Lok Sabha Elections 2024: धन बल का प्रयोग बढ़ा, चुनाव में अनैतिक तरीकों का बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 16, 2024 11:25 AM2024-04-16T11:25:27+5:302024-04-16T11:26:37+5:30

Lok Sabha Elections 2024: निर्वाचन आयोग ने मौजूदा संसदीय चुनाव के दौरान बरामद नकदी, मादक पदार्थ और शराब का जो आंकड़ा दिया है वह चौंकाने के साथ-साथ स्तब्ध भी कर देता है.

Lok Sabha Elections 2024 money power polls chunav aap increasing influence unethical methods concern | Lok Sabha Elections 2024: धन बल का प्रयोग बढ़ा, चुनाव में अनैतिक तरीकों का बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय

file photo

Highlightsचुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए कितने बड़े पैमाने पर अवांछित तत्व सक्रिय हैं.चुनाव प्रक्रिया के दौरान एक मार्च से रोज देश के विभिन्न हिस्सों में 100 करोड़ रु. नकद और मादक पदार्थ जब्त किए जा रहे हैं.15 हजार करोड़ के आसपास नकद, शराब और मादक पदार्थ जब्त की जा चुकी होगी.

Lok Sabha Elections 2024: निर्वाचन आयोग की तमाम कोशिशों के बावजूद देश में चुनाव में धन बल का प्रयोग बढ़ रहा है और इससे लोकतंत्र की बुनियाद के लिए खतरा पैदा होने लगा है. सरकार भी अपनी तरफ से स्वतंत्र, निष्पक्ष तथा पारदर्शी चुनाव करवाने, धन बल से प्रभावित हुए बिना मतदाताओं को वोट डालने के लिए प्रोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती. धन बल और बाहुबल के उपयोग को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं लेकिन इन सबका कोई असर होता नहीं दिख रहा हैै. मतदाता पहले की तरह अशिक्षित या अर्धशिक्षित भी नहीं रह गए हैं, राजनीति की बारीकियों और अपने क्षेत्र के विकास के लिए मतदान के महत्व को भी वे समझने लगे हैं. होना तो यह चाहिए था कि जैसे-जैसे मतदाता शिक्षित तथा राजनीतिक रूप से जागरूक होता जाता है, वैसे-वैसे धन बल एवं बाहुबल का उपयोग करने वाले चुनाव पटल से अदृश्य हो जाते. निर्वाचन आयोग ने मौजूदा संसदीय चुनाव के दौरान बरामद नकदी, मादक पदार्थ और शराब का जो आंकड़ा दिया है वह चौंकाने के साथ-साथ स्तब्ध भी कर देता है.

यह सोचकर आश्चर्य होता है कि दुनिया की सबसे बड़ी, पारदर्शी तथा स्वतंत्र चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए कितने बड़े पैमाने पर अवांछित तत्व सक्रिय हैं. निर्वाचन आयोग के मुताबिक मौजूदा चुनाव प्रक्रिया के दौरान एक मार्च से रोज देश के विभिन्न हिस्सों में 100 करोड़ रु. नकद और मादक पदार्थ जब्त किए जा रहे हैं. अब तक 4650 करोड़ रु. नगद, शराब और मादक पदार्थ जब्त किए जा चुके है और आशंका है कि मतदान की प्रक्रिया जब एक जून को समाप्त होगी, तब तक 15 हजार करोड़ के आसपास नकद, शराब और मादक पदार्थ जब्त की जा चुकी होगी.

इसके अलावा मतदाताओं को लुभाने के लिए विभिन्न सामग्रियां  भी बड़ी मात्रा में बरामद की गई हैं. निर्वाचन आयोग का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जितनी नगद राशि, मादक पदार्थ और शराब जब्त नहीं हुई थी, उससे ज्यादा एक मार्च से अब तक के डेढ़ महीने में बरामद की जा चुकी है. यह चुनाव अवैध राशि की जब्ती के मामले में नया रिकॉर्ड बना सकता है.

यह एक ऐसा रिकॉर्ड होगा जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरे की घंटी तो बजाएगा ही, साथ-साथ हमारी चुनाव प्रणाली के बेदाग होने पर भी सवालिया निशान खड़ा कर देगा. देश में आजादी के बाद से ही पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक धन बल तथा बाहुबल के इस्तेमाल के आरोप लगते रहे हैं लेकिन 1952 से लेकर नब्बे के दशक तक बड़ी मात्रा में नकदी की जब्ती तथा बाहुबल के उपयोग की घटनाएं बेहद सीमित हुआ करती थीं. नब्बे के दशक के बाद मतदाताओं को लुभाने के लिए तमाम राजनीतिक दलों ने धर्म और जाति का कार्ड खुलकर खेलने के साथ-साथ अनुचित प्रलोभन देना भी शुरू कर दिया.

चुनाव घोषणापत्रों में रेवड़ी बांटने के वादों के बाद प्रचार के दौरान मतदाताओं को नगद राशि बांटने का चलन शुरू हो गया और यह खुलेआम होने लगा. अपने काम और निर्वाचन क्षेत्र तथा देश के लिए अपनी योजनाओं के बदले पैसा देकर वोट खरीदने की प्रवृत्ति देखकर अफसोस तो होता ही है, साथ ही मतदाताओं की मानसिकता पर भी क्षोभ होता है.

ऐसा नहीं है कि सभी मतदाता राजनीतिक दलों के भ्रष्ट जाल में फंसते हों. ज्यादातर मतदाता उम्मीदवार की छवि, अपने क्षेत्र, प्रदेश तथा देश के हित को प्राथमिकता देकर वोट डालते हैैं लेकिन एक बड़ा तबका क्षणिक लाभ के लिए पथभ्रष्ट भी हो जाता है. ऐसे मतदाताओं की संख्या को कमतर आंका नहीं जा सकता क्योंकि जितनी बड़ी मात्रा में नकदी, मादक पदार्थ और शराब की जब्ती हो रही है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि लाखों लोगों के वोटों को खरीदने की कोशिश राजनीतिक दल करने लगे हैं.

स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव करवाना सिर्फ सरकार या निर्वाचन आयोग की ही जिम्मेदारी नहीं है. ईमानदार तथा भयमुक्त चुनाव करवाने की प्रक्रिया में देश के प्रति तमाम राजनीतिक दलों, उनके उम्मीदवारों, निर्दलीय प्रत्याशियों एवं सजग मतदाता के तौर पर हमारी जवाबदेही भी है.

राजनीतिक दल अगर धन तथा बाहुबल से चुनाव को प्रभावित करने की प्रवृत्ति छोड़ देंगे तो लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो जाएंगी. मतदाता अगर संकल्प कर ले कि उसे किसी लालच से प्रभावित हुए बिना गुणवत्ता के आधार पर वोट देना है तो राजनीतिक दल उसे भ्रष्ट करने का दुस्साहस नहीं करेंगे. इस चुनाव में भी निर्वाचन आयोग स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव के लिए पूरी कोशिश कर रहा है. उसे सहयोग देना राजनीतिक दलों तथा मतदाताओं का कर्तव्य है. 

Web Title: Lok Sabha Elections 2024 money power polls chunav aap increasing influence unethical methods concern