लोकमत संपादकीयः महिला विरोधी कुप्रथा के खात्मे की दिशा में कदम

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 8, 2019 05:05 IST2019-02-08T05:05:11+5:302019-02-08T05:05:11+5:30

कई समुदायों में अब भी माहवारी के दौरान महिला को अपवित्न मान कर उसे इस अवधि में पारिवारिक आवास से दूर रहने के लिए बाध्य किया जाता है.

Lokmat editorial: steps towards elimination of anti-female anti-misani | लोकमत संपादकीयः महिला विरोधी कुप्रथा के खात्मे की दिशा में कदम

लोकमत संपादकीयः महिला विरोधी कुप्रथा के खात्मे की दिशा में कदम

महाराष्ट्र सरकार का यह कहना कि वह किसी महिला को कौमार्य परीक्षण के लिए बाध्य करने को शीघ्र ही दंडनीय अपराध बनाएगी, महिलाओं के खिलाफ जारी कुछ खास किस्म के अत्याचारों को समाप्त करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है. दरअसल मानव जाति के आधुनिक वैज्ञानिक युग में प्रवेश करने के बावजूद अभी भी कई समुदायों में इस तरह की अमानवीय प्रथा मौजूद है. विशेषकर कंजरभाट सहित कुछ समुदायों में महिलाओं के प्रति यह अपमानजनक रिवाज जारी था और संतोष की बात है कि इसी समुदाय के कुछ युवकों ने इसके खिलाफ ऑनलाइन अभियान शुरू किया था.

अभी तीन दिन पहले ही नेपाल से खबर आई थी कि माहवारी के दौरान बंद झोपड़ी में रह रही महिला की दम घुटने से मौत हो गई. इसके पहले भी इसी साल विगत जनवरी माह में एक महिला और उसके दो बच्चों की इसी प्रथा के कारण मौत हो चुकी है. नेपाल में हालांकि माहवारी के दौरान महिला को अछूत मानते हुए अलग-थलग रखने की प्रथा पर रोक लगा दी गई है, लेकिन वहां कई समुदायों में अब भी माहवारी के दौरान महिला को अपवित्न मान कर उसे इस अवधि में पारिवारिक आवास से दूर रहने के लिए बाध्य किया जाता है.

महिलाओं के खिलाफ सदियों से जारी कई तरह के अत्याचारों ने इतनी गहराई से जड़ें जमा ली थीं कि उनका अभी भी पूरी तरह से उन्मूलन नहीं किया जा सका है. दरअसल जब तक लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा, तब तक ऐसी कुप्रथाओं पर पूरी तरह से रोक लगा पाना संभव नहीं होगा. संतोष की बात है कि ऐसी कुप्रथाओं के विरोध में लोग खुलकर सामने आ रहे हैं. इसे जनमत का दबाव ही कहा जाएगा कि सबरीमला मंदिर में विशेष आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर यूटर्न लेते हुए सबरीमला मंदिर का संचालन करने वाले त्रवणकोर देवस्वम बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अब कहा है कि वह मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी फैसले का समर्थन करता है.

आखिर दुनिया की आधी आबादी को अमानवीय परंपराओं में जकड़े रखकर हम अपने को सभ्य समाज का बाशिंदा कहने का दावा कैसे कर सकते हैं? महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंंचाने वाली सभी कुरीतियों का समाज से पूरी तरह से खात्मा किया जाना जरूरी है. तभी हम समाज का सर्वागीण विकास कर पाएंगे.

Web Title: Lokmat editorial: steps towards elimination of anti-female anti-misani

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