IND vs NZ, 2nd Test: फिजूल की आक्रामकता किसी काम की नहीं?, ‘बाजबॉल’ शैली का जनक इंग्लैंड रहा नाकाम...

By रवींद्र चोपड़े | Updated: October 28, 2024 05:23 IST2024-10-28T05:23:47+5:302024-10-28T05:23:47+5:30

IND vs NZ, 2nd Test: भारत ने न्यूजीलैंड के खिलाफ तीन टेस्ट मुकाबलों की सीरीज ‘बाजबॉल’ की शैली में आक्रामक बल्लेबाजी करने के चक्कर में गंवा दी.

IND vs NZ, 2nd Test team india 2024 unnecessary aggression is of no use blog Ravindra Chopre England originator ‘bazeball’ style itself has failed in adopting it | IND vs NZ, 2nd Test: फिजूल की आक्रामकता किसी काम की नहीं?, ‘बाजबॉल’ शैली का जनक इंग्लैंड रहा नाकाम...

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Highlightsपुणे टेस्ट जीता जा सकता था बशर्ते कि भारतीय बल्लेबाज दूसरी पारी में टेस्ट की पारंपारिक शैली में खेलते. ढाई दिन में 359 रन का लक्ष्य बहुत मुश्किल नहीं था. तजुर्बा इस्तेमाल तभी हो सकता है जब विवेक और संयम का आधार उसे मिले.

अंग्रेजों ने पारंपारिक क्रिकेट (टेस्ट) का रुखापन दूर करने के लिए दो साल पहले इसका रंगरोगन कर दिया. अर्थात टेस्ट प्रारूप में बल्लेबाजी की पारंपारिक कछुआ छाप शैली बदलकर इसमें गति भर दी और नाम दिया ‘बाजबॉल’.  अब टेस्ट में अंग्रेज बल्लेबाज  ‘बाजबॉल’ शैली में खेलते हैं और अपनी टीम को अपने ही देश में जीत दिलाते हैं. एशियाई मुल्कों में इंग्लैंड की खिल्ली उड़ती है लेकिन पता नहीं भारतीय क्रिकेट टीम के रणनीतिकारों के सिर पर भी ‘बाजबॉल’ का भूत कहां से सवार हो गया. अब रोहित शर्मा और मुख्य कोच गौतम गंभीर की टीम के लड़के भी ‘बाजबॉल’ खेलने लगे हैं और टीम का वही हश्र कर रहे हैं जो इंग्लैंड का हो रहा है. भारत ने न्यूजीलैंड के खिलाफ तीन टेस्ट मुकाबलों की सीरीज ‘बाजबॉल’ की शैली में आक्रामक बल्लेबाजी करने के चक्कर में गंवा दी.

 

पुणे टेस्ट जीता जा सकता था बशर्ते कि भारतीय बल्लेबाज दूसरी पारी में टेस्ट की पारंपारिक शैली में खेलते. ढाई दिन में 359 रन का लक्ष्य बहुत मुश्किल नहीं था. जरूरत थी खूंटा गाड़कर डटे रहने की. टीम में सभी बल्लेबाजों के पास तजुर्बे की तिजोरी भरी है लेकिन तजुर्बा इस्तेमाल तभी हो सकता है जब विवेक और संयम का आधार उसे मिले.

अविवेक से सिर्फ और सिर्फ बरबादी की कहानी लिखी जाती है जो रोहित शर्मा तथा उनकी टीम ने लिख दी, पर रोहित शर्मा आजकल आक्रामक क्रिकेट के लिए इस कदर दीवाने हुए जा रहे हैं कि हर गेंद को बाउंड्री का दर्शन कराने के चक्कर में  सबसे पहले खुद ही पवेलियन लौट जाते हैं और फिर उनका अनुकरण बाकी के नौ करके टीम को गर्त में धकेल देते हैं.

 ‘बाजबॉल’ शैली का जनक इंग्लैंड खुद इसे अपनाकर नाकाम रहा है. शनिवार को पाकिस्तान के खिलाफ वह हार गया. इंग्लैंड अब विश्व टेस्ट चैंपिनयनशिप 2023-2025 के चक्र में छठे स्थान (पर्सेंटाइल 40.79) पर है और फाइनल की उसकी गुंजाइश कम रह गई, वहीं भारतीय टीम हार के बावजूद शीर्ष पर जरूर है.

लेकिन इंग्लैंड की नकल करने के चक्कर में न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज गंवाकर उसने अपनी स्थिति कमजोर कर ली है. अब दूसरे स्थान पर मौजूद ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले उसका पर्सेंटाइल का फासला महज 0.32 का रह गया है और दुबले पर दोहरा आषाढ़ यानी न्यूजीलैंड के खिलाफ तीसरा टेस्ट खेलने के बाद भारत को अगली सीरीज में ऑस्ट्रेलिया से उसी की सरजमीं पर भिड़ना है.

भारतीय टीम पिछले दोनों चक्र के फाइनल तक पहुंची लेकिन आक्रामक शैली में खेलने की बात किसी ने नहीं की. ऑस्ट्रेलिया को पिछली लगातार दो सीरीज में  उसकी सरजमीं पर टीम इंडिया ने पटखनी दी है. क्या भारतीय टीम तब ‘बाजबॉल’ शैली में खेली थी? कतई नहीं. भारतीय टीम आज टेस्ट क्रिकेट में दुनिया में अव्वल है तो आक्रामक शैली में खेलने की वजह से नहीं.

संयमित खेल की वजह से ही वह इस मुकाम तक पहुंच सकी है. तो फिर अंग्रेजों की नकल करके क्यों अपना घर फूंकने पर तुले हो? अंग्रेजों की ‘बाजबॉल’ शैली का गुब्बारा फुस्स हो चुका है. वह शैली केवल एक आभामंडल की तरह रह गई है. तो क्यों हम उसे स्वीकार करने के लिए इतने लालायित हैं कि अपना ही बंटाढार खुद करवा रहे हैं?

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