Kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी कल, जानिए व्रत नियम, शुभ मुहूर्त, पारण का समय और कथा

By रुस्तम राणा | Published: April 18, 2024 03:00 PM2024-04-18T15:00:30+5:302024-04-18T15:00:30+5:30

Kamada Ekadashi 2024: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की कृपा से कामदा एकादशी का व्रत करने वाले को बैकुंड जाने का सौभाग्य मिलता है। इस व्रत को करने से राक्षस योनी से मुक्ति मिलती है। 

Kamada Ekadashi 2024: Kamada Ekadashi tomorrow, know the fasting rules, auspicious time, time of Paran and story | Kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी कल, जानिए व्रत नियम, शुभ मुहूर्त, पारण का समय और कथा

Kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी कल, जानिए व्रत नियम, शुभ मुहूर्त, पारण का समय और कथा

Kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी का व्रत 19 अप्रैल शुक्रवार को रखा जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल एकादशी तिथि को कामदा एकादशी कहते हैं। यह हिन्दू नव वर्ष का पहला एकादशी व्रत होता है। सनातन धर्म में कामदा एकादशी का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि कामदा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की कृपा से कामदा एकादशी का व्रत करने वाले को बैकुंड जाने का सौभाग्य मिलता है। इस व्रत को करने से राक्षस योनी से मुक्ति मिलती है। 

कामदा एकादशी 2024 मुहूर्त

कामदा एकादशी के ​दिन का ब्रह्म मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 23 मिनट से सुबह 05 बजकर 07 मिनट तक है। वहीं अभिजित मुहूर्त यानी उस दिन का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक है। व्रत रखने वाले जातक 20 अप्रैल को पारण कर सकेंगे। उस दिन पारण का समय सुबह 05 बजकर 50 मिनट से सुबह 08 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। 

कामदा एकादशी की पूजा विधि

एकादशी के दिन नहा-धोकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
दाहिने हाथ में जल लेकर कामदा एकादशी का संकल्प लें। 
अब पूजा स्थान पर बैठ भगवान विष्णु की प्रतीमा की स्थापना करें। 
फिर चंदन, अक्षत, फूल, धूप, गंध, दूध, फल, तिल, पंचामृत आदि से विधिपूर्वक भगवान की पूजा करें।
अब कामदा एकादशी की कथा कहें। 
पूजा समापन के समय भगवान विष्णु की आरती करें। 
बाद में प्रसाद का वितरण करें। 

कामदा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक काल में भोगीपुर राज्य में राजा पुंडरीक की शासन था। उसका राज्य धन धान्य और ऐश्वर्य से भरा था। उसके राज्य में एक प्रेमी युगल रहता था, जिसका नाम ललित और ललिता था। वे दोनों एक दूसरे से प्रेम कर​ते थे। एक दिन राजा पुंडरीक की सभा लगी थी, उसमें ललित साथी कलाकारों के साथ गीत संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था। उसने ललिता को देखा और उसका सुर गड़बड़ हो गया।

सभा में उपस्थित सेवकों ने राजा पुंडरीक को इस बात की जानकारी दे दी। इस पर क्रोधित राजा पुंडरीक ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण ललित राक्षस बन गया और उसका शरीर 8 योजन का हो गया। अब वह जंगल में रहने लगा। पत्नी ललिता जंगल में ललित के पीछे भागती रहती थी। राक्षस होने के कारण ललित का जीवन बड़ा कष्टमय हो गया।

एक रोज ललिता विंध्याचल पर्वत पर गई। वहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता ने श्रृंगी ऋषि को प्रणाम किया और अपने आने का उद्देश्य बताया। श्रृंगी ऋषि ने कहा कि तुम परेशान न हो। तुम कामदा एकादशी का व्रत रखो और उस व्रत से अर्जित पुण्य फल को अपने पति को समर्पित कर दो। उस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारा पति राक्षस योनि से बाहर निकल आएगा।

अगले बरस जब चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत आया तो ललिता ने श्रृंगी ऋषि द्वारा बताए गए नियम से कामदा एकादशी का व्रत किया और भगवान विष्णु की आराधना की। पूरे दिन कुछ नहीं खाया। रात्रि के समय में जागरण किया।

फिर अगले दिन विधि-विधान से व्रत का पारण किया और भगवान विष्णु से इस व्रत के पुण्य को पति ललित को देने की प्रार्थना की। उसने कहा कि वह कामदा एकादशी के पुण्य को अने पति को देती है, ताकि वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएं। श्रीहरि की कृपा से ललित राक्षस योनि से मुक्त हो गया। फिर से दोनों साथ में रहने लगे। 
    

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