, बैनर और पोस्टर के विषय को लेकर मैदान में कूदे हैं तो स्वस्थ राजनीति के लिए यह एक बेहतर अवसर है. मगर उनके पत्र को नजरअंदाज करना समझ से परे है. एक तरफ ‘वीआईपी कल्चर’ से लेकर आडंबर और सस्ते प्रचार के खिलाफ बातें कही जाती हैं.

वहीं दूसरी ओर गलियों के लोगों के पोस्टर शहर की सड़कों पर झलकते नजर आते हैं. राजनेता यदि अपने प्रशंसकों और समर्थकों को इस प्रचार से बचने लिए कहें तो अवश्य ही सुधार निचले स्तर से आ सकता है. किंतु इस कार्य के लिए इच्छाशक्ति पैदा करने में सत्ता और विपक्ष दोनों को राजनीतिक साहस जुटाना होगा.

शहर का विद्रूपीकरण, अनेक स्थानों पर यातायात में बाधा और अवैध कब्जे जैसे प्रकरणों के जिम्मेदार होर्डिंग-बैनर-पोस्टर कहलाते हैं. कभी-कभी ये आपसी विवाद के कारण भी बनते हैं. किंतु उन पर रोक के आदेश को सख्ती से अमल में लाना संभव नहीं हो पाता है.राज्य की नई सरकार अनेक मामलों में नया संदेश देना चाहती है. वह आम जनता को अपनी प्राथमिकता बताती है.

यदि वह निजी ‘वीआईपी कल्चर’ को खत्म कर सार्वजनिक स्तर पर भी चमकते पोस्टर और शक्ति प्रदर्शन में बढ़ते नेताओं के काफिले पर रोक लगाती है तो अवश्य ही यह जनता के लिए राहत की बात होगी. राज्य में राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री, मंत्री, केंद्रीय मंत्री, पार्टी नेताओं, विपक्ष के नेताओं के दौरे चलते ही रहते हैं और किसी भी शहर में एक के जाने के बाद दूसरे के होर्डिंग-बैनर-पोस्टर लगना आरंभ हो जाते हैं. इसी क्रम में वाहनों के काफिले आम यातायात को बाधित कर चले जाते हैं. इस परंपरा पर रोक लगाए जाने की पहल की जानी चाहिए.

यदि शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे इस बारे में पहल कर कोई पत्र लिखते हैं तो उसे विपक्ष के नेता के नाम पर किनारे नहीं कर दिया जाना चाहिए. उसे जनभावना के तहत ही पूरा-पूरा महत्व दिया जाना चाहिए. यह राज्य के केवल एक नेता का विचार नहीं, बल्कि ‘होर्डिंग-बैनर-पोस्टर’ और नेताओं के काफिलों से हर दिन प्रभावित जनता के मन की बात है. यदि स्थिति में सुधार आएगा तो निश्चित ही आम जनता के मन में भी राज्य सरकार के प्रति अच्छा विचार आएगा.

टॅग्स :देवेंद्र फड़नवीसमहाराष्ट्रनागपुरBJP
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