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गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: अयोध्या और राम राज्य की किरण

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: November 22, 2019 13:56 IST

सदियों से भारतीय समाज की पीढ़ी-दर-पीढ़ी अब तक इसी स्मृति में डुबकियां लगाती रही है कि राम का जन्म यहीं हुआ और बचपन भी यहीं बीता.

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ठळक मुद्देवेद, पुराण और रामायण में अयोध्या को पावन नगरी के रूप में कई तरह से स्मरण किया गया है. मोक्षदायिनी सात नगरियों में अयोध्या का नाम सबसे पहले आता है.

अयोध्या और भगवान राम के बीच अभिन्न संबंध के कारण मंदिर-निर्माण के साथ बहुतों का गहरा लगाव है. पर तथ्य यह भी है कि अंतर्यामी हमारे राम निश्चय ही एक मंदिर में नहीं समा सकते, मंदिर चाहे जितना विशाल और भव्य क्यों न हो. कोई भी मानवीय रचना स्वभावत: परिसीमित ही होगी क्योंकि वह तो ठहरी सिर्फ एक मूर्त प्रतीक या संकेत. यह जरूर है कि वह प्रतीक परमात्मा राम की और राम-भाव की अनुभूति का एक सिलसिला शुरू कर सकता है जिसके सहारे हम खुद को राम जी की याद दिलाते रहते हैं. इस अर्थ में मंदिर ही क्यों पूरी अयोध्या नगरी ही राममय है!.

सदियों से भारतीय समाज की पीढ़ी-दर-पीढ़ी अब तक इसी स्मृति में डुबकियां लगाती रही है कि राम का जन्म यहीं हुआ और बचपन भी यहीं बीता. उनके जीवन से जुड़े बहुत से ठांव-ठिकाने भी हमने बना रखे हैं. सीता की रसोई, हनुमान गढ़ी, और भी जानें क्या-क्या. पावन सरयू नदी यहीं बहती है. चैत महीने की रामनवमी को हमारे राम प्रति वर्ष जन्म लेते हैं (सालगिरह मना कर हम उन्हें हर साल और बूढ़े नहीं करते!) और राम-जन्म की स्मृति फिर-फिर जीवंततर और पहले से और ज्यादा सुदृढ़ होती जाती है. अंतत: स्मृति ही सत्य को प्रमाणित करती है.

वेद, पुराण और रामायण में अयोध्या को पावन नगरी के रूप में कई तरह से स्मरण किया गया है. मोक्षदायिनी सात नगरियों में अयोध्या का नाम सबसे पहले आता है. निश्चय ही अयोध्या के मयार्दा पुरुषोत्तम भगवान राम भारत की सामाजिक स्मृति के अभिन्न अंश हैं. भारत का आम आदमी जिससे लोक का निर्माण होता है , जो ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है, राम को अपने बड़े नजदीक पाता है.अयोध्या के बहाने राम का स्मरण यही व्यक्त करता है कि मनुष्य जीवन एक सतत परीक्षा की श्रंखला है.

समाज की कसौटी पर खरे उतरने की चुनौती, अपने वचन की रक्षा की प्रतिज्ञा, गुरु जनों की सेवा और प्रजा-वत्सलता आदि सभी दायित्वों के प्रति रामचंद्र जी जीवन भर सतर्क और सक्रिय बने रहे. वे जीवन में बार-बार दंश ङोलते हैं. राम एक कठोर साधनामय जीवन की प्रतीति कराते हैं. उनका पूरा जीवन जगत के हित के लिए समर्पित ह ैऔर सबका साथ लेने वाले समष्टि भाव से अनुप्राणित.

आज रामलला की दिव्य मूर्ति के एक भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित होने को लेकर सब में उत्साह है और इसके लिए सबकी सहमति बनती भी दिख रही है. यह निश्चय ही देश के लिए एक शुभ लक्षण है.

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