ब्लॉग: कांग्रेस से आखिर क्यों परेशान है भाजपा ?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 12, 2024 10:39 AM2024-04-12T10:39:06+5:302024-04-12T10:45:48+5:30
कांग्रेस अपने इतिहास में इतनी कमजोर, दिशाहीन या संसाधनों और नेतृत्व से वंचित कभी नहीं रही, जितनी आज देखी जा रही है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने इतिहास में इतनी कमजोर, दिशाहीन या संसाधनों और नेतृत्व से वंचित कभी नहीं रही, जितनी आज देखी जा रही है। नई दिल्ली में एक दशक से सरकार से बाहर और मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा या उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अनेक वर्षों से यह गांधी परिवार शासित संगठन अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। 1947 से लगातार देश की एक सत्तारूढ़ पार्टी अब कई राज्यों में दूसरे या तीसरे नंबर की पार्टी और लोकसभा में एक कमजोर विपक्ष बन कर रह गई है।
कांग्रेस के पतन का कारण उसका भ्रष्टाचार, अंदरूनी कलह, अपने नेतृत्व के लिए नेहरू-गांधी परिवार पर अत्यधिक निर्भरता, नयापन लाने से इंकार आदि हैं। भविष्य स्पष्ट रूप से बहुत निराशाजनक है क्योंकि इसके नेताओं और कार्यकर्ताओं की अवैध खरीद-फरोख्त अब अभूतपूर्व ढंग से बढ़ गई है. इसका श्रेय मोदी-शाह की जोड़ी के तहत आक्रामक भाजपा को जाता है, जो कोई कसर बाकी नहीं रख रही है।
दस साल पहले दिल्ली में सत्ता हासिल करने के तुरंत बाद, सत्तारूढ़ दल ने कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने का संकल्प लिया था। कांग्रेस ने इसे हंसी में उड़ा दिया, लेकिन भाजपा गंभीरता से अपने काम में लगी रही और नैतिकता या अनैतिकता की जरा भी चिंता किए बिना विरोधियों को कमजोर करने के लिए उसने बहुआयामी रणनीति अपनाई। आश्चर्यजनक रूप से, कांग्रेस को 2018 में छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश की जीत से सांत्वना मिली, पर वह पार्टी 2023 में हार गई और फिर कर्नाटक और हाल ही में तेलंगाना में फिर जीती। संसद में इस पार्टी की उपस्थिति इतनी कम हो गई है कि इसके समर्थक भारी निराश हैं।
क्या मैं कांग्रेस पार्टी को लेकर चिंतित हूं? नहीं, लेकिन भाजपा स्पष्ट रूप से है। समय रहते पार्टी तंत्र को मजबूत करने में असमर्थता के कारण कांग्रेस खुद को गहरे संकट में पाती है। दूसरी ओर भाजपा सतत प्रयोग करती रही और नए नेता तैयार करती रही। भाजपा की नकल भी कांग्रेस नहीं कर पाई। 82 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष चुनना या अनिच्छुक दिग्विजय सिंह को 77 वर्ष की उम्र में लोकसभा चुनाव में जबरन उतारना पार्टी की निर्णय लेने की प्रक्रिया की कमजोरी के ही कुछ नमूने हैं। आंतरिक झगड़े और अनुशासन की कमी कांग्रेस के अन्य अभिशाप हैं।
हालांकि जो बात वास्तव में राजनीतिक पर्यवेक्षकों को आश्चर्यचकित कर रही है वह इस समय अपने मुख्य विपक्षी दल के लिए भाजपा की चिंता या ‘डर’ है, जबकि कांग्रेस मरणासन्न स्थिति में है। तीसरे कार्यकाल के लिए भाजपा की चाहत समझ में आती है। अधिकांश चुनाव विश्लेषकों और अन्य लोगों का मानना है कि इंडिया गठबंधन के बावजूद, भगवा पार्टी के लिए इस बार राह काफी आसान है।
राम मंदिर भव्य तरीके से बनाया गया है; अनुच्छेद 370 हटा दिया गया है, जैसा कि वादा किया गया था, इसलिए हिंदू वोट बैंक एकजुट हो गया है। चार महीने पहले ही भाजपा ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मोदी की गारंटी का मीठा फल भी चखा है। बुनियादी ढांचे का विकास अपने चरम पर है, गरीबी अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर (शायद) आ गई है, जी-20 के बाद विदेश नीति वैश्विक शक्तियों को मंत्रमुग्ध कर रही है, मध्यम वर्ग मुद्रास्फीति का मुद्दा उठा ही नहीं उठा रहा। योगी और यादव; विष्णु साय और शिंदे राज्यों में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं; नीतीश को मोहित कर एनडीए में वापस ले लिया गया है और शीर्ष व्यापारिक घराने भाजपा के साथ हैं तो समस्या कहां है?
वर्ष 2019 में भाजपा ने 303 सीटें और एनडीए ने 353 सीटें जीतीं; बालाकोट मुद्दे के साथ या उसके बिना, यह पाठकों को तय करना है! पिछले पांच वर्षों का ‘प्रभावशाली’ सुशासन का कीर्तिमान सुनिश्चित करता है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा को 400 से अधिक सीटें जीतने में कोई बाधा नहीं आएगी। देश का मूड पहले से ही भाजपा के पक्ष में है।
फिर भी, भाजपा नेता पानी पी-पीकर कांग्रेस को कोस रहे हैं, हमला कर रहे हैं, जिसमें कच्चातिवु के एक छोटे से द्वीप का गैर-जरूरी मुद्दा भी शामिल है। श्रीलंका के स्पष्टीकरण से भाजपा को झटका लगा है। अभियान शुरू होने से बहुत पहले ही भाजपा ने गांधी परिवार पर हमला करना शुरू कर दिया था, कांग्रेस को मुस्लिम समर्थक करार देते हुए कहा कि वह भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है, यह अच्छी तरह से जानते हुए भी कि पार्टी सरकार से बाहर है और ‘पैसा’ बनाने में सक्षम नहीं है।
इसके अतिरिक्त, भाजपा ने राज्यों में अपने समूह बनाए हैं जिनका विशेष काम कांग्रेस को तोड़ना और बेकार व दागी नेताओं को भाजपा में लाना है। यह बेचैनी क्यों है? जांच एजेंसियों के लगातार दुरुपयोग से गलत संदेश जा रहा है। लोग उम्मीद करते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के कद्दावर नेता जब जीत पहले से तय हो तो उदारता दिखाएंगे। आदर्श रूप से उन्हें मरती हुई पार्टी पर ऊर्जा खर्च करने के बजाय ‘विकसित भारत’ के बारे में बात करनी चाहिए। क्या यह अपेक्षा गलत है?