ब्लॉग: सत्ता ही ब्रह्म है, विचारधारा तो माया है! नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का नया दौर
By वेद प्रताप वैदिक | Published: March 1, 2023 02:20 PM2023-03-01T14:20:06+5:302023-03-01T14:22:49+5:30
नेपाल में राष्ट्रपति का चुनाव 9 मार्च को होना है. अगले एक हफ्ते में कोई भी पार्टी किसी भी गठबंधन में आ-जा सकती है. नेपाल की इस उठापटक में एक बार फिर वहां की राजनीति में अस्थिरता का माहौल बना दिया है.
नेपाल में नई सरकार को बने मुश्किल से दो माह ही हुए हैं और वहां के सत्तारूढ़ गठबंधन में जबर्दस्त उठापटक हो गई है. उठापटक दो कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच हुई है. ये दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां नेपाल में राज कर चुकी हैं. नेपाली कांग्रेस को पिछले चुनाव में 89 सीटें मिली थीं. जबकि पुष्पकमल दहल प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी को सिर्फ 32 और के.पी. ओली की माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी को 78 सीटें मिली थीं.
दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने कुछ और छोटी-मोटी पार्टियों को अपने साथ जोड़कर भानुमती का कुनबा खड़ा कर लिया. शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस धरी रह गई. लेकिन पिछले दो माह में ही दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों में इतने मतभेद खड़े हो गए कि प्रधानमंत्री प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया और अब राष्ट्रपति पद के लिए ओली की पार्टी को दरकिनार करके उन्होंने नेपाली कांग्रेस के नेता रामचंद्र पौडेल को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया है.
ओली इस बात पर क्रोधित हो गए. उन्होंने दावा किया कि प्रचंड ने वादाखिलाफी की है. इसीलिए वे सरकार से अलग हो रहे हैं. उनके उपप्रधानमंत्री सहित आठ मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है. इन इस्तीफों के बावजूद फिलहाल प्रचंड की सरकार के गिरने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि नए गठबंधन को अभी भी संसद में बहुमत प्राप्त है. नेपाली संसद में इस समय प्रचंड के साथ 141 सांसद हैं जबकि सरकार में बने रहने के लिए उन्हें कुल 138 सदस्यों की जरूरत है.
सिर्फ तीन सदस्यों के बहुमत से यह सरकार कितने दिन चलेगी? अन्य लगभग आधा दर्जन पार्टियां इस गठबंधन से कब खिसक जाएंगी, कुछ पता नहीं. राष्ट्रपति का चुनाव 9 मार्च को होना है. अगले एक हफ्ते में कोई भी पार्टी किसी भी गठबंधन में आ-जा सकती है. नेपाल की इस उठापटक में भारत की भूमिका ज्यादा गहरी नहीं है, क्योंकि दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां कभी पूरी तरह भारत-विरोधी रही हैं.
इस संकट के समय नेपाली राजनीति में चीन की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहनेवाली है. दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां उत्कट चीन-प्रेमी रही हैं. इस संकट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सत्ता ही ब्रह्म है, विचारधारा तो माया है.