आर.के. सिन्हा का ब्लॉग: भारत-रूस मिलकर करें चीन को अलग-थलग

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 11, 2021 08:46 IST2021-12-11T08:46:11+5:302021-12-11T08:46:11+5:30

भारत-रूस का दायित्व है कि वे धूर्त चीन पर लगाम लगाने के लिए रणनीति बनाएं। यह सारी दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए जरूरी है।

India-Russia together should isolate China Says R K Sinha in his Blog | आर.के. सिन्हा का ब्लॉग: भारत-रूस मिलकर करें चीन को अलग-थलग

भारत के पीएम मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हाथ मिलाते हुए।

रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की हालिया भारत यात्रा चीन के लिए एक संदेश होना चाहिए। उस चीन के लिए जो भारत की सरहदों पर बार-बार अतिक्रमण की कोशिश करने से बाज ही नहीं आ रहा है। पुतिन की नई दिल्ली यात्ना के दौरान दोनों के दरम्यान अनेक अहम मसलों पर समझौते हुए, लेकिन अगर साफ तौर पर या संकेतों में ही चीन को यह बता दिया जाता कि भारत-रूस हरेक संकट में एक-दूसरे के साथ खड़े रहेंगे, तो बेहतर होता।

जब से दुनिया कोविड के शिकंजे में आई है तब से पुतिन सिर्फ दो ही देशों में गए हैं। पहले वे अमेरिका के राष्ट्रपति जोसेफ रॉबिनेट बाइडेन से मिलने जेनेवा गए थे। उसके बाद वे भारत आए। इसी उदाहरण से समझा जा सकता है कि वे और उनका देश भारत को कितना महत्व देते हैं। इसलिए पुतिन की इस यात्रा को सामान्य या सांकेतिक यात्रा की श्रेणी में रखना तो भूल ही होगी। दरअसल भारत-रूस के बीच मौजूदा संबंधों में आई गर्मजोशी की जमीन तैयार करने में दोनों देशों के विदेश मंत्री क्रमश: एस.जयशंकर और सर्गेई लावरोव ने अहम रोल अदा किया है। दोनों देशों की यह चाहत है कि इनके बीच आपस में वर्ष 2025 तक 30 अरब डॉलर का कारोबार और 50 अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य हासिल हो जाए।

कोविड की चुनौतियों के बावजूद भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों और सामरिक भागीदारी में कोई बदलाव नहीं आया है। कोविड के खिलाफ लड़ाई में भी दोनों देशों के बीच सहयोग रहा है। हालांकि कुछ जानकार मान रहे थे कि भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में हुई झड़प के बाद रूस की तटस्थ नीति के चलते दोनों देशों के संबंध अब पहले की तरह तो नहीं रहेंगे। कहने वाले कह रहे थे कि कइयों को गिला यह था कि झड़प के बाद भी रूस की भारत के हक में ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई थी।

पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई भयंकर झड़प पर रूस ने कहा था कि वो भारत-चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण चिंता में है, लेकिन उसे उम्मीद है कि दोनों पड़ोसी देश इस विवाद को आपस में सुलझा सकते हैं। चीनी सैनिकों के साथ झड़प में भारतीय सेना के कर्नल सहित 20 जवान मारे गए थे। चीन की सीमा पर यह पांच दशकों के बाद सबसे बड़ा सैन्य टकराव था, जिसने दोनों देशों के बीच पहले से ही अस्थिर सीमा गतिरोध को और बढ़ा दिया था।

तब से भारत-चीन संबंध सामान्य नहीं हुए हैं। उस हिंसक झड़प में चीन को भी भारी नुकसान हुआ था, जगहंसाई हुई थी सो अलग। रूस को अपना पुराना और भरोसे का मित्र मानते हुए भारत उससे कुछ अतिरिक्त की उम्मीद कर रहा था। भारत की जनता की दिली इच्छा थी कि रूस उसी तरह से भारत के साथ खड़ा हो जैसे वह 1971 में पाकिस्तान के साथ जंग के समय में खड़ा हुआ था। तब वह सोवियत संघ था। 

इसमें कोई शक नहीं है कि रूस की प्रतिक्रिया से वे लोग निराश ही हुए थे जिन्होंने भारत-सोवियत संघ मैत्री का दौर देखा था। तब सोवियत संघ भारत के भरोसे के मित्र के रूप में सामने आता था। भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग के समय सोवियत संघ ने भारत का हरसंभव साथ दिया था। यह बात भी सच है कि इन पचास वर्षो के दौरान दुनिया बहुत बदली है, पर इतनी भी नहीं बदली जितना कि रूस बदला। कायदे से उसे पूर्वी लद्दाख में झड़प के समय भारत के हक में खुलकर आगे आना चाहिए था। लेकिन उसने औपचारिक किस्म का एक संतुलित बयान देकर अपनी जान छुड़ा ली थी।

फिर कुछ हलकों में यह भी कहा जा रहा था कि आतंकवाद से लड़ने के मामले में भी भारत को रूस का अपेक्षित साथ नहीं मिला। ब्रिक्स देशों के मंच पर भी नहीं। सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद की फैक्ट्री बन चुका है और चीन का उसे खुला समर्थन मिलता है। चीन भी तो ब्रिक्स का सदस्य ही है। इसके बावजूद रूस ने कभी चीन को इस बिंदु पर सलाह नहीं दी कि वह पाकिस्तान से दूरियां बनाए। ब्रिक्स, यानी उभरती अर्थव्यवस्थाओं का संघ. इसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं।

आतंकवाद के मसले पर सभी ब्रिक्स देशों को चीन और पाकिस्तान के खिलाफ समवेत स्वर से बोलना चाहिए था। लेकिन यह अब तक तो कभी नहीं हुआ। चीन ब्रिक्स आंदोलन को लगातार कमजोर करता रहा है। चीन भारत के साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहा है। भारत रूस से यह उम्मीद तो नहीं करता कि वह चीन से अपने सभी संबंध तोड़ ले, पर इतनी अपेक्षा तो कर सकता है कि वह सही मसले पर बोले। सत्य का साथ दे।

भारत-रूस का दायित्व है कि वे धूर्त चीन पर लगाम लगाने के लिए रणनीति बनाएं। यह सारी दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए जरूरी है। बहरहाल, चालू साल 2021 भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, इस साल 1971 की ट्रीटी ऑफ पीस फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन के पांच दशक और हमारी सामरिक भागीदारी के दो दशक पूरे हो रहे हैं। पिछले साल दोनों देशों के बीच व्यापार में 17 फीसदी की गिरावट हुई थी, परंतु इस साल पहले 9 महीनों में व्यापार में 38 फीसदी बढ़ोत्तरी देखी गई है। 

दोनों देश स्वाभाविक रूप से सहयोगी हैं और बहुत महत्वपूर्ण चीजों पर साथ-साथ काम कर रहे हैं, जिसमें ऊर्जा क्षेत्र, अंतरिक्ष सहित उच्च तकनीक के क्षेत्र शामिल हैं। भारत-रूस संबंध सारी दुनिया के लिए उदाहरण होना चाहिए। दोनों देशों को विश्व शांति और बंधुत्व के लिए सदैव प्रयासरत रहना होगा। अगर वे सिर्फ आपसी व्यापार में वृद्धि की ही बातें करेंगे और तब नेपथ्य में चले जाएंगे जब दोनों पर संकट होगा तो फिर इस तरह की दोस्ती का मतलब ही क्या रहेगा?

Web Title: India-Russia together should isolate China Says R K Sinha in his Blog

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