किसान आंदोलन खत्म करने के लिए सत्तानीति नहीं, सेवानीति की जरूरत है! 

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 9, 2020 14:48 IST2020-12-09T14:47:09+5:302020-12-09T14:48:05+5:30

कृषि सुधार कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों से छठे दौर की वार्ता से ठीक एक दिन पहले गतिरोध समाप्त करने के प्रयासों के तहत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और किसान नेताओं के एक समूह के बीच वार्ता विफल हो गई है.

farmer protest​​​​​​​ delhi chalo haryana punjab pm narendra modi amit shah government | किसान आंदोलन खत्म करने के लिए सत्तानीति नहीं, सेवानीति की जरूरत है! 

कृषि क़ानूनों की लाज रखते हुए किसानों की कई मांगे सरकार मानने को राजी हो गई है. (file photo)

Highlights13 किसान नेताओं को शाह के साथ इस बैठक के लिए बुलाया गया था.हम संशोधन नहीं चाहते। हम चाहते हैं कि इन कानूनों को निरस्त किया जाये.

कृषि क़ानूनों को खत्म करने के लिए मंगलवार को किसानों ने भारत बंद किया था. इस बंद का असर इस तरह नजर आया कि पहली बार गृहमंत्री अमित शाह ने किसान नेताओं से बातचीत की.

यह बात अलग है कि इस बातचीत का कोई खास नतीजा नहीं निकला, लेकिन दो बातें साफ हो गई, एक- केन्द्र सरकार को किसान आंदोलन के कारण बढ़ते सियासी संकट का अहसास हो गया है और दो- कृषि क़ानूनों की लाज रखते हुए किसानों की कई मांगे सरकार मानने को राजी हो गई है.

लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि क्या किसान राजी होंगे, क्योंकि एक तो किसान नेतृत्व किसी एक नेता के हाथ नहीं है और दूसरा- कृषि कानून समाप्त करने से कम पर समझौता करने की हिम्मत अब तक किसी भी किसान नेता ने प्रदर्शित नहीं की है.

अमित शाह के साथ बैठक में शामिल किसान नेताओं ने कहा कि- सरकार कानून वापसी को तैयार नहीं है. याद रहे, बैठक से पहले ही किसानों का कहना था कि कोई बीच का रास्ता नहीं है. हमें गृहमंत्री से- हां या ना में ही जवाब चाहिए. कानून वापसी से कम कुछ मंज़ूर ही नहीं है.

जाहिर है, बैठक बेनतीजा रहनी ही थी. लेकिन, केन्द्र सरकार की ओर से लगातार इसलिए प्रयास किए हैं कि कृषि कानूनों को लेकर मोदी सरकार पूरी तरह से एक्सपोज होना नहीं चाहती है, क्योंकि इससे बीजेपी को बड़ा सियासी नुकसान ही होगा. कहने को तो इसे बार-बार मध्यभारत का आंदोलन करार दिया जा रहा है, परन्तु बड़ा प्रश्न यह है कि- बीजेपी भी तो मध्य भारत की ही पार्टी है?

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