लाइव न्यूज़ :

कपिल सिब्बल का ब्लॉग: संविधान के ताने-बाने को बचाए रखने के लिए संघर्ष

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 4, 2018 07:39 IST

हमारे संविधान के ताने-बाने को सुरक्षित रखने के लिए लड़ाई शुरू हो चुकी है। इसमें सफल होने के अलावा अन्य कोई भी विकल्प नहीं है।

Open in App

- कपिल सिब्बलमई 2014 से, हमारे संस्थानों का तेजी से क्षरण होता जा रहा है। सीबीआई के भीतर लड़ाई, उच्चाधिकारियों के भ्रष्टाचार में शामिल होने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में शपथपूर्वक लगाए गए आरोप किसी एक संस्थान तक सीमित नहीं हैं। रिजर्व बैंक और सरकार का आमने-सामने आना तथा मौद्रिक नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास खतरनाक है।

19 नवंबर को रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की नौ घंटे तक चली बैठक का परिणाम अस्थायी सुलह के रूप में सामने आया है। रिजर्व बैंक के भंडार के एक हिस्से तक पहुंच हासिल करने की सरकार की कोशिश फिलहाल रोक दी गई है। इसे समझना होगा। आरबीआई बोर्ड में कोई बैंकर नहीं है और  न ही कोई मौद्रिक नीति विशेषज्ञ।

बोर्ड में कुछ सरकारी अधिकारी, व्यापारी और दो नए सदस्य हैं- एस। गुरुमूर्ति और सतीश मराठे। दोनों वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध हैं। बोर्ड की रचना की प्रकृति चिंता का विषय है। इस संदर्भ में, रिजर्व बैंक के गवर्नर के पास कुछ भी कर पाने के लिए बहुत कम गुंजाइश है। वर्तमान सुलह स्थायी नहीं हो सकती है। आने वाले महीनों में, 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, सरकार आरबीआई की अधिशेष पूंजी तक पहुंचने में सफल हो सकती है। 

राज्यपाल अतीत में पक्षपातपूर्ण रहे हैं, लेकिन खुले तौर पर केंद्र सरकार के एजेंडे का हिस्सा नहीं रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में हाल ही में जब पीडीपी सरकार बनाने का दावा करने के लिए तैयार थी, तब राज्यपाल द्वारा विधानसभा भंग करने का फैसला संस्थागत गिरावट का नवीनतम उदाहरण है। राज्यपालों ने हाल के वर्षो में केंद्र के मनमुताबिक सरकारों के गठन की सुविधा प्रदान की है। विधानसभाओं में स्पीकर की भूमिका और भी परेशान करने वाली है। दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के मामले में स्पीकर एक न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करते हैं। लेकिन स्पीकर जब सत्तारूढ़ प्रतिष्ठान की सुविधा के हिसाब से असुविधाजनक निर्णय लेना टालते हैं और अयोग्यता से संबंधित वैध शिकायतों को वर्षो लटकाए रखते हैं तो दसवीं अनुसूची का पूरा उद्देश्य ही उलट जाता है। 

चार प्रतिष्ठित न्यायाधीशों द्वारा जनवरी माह में लोकतंत्र के लिए खतरा होने की बात को सार्वजनिक रूप से प्रकट किया जाना इस बात का एक और उदाहरण है कि संस्थागत रुग्णता बढ़ रही है। नौकरशाही भी वैचारिक फरमान को लागू करने का साधन बन गई है। महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है जो सत्तारूढ़ दल के कथित ‘राजनीतिक शत्रुओं’ को निशाना बना सकें। हमारे संस्थानों को मजबूती प्रदान करने वाली स्वतंत्र आवाजों को दबा दिया गया है। 

वर्तमान में, सत्तारूढ़ पार्टी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है। यदि ऐसा हो गया तो बहुमत की निरंकुशता अनियंत्रित हो जाएगी। हमारे संविधान के ताने-बाने को सुरक्षित रखने के लिए लड़ाई शुरू हो चुकी है। इसमें सफल होने के अलावा अन्य कोई भी विकल्प नहीं है।

- कपिल सिब्बल पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। वे कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। वह पेशेवर वकील हैं।

टॅग्स :कपिल सिब्बलसंविधान दिवस
Open in App

संबंधित खबरें

भारतConstitution Day 2025: पीएम मोदी ने संविधान दिवस पर नागारिकों को दिया संदेश, कहा- "संवैधानिक कर्तव्य मजबूत लोकतंत्र की नींव"

भारत'संविधान गरीबों और वंचितों के लिए एक सुरक्षा कवच...', संविधान दिवस पर बोले राहुल गांधी

भारतConstitution Day 2025: 'मजबूत राष्ट्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है संविधान', अमित शाह ने संविधान दिवस की दी शुभकामनाएं

भारतभारतीय संविधान के निर्माण का रोचक सफर

भारतआवारा कुत्तों का मामला: बच्चे मर रहे हैं, समस्या का समाधान जरूरी, दिल्ली सरकार ने न्यायालय से कहा...

भारत अधिक खबरें

भारतशशि थरूर को व्लादिमीर पुतिन के लिए राष्ट्रपति के भोज में न्योता, राहुल गांधी और खड़गे को नहीं

भारतIndiGo Crisis: सरकार ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए, DGCA के FDTL ऑर्डर तुरंत प्रभाव से रोके गए

भारतबिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र हुआ अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित, पक्ष और विपक्ष के बीच देखने को मिली हल्की नोकझोंक

भारतBihar: तेजप्रताप यादव ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर

भारतबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम हुआ लंदन के वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज, संस्थान ने दी बधाई