ब्लॉग: समाज की मानसिकता दर्शाती सार्वजनिक शौचालयों की गंदगी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 4, 2024 09:58 AM2024-05-04T09:58:24+5:302024-05-04T11:20:54+5:30

कई राज्यों में तो सार्वजनिक शौचालयों की हालत ऐसी रहती है कि उन्हें देखकर यह कहने का मन करता है कि धरती पर अगर कहीं नर्क है तो यहीं है! यहीं है!! यहीं है!!! महाराष्ट्र में समृद्धि महामार्ग जैसी शानदार सड़कों के किनारे पेट्रोल पंपों या अन्य स्थानों पर स्थित सार्वजनिक शौचालय सुखद यात्रा को दुखद बना देते हैं।

Dirtiness of public toilets reflects the mentality of the society | ब्लॉग: समाज की मानसिकता दर्शाती सार्वजनिक शौचालयों की गंदगी

ब्लॉग: समाज की मानसिकता दर्शाती सार्वजनिक शौचालयों की गंदगी

हेमधर शर्मा 

हाल ही में एक हैरान कर देने वाला वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दिखाया गया था कि पेरिस में अपने आप साफ हो जाने वाले पब्लिक टॉयलेट किस तरह से काम करते हैं। वायरल वीडियो में दिखाया गया था कि टॉयलेट का दरवाजा अपने आप बंद होता है और फिर कमोड भी अपने आप अंदर चला जाता है। फिर फर्श पर अपने आप पानी निकलने लगता है, फर्श धुल जाती है और कुछ ही देर में सूख भी जाती है(इसके लिए शायद कोई मशीन फर्श के नीचे लगी हो) फिर कमोड बाहर आता है और दरवाजा खुल जाता है।

अगर हम अपने देश के सार्वजनिक शौचालयों से इसकी तुलना करें तो यह जादू के जैसा लगेगा। हालांकि हमारे देश में भी आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और पूर्वोत्तर के राज्यों में सार्वजनिक शौचालयों की सफाई काबिले तारीफ रहती है लेकिन अन्य अधिकांश राज्यों के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती। कई राज्यों में तो सार्वजनिक शौचालयों की हालत ऐसी रहती है कि उन्हें देखकर यह कहने का मन करता है कि धरती पर अगर कहीं नर्क है तो यहीं है! यहीं है!! यहीं है!!! महाराष्ट्र में समृद्धि महामार्ग जैसी शानदार सड़कों के किनारे पेट्रोल पंपों या अन्य स्थानों पर स्थित सार्वजनिक शौचालय सुखद यात्रा को दुखद बना देते हैं।

शौचालयों में व्याप्त गंदगी जहां हम यात्रियों की सफाई के प्रति उदासीनता को दर्शाती है, वहीं शौचालय की टूटी शीटें इसकी देखरेख के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही की गवाही देती हैं। बहुत साल नहीं बीते, जब स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत घर-घर शौचालय बनने के पहले बहुत से लोग खुले मैदानों में ही दीर्घशंका निवृत्ति (शौच) के लिए जाते थे। तब गांवों में जाने वालों का स्वागत अक्सर गांव से निकलने वाली सड़क के दोनों तरफ फैली गंदगी ही करती थी।

अब ऐसा लगता है कि वही गंदगी वहां से उठकर सार्वजनिक शौचालयों में पसर गई है! दरअसल बचपन से हमें सिखाया ही नहीं जाता कि जिस तरह से हम अपने घर को साफ रखते हैं, बाहर भी वैसी ही सफाई रखना हमारी जिम्मेदारी होती है। नर्सरी स्कूलों की तेजी से बढ़ती संख्या के बीच हमने अपने बच्चों को ढाई-तीन साल की उम्र से ही स्कूल में डालना तो सीख लिया लेकिन बच्चों को सबसे पहले सिखाया क्या जाना चाहिए, इस पर ध्यान देना शायद भूल गए!

चीन, जापान जैसे देशों में बच्चों को सबसे पहले साफ-सफाई और सार्वजनिक व्यवहार की बातें सिखाई जाती हैं और हम नन्हें बच्चों को भी एबीसीडी रटाकर ही खुद को धन्य मान लेते हैं! इसमें कोई शक नहीं कि बाहर की सफाई का भीतर की सफाई अर्थात मन की सफाई पर भी असर पड़ता है और मन साफ न हो तो उसका असर हमारे सारे कामों पर पड़ता है। गांधीजी कहते थे कि ‘आपका शौचालय ड्राइंग रूम की तरह चमकता हुआ साफ होना चाहिए.’ क्या हम अपने बच्चों को यह सीख दे रहे हैं?

Web Title: Dirtiness of public toilets reflects the mentality of the society

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