वरुण गांधी का ब्लॉग: अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता कच्चा तेल

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Updated: October 28, 2018 05:48 IST2018-10-28T05:48:05+5:302018-10-28T05:48:05+5:30

डीजल की ज्यादा मांग के कारण, अतिरिक्त डीजल का उत्पादन करने के लिए भारतीय रिफाइनरियों द्वारा हाइड्रोक्रै क्सिंग का उपयोग किया जाता है, जिससे समग्र रिफाइनिंग लागत बढ़ जाती है।

Blog of Varun Gandhi: Crude Oil Affects Economy | वरुण गांधी का ब्लॉग: अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता कच्चा तेल

वरुण गांधी का ब्लॉग: अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता कच्चा तेल

(लेख-वरुण गांधी)

तेल की कीमतों को लेकर दशकों से चल रही भारत की कोशिशें एक कभी न खत्म होने वाला सफर है। हाल के दिनों में कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गई है। 19 अक्तूबर को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 82।38 रुपए प्रति लीटर और मुंबई में 87.84 रुपए प्रति लीटर थी। इसकी तुलना में ऑस्ट्रेलिया में पेट्रोल 82.30 रु पए प्रति लीटर, श्रीलंका में 72.75 रुपए और यूएस के कुछ हिस्सों में 61.72 रुपए है। यह बढ़ोत्तरी कई कारणों से हुई है, जिसमें तेल उत्पादन में कटौती, अमेरिका द्वारा ईरान से तेल आयात पर प्रतिबंध और रुपए में अस्थिरता शामिल है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2018 के मुताबिक तेल की कीमतों में 10 डॉलर/बैरल की बढ़ोत्तरी से भारत की जीडीपी 0।2-0।3 फीसदी कम हो सकती है, जबकि थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 1।7 फीसदी और चालू खाता घाटा 9-10 अरब डॉलर बढ़ सकता है। महंगे कच्चे तेल का मतलब आयात का भी महंगा होना है, जिससे रुपए में और गिरावट (जैसा कि रुपए की हालिया गिरावट में देखा गया है) आती है।


हालांकि, तेल की कीमत में इस वृद्धि में आंशिक योगदान तेल और गैस उत्पादों को दुधारू गाय की तरह दुहने की केंद्र सरकार की परंपरागत नीति का भी है। भारत में पेट्रोल और डीजल पर कई कर लगते हैं, केंद्र उत्पाद शुल्क लेता है, जबकि राज्य सरकारें वैट (ज्यादातर राज्यों में आमतौर पर 20 फीसदी से अधिक) लेती हैं; ईंधन की खुदरा कीमतों में करों को अलग करके देखने से पता चलता है कि पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमत में करों का हिस्सा क्रमश: 43 और 33 फीसदी (दिल्ली में 15 अक्तूबर को आईओसीएल पंप पर) है। ऐसे कर डीलर मूल्य और पेट्रोल की कीमत में 90 फीसदी और डीजल की कीमत में 60 फीसदी की वृद्धि (डीलर कमीशन सहित) कर सकते हैं। वर्ष 2015-2017 में केंद्र के कुल कर राजस्व में उत्पाद शुल्क की हिस्सेदारी 23 फीसदी (राज्यों के हिस्से सहित) थी; जिसमें पेट्रोल और डीजल पर कर लगाने से प्राप्त राजस्व कुल राजस्व का 80-90 फीसदी था।


बीते कुछ दशकों में, यहां तक कि जब कच्चे तेल की कीमतें ऐतिहासिक स्तर तक नीचे आ गई थीं, तब भी केंद्र और राज्य दोनों ने अगर कोई राहत दी भी, तो बहुत मामूली दी है; आम तौर पर बढ़ती कीमतों के बोझ को तेल मार्केटिंग कंपनियों से वहन करने के लिए कहा जाता है। करों का और बारीकी से अध्ययन करने पर पता चलता है कि राज्य सरकारों द्वारा लगाया गया वैट दोहरा कराधान है और इसकी गणना केंद्र द्वारा डीलर से लिए जाने वाले दाम, डीलर कमीशन और उत्पाद शुल्क के योग पर की जाती है। इस दोहरे कराधान को सुधारने से पेट्रोल की कीमतें फौरन पांच रुपए प्रति लीटर कम हो सकती हैं; हालांकि इससे राज्य का राजस्व कम हो जाएगा। वैट करों की मूल्यवर्धित प्रकृति को देखते राज्य सरकारें आमतौर पर वास्तव में बजट से अधिक राजस्व एकत्न करती हैं। 


वैट दरों में कटौती की गुंजाइश है, बशर्ते कि अन्य कारक अपनी जगह कायम रहें; राज्य सरकारें निर्धारित कर दरों पर भी विचार कर सकती हैं जो उनके बजट के अनुरूप है। सरकार को ईंधन पर रिफाइनरियों से सब्सिडी देने के लिए कहने के बजाय पेट्रोल और डीजल की कीमतों के लिए कर व्यवस्था को तर्कसंगत बनाने पर विचार करना चाहिए। फिलहाल, सरकार राज्य रिफाइनरियों (आमतौर पर 7-8 दिनों की इनवेंटरी) के इनवेंटरी स्टॉक का उपयोग करने पर विचार कर सकती है।

साथ ही पाइपलाइनों, ट्रांजिट वाले जहाजों के स्टॉक और स्ट्रेटजिक पेट्रोलियम रिजर्व का इस्तेमाल उपभोक्ता को फौरी राहत देने के लिए कर सकती है, भले ही ये अल्पकालिक होगा। ऐतिहासिक रूप से, भारत सरकार पेट्रोल की कीमत पर डीजल के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देती रही है; जिसका बोझ अब पलट कर उसके ही गले पड़ रहा है। पेट्रोल की तुलना में डीजल की भारतीय किस्म में आमतौर पर ज्यादा कण और अन्य प्रदूषक तत्व होते हैं, जो कैंसरकारक धुएं का उत्सर्जन करते हैं।

इसके अलावा, डीजल की ज्यादा मांग के कारण, अतिरिक्त डीजल का उत्पादन करने के लिए भारतीय रिफाइनरियों द्वारा हाइड्रोक्रै क्सिंग का उपयोग किया जाता है, जिससे समग्र रिफाइनिंग लागत बढ़ जाती है।


वैकल्पिक ईंधन के प्रचार के तहत सरकार द्वारा खासकर बायो-डीजल को बढ़ावा देने की हालिया कोशिशें स्वागतयोग्य हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास के लिए हमें एक स्थिर विनियामक व्यवस्था बनाने, मैन्युफैक्चरिंग क्षमता में सुधार, तेल पर निर्भरता को कम करने और भविष्य में कीमतों में वृद्धि के प्रति सुरक्षा उपाय करने की भी जरूरत है। इसके लिए मेट्रो रेल समेत दूसरे अन्य अधिक कुशल सार्वजनिक परिवहन बनाने पर जोर देने से भी 
मदद मिलेगी।

Web Title: Blog of Varun Gandhi: Crude Oil Affects Economy

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