Lok Sabha Election 2024: इसलिए ने कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश, जानिए क्यों कटा तेज प्रताप का कटा टिकट

By राजेंद्र कुमार | Published: April 24, 2024 05:35 PM2024-04-24T17:35:05+5:302024-04-24T17:36:22+5:30

कन्नौज जिला समाजवादियों का गढ़ रहा है। इस सीट से डाक्टर राम मनोहर लोहिया चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। मुलायम सिंह परिवार का भी सीधा नाता कन्नौज संसदीय सीट से रहा है। मुलायम सिंह और अखिलेश यादव भी इस सीट से चुनाव जीते थे।

why Akhilesh yedav will contest elections from Kannauj know why Tej Pratap's ticket was canceled | Lok Sabha Election 2024: इसलिए ने कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश, जानिए क्यों कटा तेज प्रताप का कटा टिकट

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

Highlightsअब अखिलेश यादव ने खुद ही कन्नौज सीट से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया हैमुलायम सिंह यादव की तर्ज पर केंद्र और प्रदेश की राजनीति को साधेंगेइत्र की खुशबू दुनियाभर में फैलाने वाला कन्नौज जिला समाजवादियों का गढ़ रहा है

Lok Sabha Election 2024: गत सोमवार को उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवाद पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव एक अलग लाइन खींचते दिख रहे थे। उन्होने इस बार लोकसभा चुनाव में ना लड़ने का फैसला करते हुए कन्नौज संसदीय सीट से अपने भतीजे तेज प्रताप यादव को चुनाव मैदान में उतारे जाने का ऐलान कर दिया था। तेज प्रताप यादव लालू यादव के दामाद हैं और वह मैनपुरी संसदीय सीट से सांसद भी रहे हैं। लेकिन अब अखिलेश यादव ने खुद ही कन्नौज सीट से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। कहा जा रहा हैं, कन्नौज के समाजवादी नेताओं की जिद के बाद अखिलेश ने बुधवार को फैसला लेकर यह संकेत दिया है कि वह भी मुलायम सिंह यादव की तर्ज पर केंद्र और प्रदेश की राजनीति को साधेंगे। 

इसलिए ने कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश 

इत्र की खुशबू दुनियाभर में फैलाने वाला कन्नौज जिला समाजवादियों का गढ़ रहा है। इस सीट से डाक्टर राम मनोहर लोहिया चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। मुलायम सिंह परिवार का भी सीधा नाता कन्नौज संसदीय सीट से रहा है। मुलायम सिंह और अखिलेश यादव भी इस सीट से चुनाव जीते थे। अखिलेश ने साल 2000 में राजनीति में सीधी एंट्री इसी सीट से ली थी। तब यह सीट यह सीट उनके पिता मुलायम सिंह यादव के इस्तीफे के कारण खाली हुई थी। मुलायम संभल और कन्नौज दोनों जगह से सांसद चुने गए थे। उन्होंने संभल बरकरार रखते हुए कन्नौज से अखिलेश की सियासी पारी शुरू करवाई। 

अखिलेश कन्नौज में अपना पहला चुनाव बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अकबर अहमद डंपी से सीधी लड़ाई में लगभग 58 हजार वोटों से जीते थे। इसके बाद साल 2004 और 2009  में भी अखिलेश कन्नौज से संसद पहुंचे। साल 2009 में अखिलेश कन्नौज और फिरोजाबाद संसदीय सीट से चुनाव लड़े और जीते थे। तब उन्होने फिरोजाबाद सीट इस्तीफा देकर उस सीट से अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया था। डिंपल यादव फिरोजाबाद में कांग्रेस के राज बब्बर से चुनाव हार गई थी। 

साल 2012 में अखिलेश के सीएम बनने के बाद कन्नौज सीट खाली हुई और उपचुनाव में डिंपल यहां निर्विरोध सांसद बनीं। वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव अखिलेश नहीं लड़े थे। फिर साल 2019 में वह जरूर आजमगढ़ से सांसद बने, लेकिन 2022 में करहल से विधायक और फिर नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। सीट खाली होने के चलते हुए उपचुनाव में चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव उम्मीदवार बने, लेकिन उन्हें हार नसीब हुई। सपा नेताओं का कहना है कि कन्नौज सीट से तेज प्रताप सिंह को चुनाव मैदान में उतारे जाने के हुए ऐलान पर वहां के सपा नेताओं के तेज प्रताप सिंह की जगह अखिलेश यादव से चुनाव लड़ने आग्रह किया और कहा तेज प्रताप का इस सीट से चुनाव जीतना मुश्किल होगा। इसलिए बेहतर यह है कि वह इस सीट से चुनाव लड़ें। बताया जा रहा है, कन्नौज से पार्टी नेताओं से इस इनपुट पर अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव और रामगोपाल यादव से सलाह मशविरा करने का बाद बुधवार को इटावा में परिवार के अन्य सदस्यों से सलाह ली। इसकी के बाद शाम को अखिलेश ने कन्नौज सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया।

अब भाजपा -सपा में होगी सीधी लड़ाई 
  
सपा के लिए कन्नौज सीट नाक का सवाल है क्योंकि सैफई परिवार का इस सीट से सीधा नाता रहा हैं। यादव बिरादरी के वोटर्स की इस सीट पर करीब 16 फीसदी है और इतनी ही संख्या मुस्लिम वोटर्स की भी है। जबकि ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 15 फीसदी के करीब और राजपूत मतदाता करीब 11 फीसदी है। ऐसे में अब इत्र के शहर में जीत की खुशबू के लिए इस सीट पर पक्ष-विपक्ष के बीच सीधी लड़ाई होगी। कहा जा रहा है कि अब अखिलेश यादव के चुनाव मैदान में आने से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद सुब्रत पाठक के लिए यह चुनाव एकतरफा नहीं रह गया हैं और अब पीएम नरेंद्र मोदी के यहां पर आए बिना सुब्रत पाठक का माहौल नहीं बनेगा।

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