नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: मानवीय जीवन मूल्यों के धनी थे गुरु तेग बहादुर जी

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: April 29, 2024 10:34 AM2024-04-29T10:34:14+5:302024-04-29T10:36:35+5:30

गुरु तेग बहादुर जी ने अपने पिता की निगरानी में ही धर्म ग्रंथों तथा गुरबाणी की शिक्षा प्राप्त की. पढ़ाई के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र चलाना, घुड़सवारी आदि भी सीखे. करतारपुर की जंग में केवल 13 वर्ष की आयु में पिता के साथ गुरुजी ने तलवार के जौहर दिखाए.

Guru Teg Bahadur Ji was rich in human values | नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: मानवीय जीवन मूल्यों के धनी थे गुरु तेग बहादुर जी

फाइल फोटो

Highlightsछठवें गुरु श्री हरगोविंद जी के गृह में सन्‌ 1621 में श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म हुआ. उनकी माता जी का नाम नानकी जी था.बाल्यकाल से ही वे गंभीर, निर्भीक तथा दिलेर स्वभाव के थे.

छठवें गुरु श्री हरगोविंद जी के गृह में सन्‌ 1621 में श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म हुआ. उनकी माता जी का नाम नानकी जी था. बाल्यकाल से ही वे गंभीर, निर्भीक तथा दिलेर स्वभाव के थे. उन्हें धार्मिक व आध्यात्मिक रुचि बहुत अधिक थी. केवल 5 वर्ष की आयु में ही वे अनेक बार समाधि लगाकर बैठ जाते थे तो उनकी माताजी बहुत चिंता प्रकट करतीं. इस पर उनके पिता हरगोविंद जी कहते कि हमारे इस पुत्र को महान कार्य करने हैं इसलिए यह अभी से तैयारी कर रहा है तुम उसकी चिंता मत करो.

गुरु तेग बहादुर जी ने अपने पिता की निगरानी में ही धर्म ग्रंथों तथा गुरबाणी की शिक्षा प्राप्त की. पढ़ाई के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र चलाना, घुड़सवारी आदि भी सीखे. करतारपुर की जंग में केवल 13 वर्ष की आयु में पिता के साथ गुरुजी ने तलवार के जौहर दिखाए. उस समय उनका नाम त्यागमल था लेकिन पिताजी ने जब उनके तलवार के जौहर देखे तो उन्होंने उन्हें तेगबहादुर अर्थात तलवार के धनी नाम दिया.

गुरुजी के मन में गुरु पद की तनिक भी लालसा नहीं थी इसीलिए जब हरगोविंद साहब ने गुरु हर राय जी को गुरता गद्दी सौंपी तो गुरु तेग बहादुर जी के मन में तनिक भी ईर्ष्या नहीं आई. उसके बाद गुरु हरकृष्ण जी गुरु बने. पिता के ज्योति ज्योत समाने के बाद गुरु तेग बहादुर जी अपनी पत्नी तथा माताजी के साथ अमृतसर के पास बकाला गांव में आध्यात्मिक साधना में लीन हो गए. 

उन्होंने 21 वर्षों तक गहन साधना की जिससे वे निर्भीक, संयमी, दृढ़ निश्चयी, शांति, सहनशीलता तथा त्याग जैसे जीवन मूल्यों से भरपूर हो गए. आठवें बाल गुरु श्री गुरु हरकृष्ण जी जब ज्योति जोत समाने लगे तो सिखों के आग्रह पर गुरुजी ने अगले गुरु साहब के विषय में संकेत किया और दो शब्द कहे- बाबा बकाले. नवम गुरु बकाला गांव में हैं यह जानकर गुरु गद्दी के 22 दावेदार पैदा हो गए. 

ऐसे में समर्पित सिख भाई मक्खन शाह लबाना ने 22 दावेदारों को झुठलाते हुए असली गुरु की पहचान की और छत पर चढ़कर उद्घोष किया- गुरु लाधो रे. इस तरह सन्‌ 1665 में आप गुरु पद पर विराजमान हुए. गुरु नानक जी की तरह ही गुरु तेग बहादुर जी ने भी गुरमत के प्रचार प्रसार के लिए अनेक यात्राएं कीं. 

वे सुदूर उत्तर-पूर्व के राज्यों तक गए. इसी दौरान सन्‌ 1666 में पटना साहिब में उनके घर श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ. गुरु तेग बहादुर जी ने अपने जीवन काल में कुल 59 शब्द तथा 57 श्लोकों की रचना की जो कि गुरु ग्रंथ साहिब में 15 रागों में दर्ज हैं. उनकी वाणी के मुख्य विषय संसार की नश्वरता, माया की क्षुद्रता, सांसारिक बंधनों की असारता और जीवन की क्षणभंगुरता है. वे कहते हैं जो मनुष्य सारे माया मोह से निर्लेप हो जाता है वही ईश्वर तक पहुंच सकता है.

Web Title: Guru Teg Bahadur Ji was rich in human values

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