ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए शीघ्र कार्रवाई की जरूरत
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 29, 2023 13:36 IST2023-11-29T13:34:02+5:302023-11-29T13:36:05+5:30
पिछले कुछ वर्षों में प्रकाशित हुई अनेक पारस्परिक सहमतियों और वैश्विक उद्घोषणाओं से राजनेताओं की कुछ गंभीरता तो जरूर प्रकट होती है परंतु उसे कार्य स्तर पर लागू करने तक की अब तक की यात्रा निहित स्वार्थ के कारण कंटकाकीर्ण रही है।

(प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली: वैश्विक स्तर पर सबको प्रभावित करने वाली मानवजनित चुनौतियों में जलवायु-परिवर्तन की खास भूमिका है। इसका स्वरूप दिन प्रतिदिन जटिल होता जा रहा है। इसे लेकर चिंतन भी हो रहा है और चिंता भी जाहिर की जाती रही है। इस क्रम में यूएई के विख्यात दुबई महानगर में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज यानी काप का 28 वां सम्मेलन 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक होने जा रहा है। इस श्रृंखला की यह एक खास कड़ी है जिसमें यह जरूरी होगा कि समस्या के समाधान की दिशा में फलदायी निर्णय लिए जाएं। अंटार्कटिक क्षेत्र में आ रहे बदलाव और विश्वव्यापी घटना के रूप में अनेक क्षेत्रों में ग्लेशियरों के व्यापक पैमाने पर पिघलने की स्थिति चिंताजनक हो रही है।
पिछले वर्षों में यूरोप और अमेरिका के अनेक क्षेत्रों में बाढ़, लू, सूखा और प्रचंड तूफान जैसी जलवायु की चरम स्थितियों का बारंबार सामना करना पड़ा है। भारत के हिमाचल प्रदेश, असम, उत्तराखंड और दिल्ली में जिस तरह बाढ़ का प्रकोप अनुभव किया गया वह विस्मयजनक था। वस्तुतः भारत समेत विश्व के अधिकांश भौगोलिक क्षेत्रों में लगातार अनुभव हो रही प्राकृतिक विभीषिकाओं को देखते हुए जलवायु वैज्ञानिक दुनिया को संभावित खतरों से आगाह करने के लिए अनेक वर्षों से सतर्क करते रहे हैं और उसका काफी असर होना चाहिए था। यह जरूर हुआ है कि उसके लिए अनेक देशों द्वारा प्रतिबद्धता दर्शाई जाती रही।
पिछले कुछ वर्षों में प्रकाशित हुई अनेक पारस्परिक सहमतियों और वैश्विक उद्घोषणाओं से राजनेताओं की कुछ गंभीरता तो जरूर प्रकट होती है परंतु उसे कार्य स्तर पर लागू करने तक की अब तक की यात्रा निहित स्वार्थ के कारण कंटकाकीर्ण रही है। स्थिति यह है कि पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि अनियंत्रित होती जा रही है। सन् 2023 के अगस्त से अक्तूबर तक के महीने विश्व भर में रिकर्डतोड़ गर्म दर्ज किए गए हैं। पिछले करीब दो सौ वर्षों में इस तरह की घटना पहली बार अनुभव की गई है। पर्यावरण को लेकर गैरजिम्मेदाराना व्यवहार का एक दु:खद पक्ष यह भी है कि हानि का वितरण सभी देशों के बीच एक सा नहीं है। उच्च तकनीकी के साथ विकसित देश प्रकृति के दोहन में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। इस वैश्विक विपदा का खामियाजा अक्सर कम विकसित देशों को भुगतना पड़ता है। इसके समाधान के लिए जरूरी संसाधन उपलब्ध कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय कोष का प्रस्ताव बनता रहा है परंतु कार्रवाई के स्तर पर अभी तक की प्रगति बेहद असंतोषजनक है। डेढ़ डिग्री तक वैश्विक तापमान बनाए रखने में विफल होने से अनुमान है कि दुनिया को आने वाले दिनों में भयानक गर्मी से गुजरना होगा। इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं।