अपनी वाणी पर संयम रखें राजनेता
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: September 6, 2018 19:49 IST2018-09-06T19:49:11+5:302018-09-06T19:49:11+5:30
राजनेताओं का यह आचरण निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। राजनीति में अब बोलने के लिए भी तमाम दलों को आचार संहिता बनानी होगी। यदि नेताओं ने अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रखा तो राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता व सम्मान खत्म हो जाएगा।

अपनी वाणी पर संयम रखें राजनेता
एक जमाना था जब राजनेता ईमानदारी, सच्चाई तथा नैतिकता के प्रतिमान हुआ करते थे। हर व्यक्ति चाहता था कि उसका बेटा या बेटी अमुक नेता की तरह आदर्श देशसेवक बने। आज स्थिति एकदम विपरीत है। भ्रष्टाचार तक ही बात सीमित नहीं है, विभिन्न मसलों पर तमाम राजनीतिक नेता जिस तरह की ओछी, अपमानजनक तथा बड़े वर्ग को आहत करने वाली असंसदीय टिप्पणियां करने लगे हैं, उससे लगता है कि सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्य तथा संस्कार बचे ही नहीं हैं।
यह भी लगता है कि अब राजनीति में अच्छे लोगों की जरूरत ही नहीं है। कभी लड़की पर बलात्कार, कभी उनके कपड़ों, कभी लड़कियों की शिक्षा, कभी उनके मोबाइल इस्तेमाल करने, कभी किसी संप्रदाय विशेष के रंग, जाति, धर्म, कभी कुपोषण, कभी स्वास्थ्य, कभी विदेश यात्रा, कभी कला, कभी संस्कृति से लेकर हर उस विषय पर भद्दी टिप्पणियां राजनीतिक नेता करते हैं, जिन पर गंभीर बहस एवं युवा पीढ़ी को दिशा दिखाने की जरूरत होती है।
चुनाव प्रचार के दौरान भी शालीनता को ताक पर रखकर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप किए जाते हैं। अपने पद की गरिमा तथा सार्वजनिक जीवन में अपेक्षित शालीनता को ठेंगा दिखाते हुए मंगलवार को मुंबई में भाजपा के प्रवक्ता राम कदम ने दहीहांडी के कार्यक्रम में युवाओं से कह दिया कि यदि कोई लड़की उन्हें पसंद है, मगर वहां से ना हो जाए तो उस लड़की को भगा लाने में वह (कदम) युवाओं की मदद करेंगे।
कहने का मतलब यही हुआ कि लड़की ऐसी वस्तु है जिसे कभी भी उठाया जा सकता है। कदम जैसा महाराष्ट्र का बड़ा नेता महिलाओं के बारे में युवकों के सामने ऐसी अपमानजनक बातें कहेगा तो महिलाओं के खिलाफ अपराधों को निश्चित रूप से बढ़ावा मिलेगा। उधर बुधवार को मप्र के शिक्षा मंत्री विजय शाह ने शिक्षक दिवस पर बच्चों से कहा कि अगर उन्होंने गुरु के सम्मान में ताली नहीं बजाई तो अगले जन्म में उन्हें घर-घर जाकर ताली बजानी पड़ेगी अर्थात किन्नर बनना पड़ेगा। बच्चे मंत्री की इस सीख से क्या सीखेंगे।
शाह को यह समझना चाहिए कि सम्मान अर्जित किया जाता है, जबरन नहीं पाया जाता। इस बयान से बच्चों की नजर में उनका सम्मान जरूर कम हो गया होगा। देश के शीर्ष नेताओं पर नजर डालिए, हाल के वर्षों में उनमें से हर किसी ने कभी न कभी ऐसे बयान दिए हैं, जो आम आदमी को आहत करते हैं तथा सार्वजनिक जीवन की गरिमा को ध्वस्त करते हैं।
राजनेताओं का यह आचरण निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। राजनीति में अब बोलने के लिए भी तमाम दलों को आचार संहिता बनानी होगी। यदि नेताओं ने अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रखा तो राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता व सम्मान खत्म हो जाएगा।