ब्लॉग: सत्ता का लालच या समाजसेवा की छटपटाहट !

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: July 17, 2024 11:59 IST2024-07-17T11:54:52+5:302024-07-17T11:59:21+5:30

बचपन में अक्सर हमें लगता था कि लोग हमें बच्चा क्यों समझते हैं, बड़े ऐसा कौन सा तीर मार लेते हैं जो हम बच्चे नहीं मार सकते!

Greed for power or the urge for social service | ब्लॉग: सत्ता का लालच या समाजसेवा की छटपटाहट !

फाइल फोटो

Highlightsबचपन में अक्सर हमें लगता था कि लोग हमें बच्चा क्यों समझते हैंबड़े ऐसा कौन सा तीर मार लेते हैं जो हम बच्चे नहीं मार सकते! महसूस ही नहीं होता था कि हम बच्चे हैंछुटपन में लगता था कि नवयुवक सिर्फ 18-20 या 22 साल की उम्र के लोग ही होते होंगे

हेमधर शर्मा: बचपन में अक्सर हमें लगता था कि लोग हमें बच्चा क्यों समझते हैं, बड़े ऐसा कौन सा तीर मार लेते हैं जो हम बच्चे नहीं मार सकते! महसूस ही नहीं होता था कि हम बच्चे हैं. किशोरावस्था में तो खास तौर पर बड़े जब हमें कमतर समझते तो कोफ्त होती थी।

छुटपन में लगता था कि नवयुवक सिर्फ 18-20 या 22 साल की उम्र के लोग ही होते होंगे, उसके बाद युवक बन जाते होंगे. लेकिन 25-30 साल की उम्र तक हम खुद को नौजवान ही समझते रहे और जवान तो अभी 50 की उम्र में भी महसूस करते हैं, कोई अंकल बोल दे तो बुरा लगता है.

दाढ़ी और सिर के बाल सफेद होने का तो ऐसा है कि आजकल तो प्रदूषण के चलते छोटे-छोटे बच्चों के भी बाल पकने लगे हैं. अब हैरानी होती है कि पचास की उम्र के लोगों को हम प्रौढ़ कैसे कह देते थे, और मात्र साठ साल की उम्र में कोई कैसे ‘सठिया’ सकता है?

अधिक से अधिक वह युवावस्था के ढलने की उम्र होती होगी. दरअसल भुक्तभोगी हुए बिना चीजें समझ में नहीं आतीं, लोग तो कुछ भी कह देते हैं. कुछ ऐसा ही शायद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी महसूस कर रहे होंगे, जब लोगों को कहते सुनते होंगे कि वे बुढ़ा गए हैं और भूलने की उम्रगत बीमारी के कारण उन्हें राष्ट्रपति पद की दौड़ से हट जाना चाहिए. ताज्जुब तो उन्हें यह देखकर भी होता होगा कि उनसे मात्र तीन साल छोटे ट्रम्प का बुढ़ापा लोगों को नहीं दिख रहा.

लकीर कितनी भी बड़ी हो, अपने से बड़ी की तुलना में छोटी ही लगती है. हमारे गांव में सौ साल के एक वयोवृद्ध के बेटे की उम्र भी अस्सी के पार हो गई थी, लेकिन कोई उन्हें बूढ़ा समझता ही नहीं था और उन्हें भी जब तक पिता जीवित रहे,

अपने अंदर बेटे वाली फीलिंग ही आती रही. ट्रम्प का भी, जानलेवा हमला होने के बावजूद, राष्ट्रपति बनने के लिए जोश हाई है, क्योंकि खुद को वे वर्तमान राष्ट्रपति से छोटा (उम्र में) समझते हैं. हमारे देश में भी राजनीतिक रिटायरमेंट के लिए एक राजनीतिक दल द्वारा 75 साल की उम्र तय किए जाने के बावजूद उस आयु सीमा को अनिश्चित काल के लिए आगे खिसकाना पड़ा, क्योंकि पाया गया कि सत्ता चलाने का जोश तो 75 साल के बाद भी वैसा ही (बल्कि पहले से भी ज्यादा!) बरकरार रहता है.

दरअसल सारी लड़ाई तुलना और दृष्टिकोण की है. बाइडेन से दो-तीन साल बड़ा कोई उम्मीदवार चुनाव में खड़ा हो जाए तो वे युवा लगने लगेंगे. बाहर से देखने वालों को लगता है कि आदमी बुढ़ा गया है, जबकि सत्ता के आकांक्षी को लगता है कि अभी तो मैं जवान हूं! अब ये फैसला कौन करे कि कौन सही है, कौन गलत?
कहते हैं अर्जुन के साथ जब तक कृष्ण थे,

तब तक वे खुद को दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर समझते थे, लेकिन कृष्ण के साथ छोड़ते ही वे भीलों द्वारा गोपिकाओं को लूटने तक से नहीं बचा पाए थे. इसी तरह सत्ता का साथ रहे तो शायद बूढ़े भी खुद को जवान समझते हैं और सत्ता चली जाए तो जवानों को भी बुढ़ापा महसूस होने लगता है!

Web Title: Greed for power or the urge for social service

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