गांव और शहर के बीच बढ़ती चिंताजनक दूरी
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 27, 2018 03:58 IST2018-08-27T03:58:40+5:302018-08-27T03:58:40+5:30
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 में कुल राष्ट्रीय आय 135 लाख करोड़ रुपए बताई गई।

गांव और शहर के बीच बढ़ती चिंताजनक दूरी
कुछ दिन पूर्व नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) द्वारा जारी अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय सर्वेक्षण, 2016-17 की रिपोर्ट में कुछ ऐसे आंकड़े मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि कृषि में संलग्न गृहस्थों की आमदनी में खेती और सहायक गतिविधियों जैसे पशुपालन इत्यादि से मात्र 43 प्रतिशत ही आमदनी मिलती है, जबकि शेष 57 प्रतिशत आय नौकरी, मजदूरी, उद्यम इत्यादि से प्राप्त होती है।
यदि कृषि और गैर कृषि गृहस्थों को मिला दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 23 प्रतिशत ही आमदनी कृषि से हो रही है और शेष 77 प्रतिशत मजदूरी, सरकारी-निजी नौकरियों और उद्यम से प्राप्त होती है। यानी कहा जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से प्राप्त योगदान बहुत कम है, ग्रामीण क्षेत्रों में भी खेती हाशिए पर आ गई है।
समय के साथ-साथ गैरकृषि क्षेत्रों में आमदनियां खासी बढ़ी हैं। लेकिन यह आमदनियां भी शहरी क्षेत्रों में ही बढ़ी हैं। शहरों में लोगों की आमदनियां काफी तेजी से बढ़ी हैं। हालांकि किन्हीं दो स्नेतों से आंकड़ों की तुलना करना शोध की दृष्टि से औचित्यपूर्ण नहीं होता, फिर भी गांवों और शहरों की तुलना के लिए मात्र यही एक माध्यम बचता है, क्योंकि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन गांवों और शहरों की आमदनी के आंकड़े नियमित रूप से प्रकाशित नहीं करता।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 में कुल राष्ट्रीय आय 135 लाख करोड़ रुपए बताई गई। यदि इसमें से ग्रामीण आय घटा दी जाए तो वर्ष 2016-17 में शहरी क्षेत्र की कुल राष्ट्रीय आय 114़ 5 लाख करोड़ रुपए होगी।
यदि प्रतिव्यक्ति आय की दृष्टि से देखा जाए तो वर्ष 2016-17 में गांवों की प्रतिव्यक्ति आय 22702 रुपए वार्षिक ही रही, जबकि शहरी प्रतिव्यक्ति आय 279609 रुपए रही। इसका मतलब यह है कि शहरी प्रतिव्यक्ति आय ग्रामीण प्रतिव्यक्ति आय से 12़ 3 गुना ज्यादा है।
कुछ वर्ष पहले तक शहरी प्रतिव्यक्ति आय ग्रामीण प्रतिव्यक्ति आय से 9 गुना ज्यादा थी। 2016-17 तक आते-आते यह अंतर 12़ 3 गुना तक पहुंच गया है। यह शहर और गांव के बीच बढ़ती खाई चिंता का कारण है और नीति-निर्माताओं के लिए एक चुनौती भी।
यह गांवों से शहरों की ओर पलायन का कारण भी है और गांवों में बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी का संकेत भी। हमें इसके कारण भी खोजने होंगे और उनका निराकरण भी करना होगा। गांवों में उद्यम शीलता के विकास की जरूरत है। किसान खेती-किसानी के अलावा उद्यम चलाएं और भूमिहीन लोग भी उद्यमशीलता में आगे बढ़ें, तभी गांवों की आमदनी बढ़ सकती है।