शरद जोशी का ब्लॉग: सर्वप्रिय पंक्ति की तलाश

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 27, 2019 08:20 IST2019-04-27T08:20:15+5:302019-04-27T08:20:15+5:30

कई बार मैंने ऐसी ‘परिक्रमा’ भी लिखने का प्रयत्न किया जो सबको पसंद आ जाए। प्रत्येक प्रकार की विचारधारा तथा आचारधारा का आदमी उसे पसंद करे और सिर पर उठा ले।

Blog of Sharad Joshi: Looking for the All-Line | शरद जोशी का ब्लॉग: सर्वप्रिय पंक्ति की तलाश

शरद जोशी का ब्लॉग: सर्वप्रिय पंक्ति की तलाश

कई दिनों तक मैं यह नहीं समझ पाया और अभी भी काफी नासमझ इसी बात पर हूं कि आखिर ‘शाश्वत साहित्य’ क्या होता है? मैंने सोचा कि अगर यह ‘शाश्वत’ शब्द  का अर्थ और इसकी कला ठीक से समझ आ जाए तो एकाध ‘शाश्वत परिक्रमा’ लिख डालूं  जो सदैव पढ़ी जाए और कोट की जाए। मगर ऐसा हुआ नहीं।

कई बार मैंने ऐसी ‘परिक्रमा’ भी लिखने का प्रयत्न किया जो सबको पसंद आ जाए। प्रत्येक प्रकार की विचारधारा तथा आचारधारा का आदमी उसे पसंद करे और सिर पर उठा ले। मगर काफी व्यक्तियों के पसंद करने के बावजूद कई व्यक्ति ऐसे मिल गए जो उसे देख प्रसन्न नहीं हुए बल्कि नाक-भौं सिकोड़ने लगे।

सोचता हूं, साहित्य में क्या एक भी चीज ऐसी है जिसे सभी व्यक्ति सब समयों में पसंद करें? इसी उद्देश्य से मैं काफी ऐसा साहित्य खोज चुका हूं जिसमें मुङो ऐसी कोई पंक्ति मिले जिसे जब पढूं तब हृदय खिल जाए, आंखें चमक जाएं। पर ऐसी कोई पंक्ति या रचना या पुस्तक नहीं मिली।

मैंने सोचा, सिर्फ हिंदी का क्या ठेका है, किसी भी भाषा में ऐसी पंक्ति मिल जाए। विदेश की भी कई प्रसिद्ध किताबों को छाना पर कोई भी ऐसी पंक्ति नजर नहीं आई जिसे सदैव ही अपने कलेजे से लगा रखें, जैसे-बंदरिया अपने बच्चे को चिपकाए रखती है।

फिर अच्छी प्रिय लगने वाली पंक्ति की भी सीमा होती है। यदि वही कई स्थानों पर दिखी तो हम उसे क्या पसंद करेंगे। यदि एक ही रचना की पचास या हजार प्रतियां हमारे पास हुईं तो हमें उन्हें देखकर कोई प्रसन्नता नहीं होगी। वही बात जो एक प्रति में लिखी है, वही सभी प्रतियों में लिखी है, अत: आप यह कभी नहीं चाहेंगे कि सभी प्रतियां आप अपने यहां रख लें और रखना पड़ा तो प्रसन्नता नहीं होगी।

ऐसी पंक्ति मुङो कोई भी नहीं मिली सिवाय...
एक दिन ऐसे ही बैठा हुआ था तो जाने कैसे अंदाज आया कि यह सबसे बड़ी कविता, सबसे प्रिय पंक्ति, सबसे बड़ा आकर्षण जिसे जितनी प्रतियों में देखो तो मन नहीं अघाए, जिसे जितनी बार पढ़ो, अच्छा लगे; जिसे जब देखो, अपनी आंखों में चमक आ जाए-मेरे पास ही है। साधारण-सी पंक्ति है। आपके पास भी होगी और आप सब चीजों, सारे साहित्य से उसे बड़ी भी समझते होंगे। सोचिए, क्या है?

खैर, बता देता हूं। वह सर्वप्रिय पंक्ति है, जिसे सदैव हम पसंद करते हैं, सभी प्रतियों में-सबसे बड़ी कविता: ‘आई प्रॉमिस टु पे दि बियरर ऑन डिमांड दि सम ऑफ-रुपीज एट एनी ऑफिस ऑफ इश्यू।’ ल्लल्ल
(रचनाकाल - 1950 का दशक)

Web Title: Blog of Sharad Joshi: Looking for the All-Line

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