अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: पोलियो की वापसी का मंडराता खतरा 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 10, 2019 07:20 IST2019-04-10T07:20:27+5:302019-04-10T07:20:27+5:30

मार्च के दूसरे पखवाड़े में इसकी एक पुष्टि सरकारी प्रयोगशाला सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी (सीडीएल) ने की है कि वर्ष 2016 में देश के दो राज्यों, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में जो पोलियो वैक्सीन बच्चों को दी गईं, उनमें यह वायरस था.

Abhishek Kumar Singh's blog: The hinge threat of polio return | अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: पोलियो की वापसी का मंडराता खतरा 

अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: पोलियो की वापसी का मंडराता खतरा 

हम जिस दवा या वैक्सीन पर सरकार और चिकित्सा तंत्न के दावों के बल पर भरोसा करें और कभी वह अचानक टूट जाए, तो यह एक बेहद गंभीर मामला बन जाता है. अफसोस है कि पोलियो के टीके (वैक्सीन) के मामले में कुछ ऐसे ही हालात इधर देश में बने हैं. बताया जा रहा है कि सरकार समय-समय पर पोलियो टीकाकरण का कार्यक्रम चलाकर देश के लाखों-करोड़ों बच्चों को जिस पोलियो वैक्सीन की दो-दो बूंदें पिलाती रही है, उस वैक्सीन में ही टाइप-2 पोलियो वायरस मौजूद था. 

मार्च के दूसरे पखवाड़े में इसकी एक पुष्टि सरकारी प्रयोगशाला सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी (सीडीएल) ने की है कि वर्ष 2016 में देश के दो राज्यों, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में जो पोलियो वैक्सीन बच्चों को दी गईं, उनमें यह वायरस था. यह वैक्सीन यूपी के गाजियाबाद में स्थित एक दवा कंपनी में बनाई गई थी. वायरस की मौजूदगी के आरोप लगने के बाद पोलियो वैक्सीन की खेपें इस प्रयोगशाला को भेजी गई थीं, जिनकी जांच के बाद यह नतीजा आया है. दावा है कि यह वायरस वैक्सीन के जरिये यूपी में ही करीब आठ लाख बच्चों में पहुंच गया था.

इस संबंध में उल्लेखनीय है कि हमारा देश 2014 में पोलियो को जड़ से मिटाने का दावा कर चुका है. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस दावे पर मुहर लगा चुका है और ऐसे दावों के आधार पर 25 अप्रैल, 2016 को पोलियो के टाइप-2 के पूरी दुनिया से ही खात्मे का ऐलान कर चुका है. लेकिन अब इस बीमारी का देश में लौटना पोलियो टीकाकरण अभियान पर हुए अरबों रु. के खर्च और हजारों लोगों की मेहनत पर पानी फेर सकता है. 

इसका एक मतलब यह भी निकलता है कि देश को नए सिरे से पोलियो के खिलाफ जुटना पड़ेगा और पुन: अरबों रु. का खर्च इसके लिए जरूरी होगा. पोलियो उन्मूलन का व्यापक अभियान चलाना आसान नहीं होगा क्योंकि पहले से ही कुछ बातों को लेकर संदिग्ध रहे पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम में भरोसा जगाना और आम लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना काफी चुनौतीपूर्ण होगा. साथ ही यह सवाल भी जवाब मांगेगा कि क्या अपने सतत मुनाफे के लिए फार्मा (दवा) कंपनियां ही ऐसी गलतियों की गुंजाइश छोड़ती हैं ताकि उनका कारोबार चलता रहे.   

इस वायरस की वापसी के कई पहलू हैं जो पोलियो की कमजोर कड़ियों का खुलासा करते हैं. जैसे, एक कमजोर कड़ी में केंद्रीय एजेंसियां हैं, जो वैक्सीन की जांच करती हैं कि कहीं उनमें पोलियो का कोई वायरस तो मौजूद नहीं है. पता चला है कि ये एजेंसियां पोलियो के टाइप-1 और टाइप-3 वायरस की जांच कर रही थीं. वहां टाइप-2 वायरस की जांच यह मानकर नहीं की जा रही थी कि इस वायरस का खात्मा दुनिया से हो चुका है. यह एक गंभीर खामी है. दूसरी गंभीर खामी वैक्सीन बनाने वाली दवा कंपनी की लापरवाही के रूप में सामने आई है जिससे मिलीभगत की आशंका भी पैदा होती है.

Web Title: Abhishek Kumar Singh's blog: The hinge threat of polio return

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