‘गोद लिए दंपति’ 90 वर्षीय विधवा का घर दो महीने के भीतर खाली करें, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा-अपने ही घर में प्रताड़ना की शिकार
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 27, 2022 08:25 PM2022-07-27T20:25:49+5:302022-07-27T20:26:50+5:30
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के तहत शकुंतला सक्सेना (90) की याचिका मंजूर करते हुए मंगलवार (26 जुलाई) को यह आदेश दिया।
इंदौरः मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने जिला प्रशासन के एक आदेश को रद्द करते हुए अपने ही घर में एक युगल की कथित प्रताड़ना की शिकार 90 वर्षीय विधवा को बड़ी राहत दी है। अदालत ने इस दम्पति को आदेश दिया है कि वे बुजुर्ग महिला का घर दो महीने के भीतर खाली करें।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के तहत शकुंतला सक्सेना (90) की याचिका मंजूर करते हुए मंगलवार (26 जुलाई) को यह आदेश दिया।
सक्सेना ने याचिका में आरोप लगाया कि शिल्पी श्रीवास्तव और उनके पति ललित श्रीवास्तव उनके घर में रहकर उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं, इसलिए वह अब उन्हें साथ रखना नहीं चाहतीं। दूसरी ओर, श्रीवास्तव दम्पति की ओर से यह आरोप खारिज किया गया।
युगल ने उच्च न्यायालय में दावा किया गया कि उन्हें बुजुर्ग महिला के दिवंगत पति शांतिप्रकाश सक्सेना ने संतान के रूप में गोद लिया था और सक्सेना की संपत्ति पर दावे को लेकर निचली अदालत में उनकी ओर से दायर दीवानी मुकदमा विचाराधीन है।
इस बीच, उच्च न्यायालय ने कहा कि इस दम्पति ने उसके सामने ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया है जिससे संबंधित संपत्ति पर उनका कोई अधिकार साबित होता हो। गौरतलब है कि उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पहले 90 वर्षीय विधवा ने जिला प्रशासन के सामने अर्जी लगाई थी।
हालांकि, प्रशासन ने इस पर 18 जनवरी को पारित आदेश में कहा था कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के तहत उसे किसी व्यक्ति का घर खाली कराने का कोई अधिकार नहीं है। उच्च न्यायालय ने प्रशासन का यह आदेश रद्द करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता महिला को 90 साल की उम्र में दोबारा सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने के लिए नहीं भेजा जा सकता।