भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: कौन डुबा रहा है भारतीय अर्थव्यवस्था को!

By भरत झुनझुनवाला | Updated: June 16, 2019 08:28 IST2019-06-16T08:28:07+5:302019-06-16T08:28:07+5:30

भारत सरकार ने विदेशीपरक व्यक्तियों को प्रमुख आर्थिक पदों पर नियुक्त करके यह सुनिश्चित किया है कि ये लोग भारत के हितों को न बढ़ाकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों को बढ़ाएंगे.

Bharat Jhunjhunwala's blog: Who is dipping the Indian economy! | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: कौन डुबा रहा है भारतीय अर्थव्यवस्था को!

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: कौन डुबा रहा है भारतीय अर्थव्यवस्था को!

बी ते 25 वर्षो में भारत की आर्थिक नीति विदेशी निवेश को आकर्षित करने एवं उत्पादित माल का निर्यात करने पर टिकी है. इस नीति को तत्कालीन वित्त मंत्नी मनमोहन सिंह ने 1991 में लागू किया था और उसके बाद क्र मश: वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी सरकारों ने इस नीति को ही लागू किया है. इस नीति को विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 80 के दशक में बनाया था.

इसके अंतर्गत विचार यह है कि भारत को अपने सरकारी खर्चो यानी वित्तीय घाटे पर नियंत्नण करना चाहिए जिससे महंगाई न बढ़े एवं अर्थव्यवस्था में स्थायित्व बना रहे. अर्थव्यवस्था में स्थायित्व से विदेशी निवेशकों का भारत में निवेश करने का उत्साह बढ़ेगा, वे निवेश करके यहां सस्ते वेतन का लाभ उठाते हुए सस्ते माल का उत्पादन करेंगे और इसका भारी मात्ना में निर्यात करेंगे. यह नीति चीन ने 80 के दशक में अपनाई थी और बहुत आगे बढ़ा था. लेकिन आज परिस्थिति बदल 
गई है. 

राष्ट्रपति ट्रम्प के सत्तारूढ़ होने के बाद अमेरिका में बड़ी कंपनियों को टैक्स की छूट दी गई है. अमेरिका में आर्थिक विकास को गति मिली है जिसके फलस्वरूप वहां के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में वृद्धि की है. साथ-साथ अमेरिका ने  संरक्षणवाद का मंत्न अपनाया है. अमेरिका ने चीन और भारत से आयात होने वाले माल पर आयात कर बढ़ाए हैं. इसका हमारी आर्थिक नीति पर सीधा प्रभाव पड़ा है. अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने से वैश्विक निवेशकों की रुचि भारत में निवेश करने के स्थान पर अमेरिका के सुरक्षित माने जाने वाले बाजार में निवेश करने की हो रही है. सम्पूर्ण विश्व की पूंजी का पलायन अमेरिका की तरफ हो रहा है. अपने देश की भी पूंजी आज अमेरिका की तरफ पलायन कर रही है. दूसरी तरफ अमेरिका द्वारा संरक्षणवाद अपनाए जाने से भारत के माल का निर्यात कठिन होने लगा है.  

इस समय जरूरत है कि सरकार अपना पूंजी खर्च बढ़ाए. हाईवे, बिजली, वाई-फाई आदि में निवेश करे. सरकार के खर्च बढ़ाने से महंगाई में कुछ वृद्धि अवश्य होगी लेकिन मेरा मानना है कि यदि ये खर्च पूंजी निवेश में किए जाते हैं तो इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. विदेशी निवेश न भी आए तो अपनी स्वदेशी पूंजी का निवेश बढ़ेगा.  

हमारे सामने आज दो विपरीत रास्ते उपलब्ध हैं. विश्व बैंक और हमारी बीते 25 वर्षो की सरकारों का रास्ता है कि भारत सरकार अपने खर्च कम करे, विदेशी निवेश को आकर्षित करे और उत्पादित माल का निर्यात करे. विकल्प है कि भारत सरकार अपने खर्चो में वृद्धि करे और अपनी पूंजी के निवेश पर ध्यान दे जिससे घरेलू उत्पादन बढ़ेगा. मेरा सुझाव है कि बीते 25 वर्षो की नीति को त्याग कर एनडीए-2 सरकार को इस वैकल्पिक नीति को अपनाना चाहिए.


यह वैकल्पिक नीति कोई नई सोच नहीं है, इस प्रकार के सुझाव अर्थशास्त्रियों द्वारा लगातार दिए जा रहे हैं लेकिन भारत सरकार ने पिछले 25 वर्षो में इस नीति को तवज्जो नहीं दी है. इसका कारण यह दिखता है कि भारत के नौकरशाहों के व्यक्तिगत हित विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जुड़े हुए हैं. हाल में भारत सरकार में कार्यरत किसी आईएएस अधिकारी ने प्रधानमंत्नी कार्यालय को गुमनाम पत्न भेजा था जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि किसी अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार कंपनी द्वारा सरकार के नौ शीर्ष अधिकारियों के संबंधियों को नौकरी अथवा बड़े ठेके दिए गए हैं. ऐसा सोचिए कि यदि आपकी बेटी किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रही हो तो आपकी सहज ही प्रवृत्ति बनेगी कि ऐसी नीति को बढ़ाएं जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नुकसान न हो. इस प्रकार बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे अधिकारियों के संबंधियों को अच्छे वेतन पर नौकरी देती हैं जिससे वे अप्रत्यक्ष रूप से भारत सरकार को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पक्ष में प्रभावित करते हैं. 

विदेशी ताकतों द्वारा भारत की नीति को प्रभावित करने का तीसरा रास्ता है सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों को सीधे बड़े ठेके देना. भारत सरकार के किसी सेवानिवृत्त ऊर्जा सचिव ने बड़े गर्व से किसी समय मुङो बताया था कि विश्व बैंक द्वारा उन्हें चालीस हजार रुपए प्रतिदिन की सलाहकारी का ठेका दिया गया है. ऐसे ठेके के लालच में वर्तमान आईएएस अधिकारियों की सहज ही प्रवृत्ति बनती है कि विश्व बैंक के इशारों के अनुसार नीतियों को लागू करें जिससे उनके सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें विश्व बैंक द्वारा सलाहकार बनाया जाए. भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं से जुड़े हुए इन नौकरशाहों को नियुक्त करके यह सुनिश्चित किया है कि इनके द्वारा सलाह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पक्ष में ही दी जाएगी.

हमें याद रखना चाहिए कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में वर्चस्व अमेरिका एवं यूरोप का है और इन देशों की सरकार अपनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों को बड़ी मुस्तैदी से साधती है. भारत सरकार ने विदेशीपरक व्यक्तियों को प्रमुख आर्थिक पदों पर नियुक्त करके यह सुनिश्चित किया है कि ये लोग भारत के हितों को न बढ़ाकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों को बढ़ाएंगे. मेरा मानना है कि भारत सरकार में विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अप्रत्यक्ष घुसपैठ इन रास्तों से हो रही है जिसके कारण भारत सरकार अपने खर्चो को कम करने और निर्यातों को बढ़ाने की घातक नीति पर टिकी हुई है. सरकार को चाहिए कि ऐसे व्यक्तियों को सरकार में लाए जो भारत की जमीन एवं आम आदमी से जुड़े हैं. तभी देश की नीतियां ठीक हो सकेंगी. 

Web Title: Bharat Jhunjhunwala's blog: Who is dipping the Indian economy!

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