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अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: नई पहल से क्या सुलझ सकेगा अयोध्या विवाद?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 10, 2019 05:40 IST

सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि सुलह से रास्ता निकले. बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने इस प्रक्रिया में पूरा सहयोग करने की बात कही है.

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अयोध्या भूमि विवाद का निदान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने मध्यस्थता कमेटी का गठन करते हुए एक नई पहल की है. इस कमेटी की अध्यक्षता रिटायर्ड न्यायाधीश इब्राहिम खलीफुल्लाह करेंगे, जबकि श्रीश्री रविशंकर और श्रीराम पंचू भी इसमें शामिल हैं. मध्यस्थता प्रक्रिया फैजाबाद में चलेगी और मीडिया इसकी रिपोर्टिग नहीं करेगा. आठ हफ्ते में मध्यस्थता की प्रक्रिया समाप्त होगी. 

सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि सुलह से रास्ता निकले. बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने इस प्रक्रिया में पूरा सहयोग करने की बात कही है. वहीं राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने कहा कि कमेटी सभी पक्षकारों को सुनेगी और इसके बाद कोर्ट निर्णय लेगा. यह अच्छी बात है. जल्दी से जल्दी इस मामले का समाधान निकलना चाहिए.इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले का हल वार्ता के जरिए करने की सलाह दी थी.

तब मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने यहां तक कहा था कि वे दोनों पक्षों के द्वारा चुने मध्यस्थों के साथ भी बैठने को तैयार हैं. इस टिप्पणी पर सत्तारूढ़ एनडीए समेत तमाम राजनीतिक दलों ने सकारात्मक टिप्पणी की थी. लेकिन तब पक्षकारों में खास उत्साह नहीं दिखा, क्योंकि दशकों से चली आ रही अदालती प्रक्रिया और तमाम वार्ताओं के बाद भी मामला वहीं खड़ा रहा जैसा 6 दिसंबर, 1992 के समय था.

अयोध्या मामला काफी पेचीदा है और इसका निदान निकालने को लेकर अब तक कई स्तर पर प्रयास हो चुके हैं. उन लोगों से भी संवाद चला जो इसमें पक्षकार नहीं थे. 1985 के बाद इस मसले को लेकर सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर जाने कितनी कोशिशें की जा चुकी हैं और जाने कितने नाम इसमें शामिल हुए. कभी कांची के शंकराचार्य तो कभी किशोर कुणाल, कभी चंद्रास्वामी तो कभी कोई और.

लेकिन इसका कोई रास्ता नहीं निकला. बड़े धर्माचार्यो और शंकराचार्यो से लेकर विश्व हिंदू परिषद और मुस्लिम संगठनों से भी कई स्तर पर वार्ताएं की जा चुकी हैं. लेकिन सभी पक्ष अपने पुराने रवैये पर कायम रहे. राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास कई बार यह बात कर चुके हैं कि राम जन्मभूमि की दावेदारी वार्ता से आगे निकल चुकी है. ऐसी टिप्पणियां पहले आ चुकी हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की इस नई पहल से कुछ उम्मीदें जग रही हैं.अयोध्या के मुद्दे पर वीपी सिंह के शासनकाल से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल तक काफी कोशिशें चलीं.

केंद्र सरकार में भी एक अयोध्या प्रकोष्ठ बना. 2003 में 15 मार्च से अगस्त के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय के आदेश पर खुदाई भी की. लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला. उल्टे इस बीच में अयोध्या आंदोलन के तमाम दिग्गज नेता जैसे अशोक सिंघल, गोरक्ष पीठाधीश महंत अवैद्यनाथ, महंत रामचंद्र दास परमहंस और हाशिम अंसारी आदि दिवंगत हो चुके हैं. अपने निधन के पहले अशोक सिंहल ने फैजाबाद में कहा था कि मोदी सरकार को जमीन का अधिग्रहण कर मंदिर बनाना चाहिए.

केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में भाजपा के चुनाव घोषणापत्न में संविधान के दायरे में मंदिर बनाने की बात कही गई थी. बाद में केंद्रीय गृह मंत्नी राजनाथ सिंह ने अयोध्या में ही सार्वजनिक तौर पर कह दिया कि चूंकि राज्यसभा में बहुमत नहीं है लिहाजा राम मंदिर के लिए कानून बनाना संभव नहीं है. इसके बाद केंद्र के साथ उत्तर प्रदेश में भी प्रचंड बहुमत से भाजपा की सरकार बनी.

पिछले कुछ महीनों से विश्व हिंदू परिषद और संघ परिवार ने मंदिर मुद्दे पर दबाव बनाने की कोशिश की. बीते नवंबर में अयोध्या में विराट धर्म सभा के माध्यम से राम मंदिर के मुद्दे पर अध्यादेश या दूसरा रास्ता तलाशने की मांग की गई थी. इस आयोजन में देश के सभी प्रमुख हिस्सों से साधु-संत और बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने कहा कि लोकसभा और विधानसभाओं में बैठे लोग राम मंदिर निर्माण की राह प्रशस्त करें. 

वहीं कई दूसरे साधुओं का कहना था कि कानून बना कर इस मसले का हल निकालना चाहिए. इस सभा में पहुंचे आरएसएस के बड़े नेता कृष्ण गोपाल का कहना था कि हमने रामजन्मभूमि के मुद्दे को हमेशा प्राथमिकता में रखा है. संघ के वरिष्ठ अधिकारियों का मत है कि इस मसले पर संतों का जो भी आदेश होगा उसे हम पहले की तरह ही मानेंगे. कुल मिला कर अयोध्या विवाद तीन दशकों से राजनीतिक फुटबाल बना हुआ है. देखना यह है कि नई कोशिश कितना रंग लाती है. 

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