Mahaparinirvan Diwas 2023: देश के संविधान के शिल्पी, बाबासाहब के सिद्धांत थे स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व
By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: December 6, 2023 10:52 AM2023-12-06T10:52:01+5:302023-12-06T10:53:17+5:30
Mahaparinirvan Diwas 2023: स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व संविधान की टेक बने तो उसके पीछे कई अन्य कारकों व कारणों के साथ बाबासाहब की इस पसंद की भी बड़ी भूमिका थी.
Mahaparinirvan Diwas 2023: प्रखर समाजसुधारक, प्रभावशाली वक्ता, अनूठे विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री और राजनेता. हां, जिन बाबासाहब डाॅ. भीमराव आंबेडकर को हम आमतौर पर अपने देश के संविधान के शिल्पी के तौर पर जानते हैं, इस अर्थ में ‘बहुज्ञ’ थे कि उनके व्यक्तित्व के कई दूसरे महनीय आयाम भी थे.
अपनी बातचीत में वे प्रायः कहा करते थे कि उन्हें एकमात्र वही धर्म पसंद है, जो स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व सिखाता हो. आगे चलकर यही स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व संविधान की टेक बने तो उसके पीछे कई अन्य कारकों व कारणों के साथ बाबासाहब की इस पसंद की भी बड़ी भूमिका थी.
उनकी इस मान्यता की भी कि समता एक कल्पना हो तो भी उसे एक शासी निकाय के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. एक तो इस कारण कि दलित-वंचित तबकों को सच्चा सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने का और कोई रास्ता है ही नहीं. और दूसरे इस कारण कि जब तक उन्हें इसका रास्ता उपलब्ध कराकर बराबर का भागीदार नहीं बनाया जाएगा, देश के राजनीतिक लोकतंत्र को सार्थक नहीं बनाया जा सकता.
अपनी इसी मान्यता के मद्देनजर बाबासाहब ने दलितों का आह्वान किया था कि सामाजिक न्याय हासिल करने के लिए वे जैसे भी संभव हो, शिक्षा तो प्राप्त करें ही, संघर्ष भी करें और संगठित भी रहें. उन्होंने खुद भी बहुत से कष्ट सहे लेकिन अपनी शिक्षा को प्रभावित नहीं होने दिया था.
पुस्तकें पढ़ने का तो उन्हें व्यसन-सा था और उनका व्यक्तिगत पुस्तकालय दुनिया के सबसे बड़े व्यक्तिगत पुस्तकालयों में गिना जाता था. उनके सामाजिक न्याय सम्बन्धी विचारों को आज देश में व्यापक स्वीकृति प्राप्त है और मजबूरी में ही सही, सारे राजनीतिक दल और नेता उनसे सहमति जताते और उनकी दिशा में बढ़ने की प्रतिबद्धता जताते हैं.
प्रसंगवश, 1943 में उनको वाइसराय काउंसिल में शामिल किया और श्रममंत्री बनाया गया तो लोक निर्माण विभाग का प्रभार भी दिया गया. ठेकेदारों में इस विभाग के निर्माण के ठेके लेने की होड़ मची रहती थी और उसका बजट भी भारी भरकम हुआ करता था.
एक बार एक बड़े ठेकेदार ने ठेके के लालच में बाबासाहब के बेटे यशवंत राव को इस शर्त पर अपना पार्टनर बनाने और 25-50 प्रतिशत तक कमीशन देने का प्रस्ताव भेजा कि वे अपने पिता से उसे ठेका दिला दें. लेकिन यशवंत ने दिल्ली जाकर इस बाबत बाबासाहब से कहा तो उन्हें टका-सा जवाब मिला, मैं यहां अपनी संतान पालने नहीं आया हूं. ऐसे लोभ-लालच मुझे मेरे समाज के उद्धार के ध्येय से डिगा नहीं सकते. कहते हैं कि इसके बाद बाबासाहब ने उसी रात यशवंत को भूखे पेट मुंबई वापस भेज दिया था.