भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः जीएसटी की मार उल्टे भाजपा पर ही पड़ी
By भरत झुनझुनवाला | Updated: December 23, 2018 07:40 IST2018-12-23T07:40:06+5:302018-12-23T07:40:06+5:30
जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों की परिस्थिति बिगड़ गई है और साथ-साथ देश की भी. यही मुख्य कारण दिखता है कि देश की विकास दर गिर रही है.

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः जीएसटी की मार उल्टे भाजपा पर ही पड़ी
हाल के चुनाव में स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान आर्थिक नीतियों से जनता संतुष्ट नहीं है. जनता की विशेष मांग रोजगार की है जो कि मुख्यत: अपने देश में छोटे उद्योगों द्वारा सृजित होता है. लेकिन जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों की परिस्थिति बिगड़ गई है और साथ-साथ देश की भी. यही मुख्य कारण दिखता है कि देश की विकास दर गिर रही है.
वर्ष 2016-17 में देश की जीडीपी 7.1 प्रतिशत बढ़ी थी. वर्ष 2017-18 में यह दर घट कर 6.7 प्रतिशत रह गई. वर्ष 2006 से 2014 तक हर वर्ष सरकार के राजस्व में लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि होती थी. अब यह घट गई है. जुलाई 2017 में जीएसटी से 94 हजार करोड़ रुपए का राजस्व मिला था जो कि जून 2018 में 96 हजार करोड़ हो गया था. इसमें मात्न 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. राजस्व की वृद्धि दर 15 प्रतिशत से घटकर मात्न 2 प्रतिशत रह गई है.
अर्थव्यवस्था के इस ढीलेपन में छोटे उद्योगों की विशेष भूमिका है. छोटे उद्योगों द्वारा श्रम का अधिक एवं मशीन का उपयोग कम किया जाता है. श्रम का अधिक उपयोग होने से इनके द्वारा वेतन अधिक दिया जाता है. इस वेतन को पाकर श्रमिक बाजार से छाते, किताब-कापी, कपड़े इत्यादि की खरीद करते हैं. इस खरीद से बाजार में मांग बनती है और निवेशक इन वस्तुओं के उत्पादन में बढ़कर निवेश करते हैं. इस प्रकार छोटे उद्योगों के माध्यम से खपत और निवेश का सुचक्र स्थापित होता है. यह सुचक्र जीएसटी के कारण टूट गया है क्योंकि जीएसटी का छोटे उद्योगों पर तीन प्रकार से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. जीएसटी का छोटे उद्योगों पर प्रमुख नकारात्मक प्रभाव टैक्स के भार में वृद्धि से पड़ा है.
कहने को जीएसटी के अंतर्गत छोटे उद्योगों को कम्पोजीशन स्कीम में मात्न एक प्रतिशत का टैक्स देना होता है, परंतु यह पूरी कहानी नहीं बताता है. चूंकि कम्पोजीशन स्कीम में इनपुट पर अदा किए गए जीएसटी का रिफंड नहीं मिलता है, इस कारण खरीददार को छोटे उद्योगों से माल खरीदना भारी पड़ता है. इसे एक उदाहरण से समझें।
मान लीजिए एक बड़ा उद्योग है. वह 80 रुपए के इनपुट की खरीद करता है. इस इनपुट पर वह 18 प्रतिशत से 14.40 रुपए का जीएसटी अदा करता है और कुल इनपुट की खरीद पर 94.4 रुपए अदा करता है. इसमें वह कुछ वैल्यू ऐड करता है जैसे कागज पर उसने छपाई की. इस छपे हुए कागज को वह 100 रु पए में बेचता है और इस पर पुन: 18 प्रतिशत से जीएसटी जोड़ करके कुल 118 रु. में बेचता है. खरीददार द्वारा 118 रु. में छपा हुआ कागज खरीदा जाता है. लेकिन वह खरीददार बड़े उद्योग द्वारा इस बिक्री पर दिए गए 18 रुपए का जीएसटी का सेट ऑफ का रिफंड प्राप्त कर लेता है. इस प्रकार खरीददार के लिए उस छपे हुए कागज की कीमत केवल 100 रु पए पड़ती है.
अब इसी प्रक्रि या को छोटे उद्योग के लिए समङों. वही 80 रुपए का कागज उसी 18 रुपए का जीएसटी लगाकर छोटा उद्यमी 94.4 रु पए में खरीदता है जैसे बड़ा उद्यमी खरीदता है. इसमें वह 20 रु पए की वैल्यू ऐड करता है जैसे बड़ा उद्यमी करता है. इस छपे हुए कागज की कीमत 114.40 रु पए पड़ती है. इस पर वह कम्पोजीशन स्कीम के अंतर्गत 1 प्रतिशत का जीएसटी अदा करके इसे 115.80 रुपए में बेचता है. लेकिन छोटे उद्यमी से खरीदे गए छपे हुए कागज पर खरीददार को 14.40 रुपए का जीएसटी का रिफंड नहीं मिलता है जो कि उसे बड़े उद्यमी से खरीदने पर मिलता.
इस प्रकार खरीददार को छोटे उद्यमी से छपे हुए कागज खरीदने की शुद्ध लागत 115.80 रु पए पड़ती है. बड़े उद्यमी से छपे हुए कागज खरीदने की शुद्ध लागत मात्न 100 रुपए पड़ती. इसलिए छोटे उद्योग कराह रहे हैं. वेतन, मांग एवं निवेश का सुचक्र टूट गया है. यही कारण है कि हमारी विकास दर बढ़ नहीं रही और जीएसटी का संग्रह भी कछुए की चाल से बढ़ रहा है.
साथ-साथ छोटे उद्योगों पर रिटर्न भरने का टंटा आ पड़ा है. मेरी कई बड़े उद्यमियों से बात हुई. उनको जीएसटी में कोई टंटा नहीं महसूस हो रहा है. उनके पास ऑफिस स्टाफ एवं कम्प्यूटर आपरेटर हैं. पूर्व के सेंट्रल एक्साइज एवं सेल टैक्स से जीएसटी में परिवर्तित होने में उन्हें तनिक भी परेशानी नहीं हुई है बल्कि उन्हें आराम ही हुआ है. लेकिन छोटे उद्यमी के लिए वही कागजी कार्य भारी पड़ गया है.
जीएसटी का छोटे उद्यमियों पर तीसरा प्रभाव अंतर्राज्यीय व्यापार को सरल बनाने का है. प्रथम दृष्ट्या लगता है कि अंतर्राज्यीय व्यापार सुगम होने से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. यह बात सही है लेकिन यह गति बड़े उद्यमियों के माध्यम से आएगी क्योंकि बड़े उद्यम ही अंतर्राज्यीय व्यापार अधिक करते हैं. इन तीनों कारणों से जीएसटी ने छोटे उद्योगों को संकट में डाला है.
लेकिन अब जीएसटी तो लागू हो ही गया है. अब इसकी भर्त्सना मात्न करने का कोई औचित्य नहीं है. उपाय यह है कि छोटे उद्योगों को कंपोजीशन स्कीम में इनपुट पर अदा किए गए जीएसटी का रिफंड लेने की सुविधा दे दी जाए.