ब्लॉग: मणिपुर को समझाने नहीं, समझने की जरूरत

By शशिधर खान | Published: May 9, 2024 09:49 AM2024-05-09T09:49:20+5:302024-05-09T09:49:23+5:30

सबसे ज्यादा मुश्किल का सामना केंद्रीय सुरक्षा बलों को करना पड़ रहा है।

Manipur needs to be understood, not explained | ब्लॉग: मणिपुर को समझाने नहीं, समझने की जरूरत

ब्लॉग: मणिपुर को समझाने नहीं, समझने की जरूरत

मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के एक साल पूरे होने पर सभी सामाजिक संगठनों ने इंफाल से दिल्ली तक राहत और शांति की गुहार लगाई है। दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर मणिपुर की राजधानी इंफाल के विभिन्न हिस्सों में हुए प्रदर्शनों से उन जातीय गुटों की पीड़ा निकली है, जो इस बेकाबू हिंसा का दंश झेल रहे हैं।

पूरे देश में सभी क्षेत्रीय और राजनीतिक दल चुनाव में मशगूल हैं। मतदाता वोट डालने में रुचि लें या न लें, दलों को वोट चाहिए। इस धुआंधार चुनाव प्रचार अभियान से बिल्कुल बेखबर मणिपुर के मतदाताओं के बीच मातम जैसा माहौल है। वैसे ही गमगीन वातावरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर जाकर लोगों को समझाया कि इस हिंसाग्रस्त राज्य में भाजपा के सत्ता में आने के बाद ही शांति स्थापित हो पाई।

प्रधानमंत्री ने स्वयं दावा किया कि समय रहते हस्तक्षेप के कारण ही मणिपुर में हालात बेहतर हुए। लेकिन मणिपुर के मतदाताओं में लोकसभा सभा चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं था। न चुनाव रैलियों में कोई रुचि थी, न ही किसी नेता का भाषण सुनने में, लोगों ने वोट जरूर डाला, मगर चुनाव से पहले तक सन्नाटा जैसी स्थिति थी। न कोई रोड शो, न कोई पोस्टर मणिपुर में आमने-सामने मुकाबले की दोनों पार्टियां - सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के नेता चुनाव प्रचार की अवधि समाप्त होने के समय वोट मांगने पहुंचे।

मणिपुर में वोटिंग का प्रतिशत अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा ही रहा। लेकिन मणिपुरवासियों की पीड़ा विगत एक वर्ष में राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने समझने की कोशिश नहीं की। वही पीड़ा वोटिंग के बाद जातीय हिंसा की बरसी के समय उभरी है। सरकारी आंकड़े को ही अगर सही मानें तो गत एक वर्ष में 221 लोग मारे गए, जिनमें सुरक्षा बलों के कम-से-कम एक दर्जन जवान शामिल हैं। हजारों लोग घायल हुए और अपने घर-द्वार से विस्थापित होकर जहां-तहां रह रहे लोगों की संख्या 50,000  से ज्यादा है। इसके अलावा मैतेई और कुकी -समुदाय के दर्जनों लोग अभी तक लापता है।

इस हफ्ते प्रदर्शनों के दौरान इन दोनों ही समुदायों के संगठनों ने अपनों से बिछुड़ने और असामान्य हालात में जीने का दर्द बयां किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गए ज्ञापन में पीड़ित समुदायों ने अपनी व्यथा से उन्हें अवगत कराया।

2023 में मई के पहले सप्ताह में मैतेई और आदिवासी कुकी समुदाय के बीच भड़की हिंसा में सबसे पहले तो मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह स्वयं सवालों के घेरे में हैं। मणिपुर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में इस हिंसा को लेकर विवाद खड़ा हुआ, मगर तनाव बरकरार है। सबसे ज्यादा मुश्किल का सामना केंद्रीय सुरक्षा बलों को करना पड़ रहा है।

हिंसा और शांति दोनों ही राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। लोगों को असंतोष मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के प्रति है। हिंसा का शिकार हुए दोनों ही समुदायों के लोगों ने जो प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया, उससे स्पष्ट है कि राज्य सरकार ने अपने लोगों को समझने के बजाय मणिपुरवासियों को सिर्फ केंद्र की नीतियां समझाने की कोशिश की।

Web Title: Manipur needs to be understood, not explained

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