Marathwada region water: 4 किमी चलकर पानी की तलाश में लोग, पेयजल को लेकर दर-दर भटक रहे महिला और बच्चे, आखिर क्या है मजबूरी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 4, 2024 01:46 PM2024-05-04T13:46:51+5:302024-05-04T14:18:49+5:30

Marathwada region water: गांव में रहने वाले लोगों ने बताया कि पिछले तीन महीने में गांव में भूजल स्रोत सूख गए हैं जिसके कारण महिलाओं और बच्चों को आसपास के इलाकों से पीने का पानी लाने के लिए कम से कम दो से चार किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है और भीषण गर्मी में पानी लेने के लिए इन इलाकों के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं।

Marathwada region water Village people troubled water shortage women children wander door to door drinking water ground water sources dry what compulsion after all | Marathwada region water: 4 किमी चलकर पानी की तलाश में लोग, पेयजल को लेकर दर-दर भटक रहे महिला और बच्चे, आखिर क्या है मजबूरी

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Highlightsलोग पेयजल की जरूरत को पूरा करने के लिए पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं। अपर्याप्त वर्षा के कारण जिले के विभिन्न हिस्से पानी की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। टैंकर गांव के कृत्रिम टैंक में पानी खाली कर देता है।

Marathwada region water: महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र में जालना जिले के एक गांव की महिलाओं और बच्चों के दिन का अधिकतर समय पेयजल की व्यवस्था करने के लिए निकटवर्ती इलाकों में भटकने में चला जाता है। बदनापुर तहसील के अंदरूनी इलाकों में जालना-भोरकरदन रोड के पास स्थित तपोवन गांव में प्राकृतिक जल स्रोत नहीं हैं और वहां लोग पेयजल की जरूरत को पूरा करने के लिए पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं। गांव में रहने वाले लोगों ने बताया कि पिछले तीन महीने में गांव में भूजल स्रोत सूख गए हैं जिसके कारण महिलाओं और बच्चों को आसपास के इलाकों से पीने का पानी लाने के लिए कम से कम दो से चार किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है और भीषण गर्मी में पानी लेने के लिए इन इलाकों के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं।

पिछले मानसून में अपर्याप्त वर्षा के कारण जिले के विभिन्न हिस्से पानी की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। गांव में रहने वाली आम्रपाली बोर्डे ने कहा कि एक टैंकर घरेलू उपयोग के लिए रोजाना पानी की आपूर्ति करता है, लेकिन इसका रंग पीला होता है और इसे पीने एवं खाना पकाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

बोर्डे ने कहा, ‘‘टैंकर गांव के कृत्रिम टैंक में पानी खाली कर देता है। हमें पानी को अपने घरों तक ले जाना पड़ता है लेकिन यह पानी पीने योग्य नहीं होगा। हम पेयजल दूसरे गांवों के खेतों में स्थित जल स्रोतों से लाते हैं।'' उन्होंने कहा कि कुएं के मालिक अक्सर उन्हें पानी नहीं भरने देते। निकटवर्ती गांव पोवन टांडा, तुपेवाडी और बनेगांव भी पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं।

जालना में 30 अप्रैल तक 282 गांव और 68 बस्तियां 419 टैंकर पर निर्भर थीं। टैंकर चालक गणेश ससाने हर दिन 12 किलोमीटर दूर स्थित एक कुएं से तपोवन में पानी लाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अपने टैंकर को भरने के लिए एक घंटे इंतजार करना पड़ता है। मैं तपोवन में कम से कम दो बार जाता हूं। गांव में करीब 400 मकान हैं।’’

गांव की सरपंच ज्योति जगदाले ने कहा, ‘‘हमारे गांव में नदी या सिंचाई परियोजना जैसा कोई बड़ा जल स्रोत नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि जल जीवन मिशन योजना के तहत पाइपलाइन का काम चल रहा है और इसके पूरा होने पर ग्रामीणों को कुछ राहत मिलेगी। 

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