चुनावी आपाधापी के बीच भी पीएम नरेंद्र मोदी का लेखन जारी, क्या आपने सुनी है उनकी ये नई कविता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 13, 2019 03:32 PM2019-05-13T15:32:13+5:302019-05-13T15:32:13+5:30

पीएम मोदी ने बताया कि हिमाचल की चुनावी रैली से लौटते समय उन्होंने एक कविता तैयार की है। पत्रकार के आग्रह पर उन्होंने अपनी कविता भी सुनाई। आप भी पढ़िए पीएम मोदी की नई कविता...

PM Narendra Modi's writing in the midst of election campaign, have you heard of this new poem? | चुनावी आपाधापी के बीच भी पीएम नरेंद्र मोदी का लेखन जारी, क्या आपने सुनी है उनकी ये नई कविता

चुनावी आपाधापी के बीच भी पीएम नरेंद्र मोदी का लेखन जारी, क्या आपने सुनी है उनकी ये नई कविता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कविता लिखने के भी शौकीन हैं। समय-समय पर वो अपने शौक को जाहिर भी करते रहते हैं। गौर करने वाली बात ये है कि इस चुनावी आपाधापी में भी वो कविता लिख रहे हैं। इसका खुलासा उन्होंने हाल ही में न्यूज नेशन को दिए एक टीवी इंटरव्यू में किया। उन्होंने बताया कि हिमाचल की चुनावी रैली से लौटते समय उन्होंने एक कविता तैयार की है। पत्रकार के आग्रह पर उन्होंने अपनी कविता भी सुनाई। आप भी पढ़िए पीएम मोदी की नई कविता...

‘आसमान में सिर उठाकर
 
घने बादलों को चीरकर
रोशनी का संकल्प लें
अभी तो सूरज उगा है।।
 
दृढ़ निश्चय के साथ चलकर
हर मुश्किल को पारकर
घोर अंधेरे को मिटाने
अभी तो सूरज उगा है।।

विश्वास की लौ जलाकर
विकास का दीपक लेकर
सपनों को साकार करने
अभी तो सूरज उगा है।।

न अपना न पराया
न मेरा न तेरा
सबका तेज बनकर
अभी तो सूरज उगा है।।

आग को समेटते
प्रकाश को बिखेरता
चलता और चलाता
अभी तो सूरज उगा है।।

विकृति ने प्रकृति को दबोचा
अपनों से ध्वस्त होती आज है
कल बचाने और बनाने
अभी तो सूरज उगा है।।

इससे पहले नरेंद्र मोदी की कविताओं को बीजेपी की पत्रिका 'चरैवेति' में प्रकाशित किया गया है। मोदी का गुजराती में काव्य संग्रह 'आंख आ धन्य छे' पहले ही छप चुका है। पढ़िए नरेंद्र मोदी की एक और चर्चित कविता...

जिन क्षणों में मुझे तुम्हारे होने का अहसास हुआ है
मेरे दिमाग के शांत हिमालयी जंगल में
एक वन अग्नि धधक रही है
गंभीरता से उठती हुई
जब मैं अपनी आंखें तुम पर रखता हूं
मेरे मस्तिष्क की आंख में एक पूर्ण चंद्रमा उदय होता है
और मैं संपूर्ण पुष्पित चंदन के वृक्ष से झरती महक से भर जाता हूं
और तब जब आखिरी बार हम मिले थे
मेरे होने का पोर-पोर एक अतुलनीय महक से भर गया था
हमारे अलगाव ने
मेरे जीवन के आनंद के सभी शिखरों को पिघला दिया था
जो मेरे देह को झुलसाती है और
मेरे सपनों को राख में बदल देती है।

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