ब्लॉग: पाक अधिकृत कश्मीर में फैलता आक्रोश

By राजेश बादल | Updated: May 14, 2024 11:07 IST2024-05-14T11:02:29+5:302024-05-14T11:07:30+5:30

हिंदुस्तान में लोकसभा चुनाव अपना आधा सफर तय कर चुका है। अभी तक के सारे चरणों में पाकिस्तान की उपस्थिति किसी न किसी रूप में बनी रही है।

Blog: Anger spreading in Pakistan Occupied Kashmir | ब्लॉग: पाक अधिकृत कश्मीर में फैलता आक्रोश

फाइल फोटो

Highlightsभारत और पाकिस्तान में जब भी आम चुनाव होते हैं तो प्रचार मुहिम में एक-दूसरे का जिक्र होता ही हैदोनों ही मुल्कों में प्रचार अभियान एक-दूसरे की आलोचना के बिना अधूरा ही रहता हैयही कारण है कि लोकसभा चुनाव में पाकिस्तान की उपस्थिति किसी न किसी रूप में बनी हुई है

खबर न अप्रत्याशित है और न असाधारण। जब भी भारत और पाकिस्तान में आम चुनाव होते हैं तो प्रचार मुहिम में एक-दूसरे का जिक्र होता ही है। दोनों ही मुल्कों में प्रचार अभियान एक-दूसरे की आलोचना के बिना अधूरा ही रहता है। हिंदुस्तान में लोकसभा चुनाव अपना आधा सफर तय कर चुका है। अभी तक के सारे चरणों में पाकिस्तान की उपस्थिति किसी न किसी रूप में बनी रही है। अब ताजा खबरें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से आई हैं।

वहां के लगभग सारे कस्बों में पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ आक्रोश सड़कों पर दिखाई दे रहा है। सुरक्षाबलों के लिए गुस्से में आई जनता का सामना करना कठिन हो गया है। तनाव और हिंसा का आलम यह है कि करीब एक सप्ताह से जनजीवन ठप है। लोग जरूरत की चीजों के लिए तरस रहे । उत्तेजित भीड़ सुरक्षाबलों की सरेआम पिटाई कर रही है। रविवार को एक पुलिस अधिकारी की गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने गोली मार कर हत्या कर दी।

इससे पहले सेना की फायरिंग में दो गांववाले मारे गए थे। अनेक कस्बों में सैकड़ों प्रदर्शनकारी हिंसक झड़पों में घायल हुए । किसी-किसी इलाके में भारत के समर्थकों ने तिरंगा भी लहराया और हिंदुस्तान में विलय की मांग करते हुए रैलियां। पाकिस्तान के बलूचिस्तान और कब्जे वाले कश्मीर क्षेत्र में चुनाव के दिनों में हर बार माहौल में पारा आसमानी ऊंचाई पर पहुंचता है।

निर्वाचन प्रक्रिया समाप्त हो जाने के बाद सारा आक्रोश फुस्स हो जाता है। सब कुछ सामान्य हो जाता है। न बलूचिस्तान आजाद हो पा रहा है और न कश्मीर का इलाका पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त हो पा रहा है। असल में इन दोनों प्रदेशों के निवासियों को लगता है कि पाकिस्तान के साथ उनका भविष्य नहीं है और उन्हें स्वतंत्र कराने में भारत ही सहायता कर सकता । जब भारत के चुनाव प्रचार में पाकिस्तान के प्रति क्रोध भरे स्वर गूंजते हैं तो उसका असर पाकिस्तान में भी होता है। ऐसा ही हाल पाकिस्तान में होता है, जब वहां सेना के साये में चुनाव होते हैं।

सरकार वहां किसी भी दल की हो, वह अपने मतदाताओं को भरोसा दिलाती है कि यदि वह सत्ता में आई तो भारत से वह जम्मू-कश्मीर छीन लाएगी लेकिन ऐसा कभी नहीं । दोनों राष्ट्रों के मतदाता भी अब समझने लगे हैं कि ऐसी प्रोपेगंडा- जंग का कोई अर्थ नहीं है। दरअसल यही दोनों सूबे तरक्की के नजरिये से पाकिस्तान सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं हैं। इसलिए न तो वहां के नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं आसानी से मिलती हैं और न वहां के नौजवानों के बेहतर भविष्य की कोई गारंटी है।

