सचिन तेंदुलकर ने 16वें साल में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया था. यह बात हो गई 36 साल पुरानी, लेकिन सचिन की उस 16 साला उम्र ने भारत के विशाल मध्यमवर्गीय तबके को एक ‘विचार’ दिया कि अगर एक सामान्य परिवार का बच्चा क्रिकेट में स्वप्नवत ऊंचाइयों को छू सकता है तो इसी तबके के अन्य बच्चे क्यों नहीं? बस यहीं से एक रुझान बन गया. बच्चे छोटी उम्र में ही ‘सचिन’ बनने का ख्वाब देखने लगे.
आईपीएल ने इन बच्चों के लिए मंच सजाने का काम किया और इसी की फलश्रुति है वैभव सूर्यवंशी, जिसने सोमवार रात 14 साल और 32 दिन की आयु में गुजरात के खिलाफ आईपीएल-2025 के मुकाबले में धुआंधार सैकड़ा ठोंक कर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के दरवाजे पर दस्तक दी. वैसे बाली उम्र में अपने प्रदर्शन से खेल जगत को चकित करनेवालों की मिसालें कई हैं.
जर्मन टेनिस खिलाड़ी बोरिस बेकर ने 17 साल की उम्र में सन् 1985 में विंबलडन जीतकर सननसी फैला दी थी. फु मिंग्सिया को शायद हम नहीं जानते. इस चीनी गोताखोर ने केवल 12 साल की उम्र में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था और फिर एक साल बाद 13 साल 345 दिन की आयु में 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भी पीला तमगा अपने नाम किया.
वैभव सूर्यवंशी बिहार से हैं. इस खिलाड़ी की भुजाओं में केवल 14 साल की उम्र में गगनभेदी छक्के दागने की शक्ति आई कहां से यह अलग से चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन उसने अपनी शतकीय पारी में जो काबिलियत दिखाई वह आनेवाले समय के लिए गेंदबाजों की बिरादरी में दहशत पैदा कर गई है. राजस्थान ने हालांकि वैभव को मैदान में उतारने में काफी देर की.
राजस्थान के 10 में से तीन ही मुकाबले में वैभव को मौका दिया गया और तीसरे ही मुकाबले में उन्होंने बल्ले से वह चमत्कार कर दिखाया कि कई दिग्गज खिलाड़ी भी उसे नमस्कार कर रहे हैंं. विलंब से मौका मिलने के बावजूद वैभव को आईपीएल के इस सत्र की खोज मानने पर किसी को कोई गुरेज नहीं होना चाहिए.
इस आईपीएल में वैभव से उम्र में ढाई गुना बड़े कई खिलाड़ी हैं और महेंद्र सिंह धोनी तो तीन गुना बड़े हैं. हो सकता है धोनी का यह अंतिम आईपीएल हो. धोनी का अंतिम आईपीएल वैभव के लिए यादगार, धमाकेदार आगाज का टूर्नामेंट बन जाए. वैभव एक वामहस्त बल्लेबाज हैं और क्रिकेट में बाएं हाथ के बल्लेबाज की विशेष जगह मानी जाती है. उनके पास कुदरती प्रतिभा होती है. उनके स्ट्रोक्स को नजाकत और खूबसूरती की जुगलबंदी कह सकते हैं.
ब्रायन लारा इसका उदाहरण हैं. इस कैरेबियाई बल्लेबाज के नाम पर टेस्ट में व्यक्तिगत 400 रन बनाने का रिकॉर्ड है जो अब तक कायम है. आईपीएल में पदार्पण से पहले वैभव के नाम पर प्रथम श्रेणी के पांच मुकाबलों में 100 और लिस्ट ‘ए’ के छह मुकाबलों में 164 रन थे. ऑस्ट्रेलिया और बांग्लादेश के खिलाफ कुछ अंडर-19 मुकाबले भी वह खेले थे. कुल मिलाकर उनके पास तजुर्बा बहुत ज्यादा नहीं था लेकिन फिर भी उन्होंने सैकड़ा जड़कर साबित कर दिया कि प्रतिभा को तजुर्बे का साथ जरूरी नहीं है.
ऐसे में एक वही पुरानी चिंता भी उभरकर आती है कि अगर टी-20 में ही प्रतिभाएं सामने आ रही हैं तो टेस्ट का क्या होगा. टेस्ट में भारतीय टीम के बुरे हाल हैं. विश्व क्रिकेट चैंपियनशिप के 2023-2025 चक्र के फाइनल में भारतीय टीम पहुंच नहीं सकी. बीसीसाई को टेस्ट के लिए भी काबिल प्रतिभाओं की तलाश करनी होगी जहां संयम और धैर्य का इम्तिहान होता है.