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16 वर्ष बाद भी लोग भूल नहीं पाए हैं सुनामी के उस कहर को  

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 26, 2020 12:30 IST

26 दिसम्बर, 2004 को इंडोनेशिया के उत्तरी भाग में स्थित असेह के निकट रिक्टर पैमाने पर 8.9 तीव्रता के भूकंप के बाद समुद्र के भीतर उठी सुनामी ने भारत सहित कई देशों में भारी तबाही मचाई.

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ठळक मुद्देहिंद महासागर से उठी उग्र लहरों का पानी रात के अंधेरे में कई तटीय इलाकों में बसे रिहायशी क्षेत्रों में घुस गया.भूकंप और सुनामी से इतनी तबाही पिछले 40 साल में विश्व ने नहीं देखी थी.सुनामी की पूर्व चेतावनी जैसी कोई प्रणाली प्रचलन में नहीं थी.

26 दिसंबर की सुबह हर साल केवल भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया से लेकर अफ्रीका तक लाखों लोगों के दिलोदिमाग में आज भी दहशत की वजह बनती है.

2004 की 26 दिसंबर को इंडोनेशिया के पास प्रलयंकारी भूकंप से तैयार सुनामी की समुद्री लहरों ने रविवार की सुबह मीठी नींद में सोए भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड, मालदीव, मलेशिया, म्यांमार, सोमालिया और तंजानिया तक में कहर मचाते हुए लाखों लोगों को लील लिया था.

भारत में सुनामी के कहर का शायद यह पहला ही मौका था. इससे पहले लैटिन अमेरिका के चिली से सुदूर पूर्वी एशियाई इलाके के बीच प्रशांत महासागर में समंदर का ऐसा कहर कई बार देखा जा चुका था. इंडोनेशिया से उठी सुनामी की दैत्याकार लहरों ने रविवार की सुबह भारत के तमिलनाडु, अंडमान-निकोबार, पुडुचेरी, केरल, प. बंगाल सहित अनेक राज्यों में भारी जनहानि पहुंचाई थी.

पहले ही दिन 3000 लोगों के काल के गाल में समाने के बाद यह आंकड़ा दस हजार तक पहुंच गया. भारत में सुनामी का सबसे ज्यादा कहर तमिलनाडु के समुद्री किनारों ने ङोला. वहां पहले ही दिन 1400 लोगों की मौत हो गई थी. लोगों को सुनामी की लहरों से बचने का मौका ही नहीं मिला. समुद्र में मछली पकड़ने गए अनेक मछुआरे लापता हो गए.

पहले ही झटके में अंडमान-निकोबार में 1000, आंध्रप्रदेश में 200, पुडुचेरी में 100, केरल में 128 और प. बंगाल में 10 लोग काल के गाल में समा गए. बाद में यह आंकड़ा और अधिक बढ़ा. सुनामीग्रस्त इलाकों का दृश्य ऐसा था मानो वायुसेना ने वहां जमकर बमबारी की हो. तूफान के कोई संकेत नहीं होने के बाद भी 30 से 40 फुट ऊंची लहरों ने किनारों पर तांडव शुरू कर दिया था.

हजारों करोड़ रु. की आर्थिक हानि भी ङोलनी पड़ गई. कई मछुआरों की नावें बह गईं और उनके सामने रोजी-रोटी का संकट उठ खड़ा हुआ था. भीषण भूकंप के कारण जिस इंडोनेशिया से सुनामी की लहरें उठी थीं, वहां अन्य देशों की तुलना में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था. सन् 1900 के बाद आए सबसे भीषण भूकंप में इंडोनेशिया में 94081 लोगों की मौत हो गई.

समुद्री किनारे के पास भूकंप, ज्वालामुखी के फटने, समुद्र की तलहटी में हलचल से बड़े बदलाव सुनामी की लहरों के लिए जिम्मेदार होते हैं. समुद्र में भूकंप से लहरें हजारों किलोमीटर दूर तक उछालें मारती चली जाती हैं. वैसे सुनामी लहरों और ज्वारीय लहरों में फर्क होता है.

ज्वारीय लहरें केवल किनारों पर ही तेजी दिखाती हैं जबकि समुद्र के अन्य इलाके शांत होते हैं. सुनामी में तो पूरा समुद्र ही रौद्र रूप धारण कर लेता है. लहरें  500 किमी की गति से किनारों की ओर बढ़ती हैं और 50 से 100 फुट तक उछलते हुए तबाही का तांडव करती हैं. किनारे पर आकर जहां तलहटी की लहरें शांत हो जाती हैं, तो ऊपरी सतह की लहरें और अधिक रौद्र रूप धारण कर किसी दीवार की तरह ऊंची होकर किनारे पर तबाही मचा देती हैं.

भूकंप या सुनामी के कुदरती कहर के लिए किसी भी देश को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, हां, ऐसी घटनाओं की तीव्रता को कम करने के लिए पूर्व चेतावनी देने वाला एक सूचना तंत्र तैयार करने की जरूरत है. जापान और अमेरिका के नेतृत्व में इस दिशा में अनुसंधान जारी है.

अमेरिका का अलास्का बार-बार सुनामी का सामना करता है. इस वजह से वहां के लोग इसके आदी हो चुके हैं. उनके पास सुनामी से निपटने का तंत्र तैयार है. समुद्र के किनारों पर अब उन्हें कुदरत को सम्मान देते हुए इंसान के अतिक्रमण की सीमा तय करने पर मजबूर होना पड़ा है. हमारे देश को भी ऐसी कोई योजना तैयार करनी चाहिए, वरना सुनामी जैसी कुदरती आपदाएं हर बार हमें तबाही का मंजर दिखाएंगी.  

लोकमत संदर्भ विभाग, नागपुर

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