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Digital Arrest Scam: डिजिटल अरेस्ट नाम की खौफनाक बला?, आपके भीतर छिपे हुए भय को अपना हथियार बनाते हैं साइबर अपराधी

By विकास मिश्रा | Updated: December 10, 2024 05:17 IST

Digital Arrest Scam: आपने कुछ गलत नहीं किया है तो किसी से क्यों डरना? सतर्क रहिए और अपनी पुलिस को तत्काल जानकारी दीजिए!

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ठळक मुद्देवर्ष 2017 में 3466 मामले दर्ज किए गए जबकि 2022 में 17470 मामले दर्ज हुए.साइबर धोखाधड़ी की एक लाख बारह हजार से भी ज्यादा शिकायतें मिलीं. साइबर की दुनिया में नई और ताजातरीन बला है डिजिटल अरेस्ट!

Digital Arrest Scam: मैं यह निर्णय नहीं कर पा रहा हूं कि डिजिटल अरेस्ट नाम की इस खौफनाक बला के शिकार लोगों के प्रति हमदर्दी व्यक्त करूं या फिर बेहद शातिर साइबर अपराधियों की धूर्तता को इसके लिए जिम्मेदार ठहराऊं या फिर लोगों के भीतर बैठे भय को सबसे बड़ा कारण मानूं? अब साइबर अपराध और ठगी हम भारतीयों के लिए पुरानी बात हो चुकी है. साइबर अपराध के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर एक नजर डालिए... वर्ष 2017 में 3466 मामले दर्ज किए गए जबकि 2022 में 17470 मामले दर्ज हुए.

ये दर्ज हुए मामलों का आंकड़ा है. वास्तविक संख्या का अंदाजा आप लोकसभा में दिए गए एक लिखित उत्तर से लगा सकते हैं जिसमें कहा गया था कि वर्ष 2023 में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी की एक लाख बारह हजार से भी ज्यादा शिकायतें मिलीं. बैंक एकाउंट डिटेल और ओटीपी मांग कर पैसा ठग लेने बात पुरानी हो चुकी है. साइबर की दुनिया में नई और ताजातरीन बला है डिजिटल अरेस्ट!

इसकी गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में इसका जिक्र किया और देश को स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था में डिजिटल अरेस्ट नाम की कोई चीज है ही नहीं! तो सवाल यह है कि लोग इसके शिकार क्यों हो रहे हैं?

इसे समझने के लिए चलिए सबसे पहले इस बात पर नजर डालते हैं कि अपराधी किस तरह से आपको शिकार बनाते हैं. एक अनजान नंबर से आपको कॉल आता है. बिल्कुल सही जान पड़ने वाला एक रिकॉर्डेड संदेश सुनाई पड़ता है कि आपके फोन से आपत्तिजनक संदेश भेजे गए हैं. आपका फोन बंद किया जा रहा है या फिर आपके खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया है.

यदि आप कुछ स्पष्टीकरण देना चाहते हैं तो एक दबा कर संबंधित अधिकारी से बात करें. यदि आपने इस रिकॉर्डेड कॉल पर भरोसा किया तो आप फंसे! दूसरा तरीका यह होता है कि आपको एक कॉल आएगा और आपसे कहा जाएगा कि आपने जो पार्सल विदेश भेजा था उसे कस्टम ने रोक लिया है. उसमें ड्रग्स पाए गए हैं.

यदि आपने कहा कि हमने तो कोई पार्सल भेजा ही नहीं तो बताया जाएगा कि आपके आधार कार्ड नंबर का उपयोग किया गया है. जाहिर सी बात है कि कोई भी सामान्य व्यक्ति विचलित हो सकता है. हमने इतनी जगह अपना आधार कार्ड दे रखा है कि किसी साइबर अपराधी तक आधार कार्ड नंबर पहुंचना मुश्किल काम नहीं है.

इसके अलावा भी कई तरह के फोन आ सकते हैं और वह आपको डराता है. साइबर अपराधी को यह भरोसा हो गया कि आप डर गए हैं तो वह आपको वीडियो कॉल पर लेगा और जानकारी देगा कि आपको डिजिटली अरेस्ट कर लिया गया है. आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में डिजिटल शब्द इतनी बार सुनते हैं कि आपको यह खयाल भी नहीं आता कि किसी को डिजिटल तौर पर कैसे अरेस्ट किया जा सकता है.

आप उस अपराधी की बातों में आ जाते हैं. वीडियो कॉल को जारी रखने के लिए वह आपको धमकाता है. वह फर्जी पुलिस थाना भी आपको दिखाता है. किसी का बयान भी सुनाता है जो कह रहा होता है कि ड्रग्स वाला पैकेट आपका ही है. वह आपको इस कदर भयभीत कर देता है कि आप कुछ ले दे कर छूटने की तरकीब सोचने लगते हैं.

यहीं पर वह चाल चलता है और आपसे पैसे अपने एकाउंट में ट्रांसफर करा लेता है. एक बार पैसा ट्रांसफर हो गया तो वह फिर धमकाता है...और पैसे ट्रांसफर कराता है. यह सिलसिला चलता रहता है. जब तक आपको ठगी का एहसास होता है तब तक वह साइबर अपराधी चंपत हो चुका होता है और आपका पैसा टुकड़ों-टुकड़ों में न जाने कितने बैंक खातों में पहुंच जाता है.

जहां से उसे बटोर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं होता. चलिए कुछ घटनाएं मैं आपको बताता हूं. मुंबई में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर अपराधियों ने एक महीने तक वीडियो कॉल पर रखा और करीब पौने चार करोड़ रुपए ठग लिए. लखनऊ की एक महिला चिकित्सक को भयभीत करके सात दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखा गया और उससे करीब पौने तीन करोड़ रुपए ठग लिए.

उन्हें बताया गया था कि उनके फोन से लोगों को परेशान करने वाले मैसेज भेजे गए हैं. ये तो सामान्य लोगों की बात हुई. वर्धमान ग्रुप के चेयरपर्सन व पद्मश्री एसपी ओसवाल  के पास सीबीआई के नाम से कॉल आई कि एक पुराने मामले में उन्हें डिजिटली अरेस्ट किया जा रहा है. वीडियो कॉल पर उन्हें वास्तविक दिखने वाली नकली अदालत और फर्जी जज को भी दिखाया गया.

अपराधियों ने एक फर्जी वकील से उनका परिचय भी कराया. फर्जी सुनवाई के दौरान फर्जी जज ने फैसला सुनाया कि इनकी संपत्ति ट्रांसफर करा ली जाए. यदि ऐसा न करें तो तत्काल गिरफ्तार किया जाए. चेयरपर्सन झांसे में आ गए और सात करोड़ रुपए ट्रांसफर कर दिए. बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वे फंस गए हैं.

ये तो मैंने बस कुछ उदाहरण दिए हैं. इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं हो चुकी हैं. शिकार बना कोई व्यक्ति जब तक पुलिस के पास न पहुंचे तब तक पुलिस को खबर कैसे लगे? साइबर अपराधी आपके भीतर के डर को उभारते हैं और यहीं आप फंस जाते हैं.

मेरा सवाल है कि यदि आपने कोई अपराध नहीं किया है तो किसी से क्यों घबराना? यदि कोई फर्जी तरीके से फंसा रहा है तो भी क्यों घबराना? आप घबराएंगे नहीं तो कोई भी आपको धोखा नहीं दे सकता. और हां, अपनी असली पुलिस पर भरोसा कीजिए...नकली पर नहीं!  

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