दोनों सूबों के ऐतिहासिक तथ्यों और संदर्भों को देखें तो पता चलता है कि नागरिकों ने अभी तक पाकिस्तान में उनके इलाकों का विलय मंजूर नहीं किया है। पाकिस्तान सरकार वहां के नागरिकों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करती है। बलूचिस्तान में तो पाकिस्तानी फौज ने अपनी थल और वायु सेना का इस्तेमाल किया है। ठीक वैसा ही युद्ध लड़ा है, जैसा दो देशों के बीच हुआ करता है। फिर भी वह अलगाववादियों पर नियंत्रण नहीं कर पाई है।

बलूचिस्तान का इलाका भारत के विभाजन के बाद बने पाकिस्तान में नहीं था। वह तो अंग्रेजों के कब्जे में एक स्वतंत्र देश ही था, जिस पर पाकिस्तान ने धोखे से कब्जा कर लिया था। यही स्थिति कश्मीर घाटी की है। बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने कबाइली वेश में लड़ाकू भेजे और उस पर कब्जा कर लिया। अब इतने वर्षों में दोनों ओर से भरोसे की दीवार टूटी हुई है।

आपको याद होगा कि जब बांग्लादेश युद्ध हुआ और भारत ने बांग्लादेश को सबसे पहले मान्यता दी तो बलूचिस्तान के लोग सबसे ज्यादा प्रसन्न थे। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उस समय के थलसेना अध्यक्ष जनरल मानेक शॉ के बड़े-बड़े फोटो लेकर रैलियां निकाली थीं और उनकी जिंदाबाद के नारे लगाए थे। बलूचिस्तान के लोग चाहते थे कि इंदिरा गांधी उन्हें भी पाकिस्तान से आजादी दिलाएं।

बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों के नजरिये से बेहद संपन्न प्रदेश है लेकिन पाकिस्तान भयभीत रहता है कि यह क्षेत्र कभी न कभी पाकिस्तान के अधिकार से आजाद होगा ही। इसलिए वहां खुशहाली के प्रयास नहीं होते। मुझे याद है कि 2005 में जब आठ अक्तूबर को कश्मीर में भूकंप आया था तो मैं वहां एक वृत्तचित्र की शूटिंग के लिए गया। वहां दोनों मुल्कों के बीच का अमन सेतु टूट गया था। इसलिए बहुत से पाकिस्तानी भारतीय कश्मीर में रुके रहे।

मुझसे बातचीत में उन्होंने स्पष्ट स्वीकार किया था कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की हालत अच्छी नहीं है। वहां की हुकूमत डरती रहती है कि यह इलाका उनके हाथ से देर-सबेर निकल ही जाएगा। इसलिए वह कोई विकास के काम नहीं करती। इन दोनों सूबों में चीनी नागरिकों और चीनी सुरक्षाबलों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। इसका स्थानीय नागरिक विरोध करते हैं।

अब तक अनेक चीनी नागरिक और इंजीनियर हमलों में मारे जा चुके हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ तो चीन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का क्षेत्र विवादास्पद बताता है लेकिन उसी हिस्से को पाकिस्तान से उपहार की तरह लेने में कोई संकोच नहीं करता। असल में पाकिस्तान के इन सूबों को अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की दरकार है लेकिन पाकिस्तान सरकार को अमेरिकी संरक्षण के चलते यहां की अवाम भारत के अलावा किसी अन्य राष्ट्र से सहयोग की अपेक्षा नहीं करती। इसलिए भारत के लिए भी आवश्यक है कि भारतीय उपमहाद्वीप में शांति और स्थिरता के लिए सकारात्मक पहल करे।

Web Title: Blog: Anger spreading in Pakistan Occupied Kashmir

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