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भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: व्हिप को अविश्वास प्रस्ताव तक ही सीमित करना होगा

By भरत झुनझुनवाला | Updated: May 19, 2019 06:27 IST

व्हिप यानी चाबुक. इस व्यवस्था के अंतर्गत हर पार्टी में किसी एक सांसद को व्हिप के रूप में नामित किया जाता है. व्हिप की जिम्मेदारी होती है कि प्रमुख विषयों पर चर्चा के समय पार्टी के सभी सांसदों का संसद में उपस्थित होना सुनिश्चित करे.

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चुनावी लोकतंत्र के वैचारिक आधार के अनुसार जनता द्वारा चयनित लोगों को जनता पर शासन का अधिकार है. वे जनता द्वारा चयनित होते हैं इसलिए अपेक्षा की जाती है कि वह जनता के हित में काम करेंगे. इस व्यवस्था के सही संचालन के लिए जरूरी है कि सत्तारूढ़ और विपक्ष की पार्टियों के सांसद पर्याप्त संख्या में सदन में उपस्थित हों, विशेषकर प्रमुख मुद्दों पर चर्चा के दौरान अथवा अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के समय. इसलिए इंग्लैंड में व्हिप की व्यवस्था की गई. 

व्हिप यानी चाबुक. इस व्यवस्था के अंतर्गत हर पार्टी में किसी एक सांसद को व्हिप के रूप में नामित किया जाता है. व्हिप की जिम्मेदारी होती है कि प्रमुख विषयों पर चर्चा के समय पार्टी के सभी सांसदों का संसद में उपस्थित होना सुनिश्चित करे. यह व्यवस्था आज सभी प्रमुख लोकतांत्रिक देशों में है. लेकिन इस व्यवस्था में व्हिप की भूमिका मात्र इतनी रहती है कि वह सांसद की उपस्थिति संसद में सुनिश्चित करे. संसद में आने के बाद सांसद अपने विवेकानुसार मत देने के लिए स्वतंत्र रहता है.

इसका ज्वलंत उदाहरण हाल में इंग्लैंड में हुआ ब्रेक्जिट मतदान है, ब्रेक्जिट यानी इंग्लैंड के यूरोपियन यूनियन से अलग होने के प्रस्ताव पर मतदान. यह प्रस्ताव कंजर्वेटिव पार्टी द्वारा संसद में लाया गया. उसका बहुमत भी था लेकिन पार्टी के कई सांसदों ने अपनी ही पार्टी के प्रस्ताव का विरोध किया और ब्रेक्जिट का प्रस्ताव गिर गया. 

भारत में इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग होने लगा. 80 के दशक में कई राज्यों के विधायक दनादन पार्टियां बदलने लगे. जो पार्टी अधिक धन देती थी, वह उस पार्टी में सम्मिलित हो जाते थे. राज्यों में स्थिर सरकार बनाना असंभव हो गया. उस अस्थिरता से बचने के लिए 1985 में हमने 52 वां संविधान संशोधन पारित किया. इसमें व्यवस्था थी कि हर विधायक या सांसद को पार्टी के निर्देशानुसार ही मतदान करना पड़ेगा. यदि वह पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है तो विधानसभा अथवा संसद में उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी.

इस व्यवस्था को लागू करने के लिए अपने देश में व्हिप की व्यवस्था की गई. व्हिप का कार्य अब केवल यह नहीं रह गया कि विधायकों और सांसदों की उपस्थिति सुनिश्चित करे, बल्कि यह हो गया कि देखे कि विधायकों या सांसदों ने पार्टी के अनुसार मतदान किया या नहीं. जैसे यदि भारत में सरकार ने प्रस्ताव लाया कि खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश को स्वीकृति दी जाए और किसी सांसद ने उस प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया तो उस सांसद की सदस्यता समाप्त हो जाएगी. ऐसा करके हमने सांसदों की स्वतंत्रता अथवा विवेक के उपयोग को समाप्त कर दिया.

एक तरफ हमें निश्चित करना है कि सरकारें स्थिर रहें जिससे कि सत्तारूढ़ पार्टी अपना कार्य बिना भय के कर सके. दूसरी तरफ हमें विधायकों और सांसदों पर पार्टी के दबाव को समाप्त करना है,  जिससे लोकतंत्र सही मायने में पुन: बहाल हो सके. इन दोनों समस्याओं का हल यह हो सकता है कि अपने देश में व्हिप की भूमिका को इंग्लैंड और अमेरिका की तरह केवल सांसद के सदन में उपस्थित होने तक सीमित कर दिया जाए.

कानून से यह व्यवस्था हटा दी जाए कि विधायक और सांसद को पार्टी के निर्देशानुसार मतदान करना होगा. अविश्वास प्रस्ताव पर यह व्यवस्था जरूर की जा सकती है कि हर विधायक अथवा सांसद को पार्टी के ही पक्ष में मतदान करना होगा. अविश्वास प्रस्ताव पर व्हिप लागू करने से सरकार की स्थिरता बनी रहेगी. लेकिन अन्य सभी मुद्दों पर विधायकों और सांसदों को पार्टी के निर्देशों से मुक्त करने से देश में सही मायनों में लोकतंत्र पुन: बहाल हो सकेगा. 

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