'सीबीआई के कार्यों पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है', सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: May 2, 2024 01:21 PM2024-05-02T13:21:20+5:302024-05-02T13:29:14+5:30

सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारत सरकार का सीबीआई पर न तो कोई नियंत्रण है और न ही सरकार उसके किसी जांच में किसी प्रकार का दखल देती है।

Government of India has no control over the CBI', said Solicitor General Tushar Mehta, appearing for the Central Government in the Supreme Court | 'सीबीआई के कार्यों पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है', सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा

फाइल फोटो

Highlightsभारत सरकार का सीबीआई पर न तो कोई नियंत्रण है, न ही सरकार उसकी जांच में दखल देती हैसुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहाकेंद्र ने बंगाल में कोई केस नहीं दर्ज किया गया है, सभी मामले सीबीआई की ओर से दर्ज किये गये है

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दोटूक शब्दों में कहा कि भारत सरकार का केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) पर न तो कोई नियंत्रण है और न ही सरकार उसके किसी जांच में किसी प्रकार का दखल देती है।

समाचार वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सीबीआई पर भारत सरकार का कोई 'नियंत्रण' नहीं है,  जबकि एजेंसी ने कई मामलों में अपनी जांच जारी रखने पर पश्चिम बंगाल द्वारा राज्य की पूर्वानुमति के बिना दायर मुकदमे पर प्रारंभिक आपत्ति जताई गई है।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ के सामने केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “भारत संघ की ओर से बंगाल में कोई मामला नहीं दर्ज किया गया है, ये सभी मामले सीबीआई ने दर्ज किया है और चूंकि सीबीआई एक स्वायत्त जांच एजेंसी है। इसलिए उस पर केंद्र सरकार का कोई  नियंत्रण नहीं है।”

दरअसल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने देश की सर्वोच्च अदालत के सामने यह दलील उस केस में दी है, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया है। इस केस में तृणमूल सरकार ने दावा किया है कि पश्चिम बंगाल में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को "सामान्य सहमति" रद्द करने के बावजूद वह एफआईआर दर्ज करना चाहती है और जांच जारी रखना चाहती है।

सॉलिसिटर जनरल मेहता ने दोनों जजों की पीठ के समक्ष दिये अपनी दलील में कहा कि अनुच्छेद 131, जो केंद्र और एक या अधिक राज्य सरकारों के बीच विवाद में शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र से संबंधित है। कोर्ट द्वारा इसके “दुरुपयोग” की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

उन्होंने कोर्ट से कहा, “अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय को प्रदत्त सबसे पवित्र न्यायक्षेत्रों में से एक है। इस प्रावधान का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।''

मामले में विवाद उस समय उठा, जब 16 नवंबर 2018 को पश्चिम बंगाल ने राज्य में जांच करने या छापेमारी करने के लिए सीबीआई की "सामान्य सहमति" वापस ले ली थी। इसके साथ बंगाल भी कई गैर-भाजपा शासित राज्यों में शामिल हो गया, जहां जांच एजेंसी को अपनी गतिविधियों के लिए संबंधित राज्य सरकार की अनुमति लेनी होती है या अदालत से निर्देश की आवश्यकता होती है।

इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी, जो केंद्र में सरकार चलाती है। उस पर बार-बार विपक्षी राज्य सरकारों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का "दुरुपयोग" करने का आरोप लगाया गया है। हालांकि केंद्र की भाजपा की अगुवाई वाली सरकार इन आरोपों का खंडन करती है।

वैसे सीबीआई पर पूर्व में भी "राजनीतिक प्रभाव" के तहत काम करने के आरोप लगते रहे हैं। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई पर बेहद प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए एजेंसी को "पिंजरे में बंद तोता" तक कह दिया था और उस समय कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सत्ता में थी।

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