मध्य प्रदेश में विधानसभा की 28 सीटों के लिए मतदान हो गया है. यहां लगभग सभी सीटों पर मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है, हालांकि, कुछ सीटों पर मुकाबला बहुकोणीय भी है.
इस चुनाव के नतीजे तीन प्रमुख सियासी सवालों के जवाब देंगे, एक- क्या बीजेपी करीब 9 सीटें जीत कर केवल सत्ता बचा पाएगी या फिर आधी से ज्यादा सीटें जीत कर सियासी इज्जत भी बचाएगी? दो- क्या कांग्रेस दो दर्जन से ज्यादा सीटें जीत कर हारी हुई सियासी बाजी फिर से जीत पाएगी या आधी से ज्यादा सीटें जीत कर बीजेपी को राजनीतिक आईना दिखा पाएगी और सबसे महत्वपूर्ण, तीन- जिस तरह से एमपी में सियासी जोड़तोड़ करके सत्ता का सियासी खेल खेला गया है, उसे क्या जनता मान्यता देगी?
याद रहे, वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार 15 महीने में ही सत्ता के जोड़तोड़ के नतीजे में गिरने के बाद वर्ष 2020 मार्च में बीजेपी की सरकार बनी और शिवराज सिंह चौहान पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने, परन्तु सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी को उप-चुनावों में कम-से-कम 9 सीटें जीतना जरूरी है.
कोई राजनीतिक चमत्कार नहीं होता है, तो यह लगता है कि शिव-राज कायम रहेगा, लेकिन यदि आधी से ज्यादा सीटें बीजेपी नही जीत पाई तो उसकी सियासी साख पर जरूर सवालिया निशान लग जाएगा.उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश की विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं और बहुमत के लिए 116 सदस्य जरूरी हैं. इस वक्त शिव-राज के पास 107 विधायक हैं, मतलब- सत्ता में बने रहने के लिए 9 सीटें जीतनी जरूरी हैं, जबकि कांग्रेस को सत्ता में वापसी के लिए दो दर्जन से ज्यादा सीटें चाहिए!